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उपनिषद् परिचय

उपनिषद् परिचय

प्रकाश का स्वरूप
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Book Details

Language
hindi

Description

उपनिषदों की, बल्कि अधिकांश आध्यात्मिक ग्रंथों की भाषा उनके रचनाकारों की ही तरह थोड़ी-सी विशिष्ट है।

वो उन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं जिन शब्दों का प्रयोग हम और आप करते हैं क्योंकि भाषा में, शब्दकोश में शब्द तो वही हैं। लेकिन उन साधारण शब्दों का भी प्रयोग जब किसी तत्वज्ञानी, किसी ऋषि द्वारा किया जाता है, तो उन शब्दों में अर्थ के दूसरे आयाम उतर आते हैं।

इसीलिए एक बहुत अलग तरीके से पढ़ना पड़ता है आध्यात्मिक ग्रंथों को। बड़े सम्मान के साथ पढ़ना पड़ता है, लगातार याद रखना होता है किसकी बात हो रही है।

जिनकी बात हो रही है, वो हमारे जैसे नहीं हैं, तो हम अपने जीवन के सिद्धांत और घटनाएँ और उदाहरण उनके ऊपर न थोपें। हम अपने मापदंडों पर उनको न नापें-तोलें।

यहीं पर बहुत ज़बरदस्त भूल होती आ रही है क्योंकि हमें आज तक गीता को और उपनिषद को पढ़ना ही नहीं आया। कृष्ण और अर्जुन के संवाद को भी हम वैसे ही सोच लेते हैं जैसे रमेश और सुरेश बातचीत कर रहे हों।

हमें ये समझ में ही नहीं आता कि हमारी हस्ती और कृष्ण की हस्ती में कितनी दूरी है।

यही काम तो हम करते आए हैं। चाहे वो पुनर्जन्म की बात हो, चाहे वो जीवात्मा की बात हो, चाहे दिव्यदृष्टि की बात हो, हमने यही तो करा है। बहुत सूक्ष्म बातों के हमने एकदम स्थूल अर्थ निकाले हैं।

और यही वजह है कि जिन ग्रंथों को, जिन आध्यात्मिक-धार्मिक ग्रंथों को शांति का, समझ का, बोध का और मुक्ति का साधन होना चाहिए था, वही बन जाते हैं तमाम तरह के क्लेश, हिंसा, अज्ञान, यहाँ तक कि आतंकवाद के कारण। क्यों? क्योंकि आपको उनको पढ़ना ही नहीं आता।

तो सवाल ये नहीं है कि उपनिषदों की बात कितनी सही है या आज कितनी प्रासंगिक है। सवाल ये है कि तुम्हारे पास आँखें हैं इसको पढ़ने की? सवाल ये है कि किस नियत से आ रहे हो इनके पास?

उपनिषदों का सही अर्थ समझने के लिए क्या पात्रता चाहिए? मुक्ति की अभिलाषा। बड़ी तीव्र मुमुक्षा होनी चाहिए।

Index

1. शांति पाठ का महत्व 2. मात्र एक विशेष विधि से पढ़े जाते हैं उपनिषद् 3. ऐसे होते हैं उपनिषदों के ऋषि 4. पुराण दिखाएँ मन का विस्तार, उपनिषद् ले जाएँ मन के पार 5. 'ना' से उठता है उपनिषद् 6. ध्यान से जन्मता है उपनिषद्
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