ये जो दृष्टि है, जो सब सांसारिक अनुभवों को प्रसाद की तरह देखने लगती है, ये जो आँख है जो देख ही सिर्फ़ कृष्ण को रही है, बाकी सबकुछ उसके लिए बस यूँ ही है। है तो पर यूँ ही है, बड़े महत्व का नहीं है।
मगर जिसका मन कृष्ण की जगह दिखाई, सुनाई, अनुभव में आने वाली चीज़ों के पीछे लगा रहता है, उसकी बुद्धि वैसे ही हर ली जाती है, नष्ट हो जाती है जैसे तेज़ हवा नाव को डुबो देती है। इससे पता चलता है कि बुद्धिजीवी होना पर्याप्त नहीं है। इसी से ये भी समझोगे कि कई बुद्धिजीवी इतने मूर्ख क्यों होते हैं। नाम क्या है? ‘बुद्धिजीवी’; हैं क्या? मूर्ख! क्योंकि उनके पास बुद्धि तो होती है भरपूर, लेकिन उनके पास श्रद्धा नहीं होती। उनकी बुद्धि आत्मा का अनुसरण नहीं कर रही है, उनकी बुद्धि अहंकार के पीछे-पीछे चल रही है। जिसकी बुद्धि अहंकार के पीछे-पीछे चले, वो बुद्धिजीवी होते हुए भी मूर्ख ही है। श्रीकृष्ण बता रहे हैं ऐसों से प्रभावित मत हो जाना।
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