स्वामी विवेकानन्द के पूर्ववर्ती ज़्यादातर अद्वैतवादी दार्शनिकों ने अपने वेदान्त दर्शन में ज्ञान पक्ष को अधिक महत्व दिया है। और यह अति आवश्यक भी है। पर अपने ही ढर्रों को बचाये रखने के लिए सामान्य लोगों में यह धारणा विकसित हो गयी कि अद्वैत वेदान्त केवल गूढ़ एवं तात्विक सिद्धान्तों का पुंज है, जो साधारण मानवीय बुद्धि के लिए अत्यन्त दुरूह है और जिसका प्रत्यक्ष जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह केवल संन्यासियों तथा चिन्तनशील दार्शनिकों के लिए उपयोगी है। गृहस्थ लोगों से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। यह जगत से पलायन अथवा संन्यास को बढ़ावा देता है, अतः यह निषेधात्मक एवं निराशावादी दर्शन है।
जनसामान्य में व्याप्त इस आत्मघाती धारणा के निवारण हेतु स्वामी विवेकानन्द जी ने वेदान्त की नवीन, परिष्कृत तथा आशावादी व्याख्या प्रस्तुत करने की आवश्यकता को महसूस किया। इसीलिए उन्होंने वेदान्त के आदर्शवादी पक्ष को व्यावहारिक रूप दिया तथा वेदान्त दर्शन को व्यावहारिक वेदान्त के रूप में प्रस्तुत किया।
Index
1. मंज़िल नहीं, बस अगला क़दम देखो2. सभी चाहतों के भीतर की चाहत3. स्वामी विवेकानंद एकाएक कामवासना से कैसे मुक्त हो गए?4. गुरु के डंडे की ज़रूरत किसे पड़ती है?5. रामकृष्ण तो परमभक्त थे, फिर उन्होंने विवाह क्यों किया?6. एक अनोखी भक्ति