अध्याय 2 के आरंभ में श्री कृष्ण भी अर्जुन को ज्ञान नहीं दे रहे। कह रहे हैं खड़े हो जाओ। क्योंकि चोट देता है ज्ञान , किसको अज्ञान को। अर्जुन मन है, कृष्ण आत्मा है। इसलिए अर्जुन और कृष्ण के संवाद को मन और आत्मा संवाद भी कहा जाता है।
अर्जुन क्यों नहीं लड़ना चाह रहे है? वृत्ति और संस्कृति के कारण। साथ ही साथ अर्जुन वर्णप्रथा के भी समर्थक हैं, कर्म काण्ड के भी समर्थक हैं। अर्जुन को अपने आर्य होने पर बड़ा गौरव है। अर्जुन को अपने वर्ण पर बड़ा गौरव है। अर्जुन को स्वर्ग प्राप्ति पर बड़ा गौरव है।
और इसी कारण कभी वह हतोत्साहित होकर बैठ जाते हैं और श्रीकृष्ण को भी अज्ञानी ठहरा देते हैं।
अर्जुन की तरह ही हैं हम सब भी मोह और भय से ही ग्रसित हैं। और तो और अर्जुन का खुद को ज्ञानी मानना भूल है। माया में इतनी ताकत होती है की वो ज्ञान को भी अपना आसन बना लेती है।
ज्ञान बहुत आसानी से अज्ञान के हाथ का खिलौना बन जाता है। अज्ञान के लिए ज्ञान सिर्फ एक संसाधन मात्र है। अज्ञान सर्वभोक्त है वह हर चीज खा जाता है। इसलिए जरूरी है कि हम सबको श्रीकृष्ण की शरण आना ही होगा।
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