स्वामी विवेकानंद और व्यावहारिक वेदांत

स्वामी विवेकानंद और व्यावहारिक वेदांत

वेदांत दर्शन
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hindi Language
160 Print Length
Description
स्वामी विवेकानन्द के पूर्ववर्ती ज़्यादातर अद्वैतवादी दार्शनिकों ने अपने वेदान्त दर्शन में ज्ञान पक्ष को अधिक महत्व दिया है। और यह अति आवश्यक भी है। पर अपने ही ढर्रों को बचाये रखने के लिए सामान्य लोगों में यह धारणा विकसित हो गयी कि अद्वैत वेदान्त केवल गूढ़ एवं तात्विक सिद्धान्तों का पुंज है, जो साधारण मानवीय बुद्धि के लिए अत्यन्त दुरूह है और जिसका प्रत्यक्ष जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह केवल संन्यासियों तथा चिन्तनशील दार्शनिकों के लिए उपयोगी है। गृहस्थ लोगों से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। यह जगत से पलायन अथवा संन्यास को बढ़ावा देता है, अतः यह निषेधात्मक एवं निराशावादी दर्शन है।

जनसामान्य में व्याप्त इस आत्मघाती धारणा के निवारण हेतु स्वामी विवेकानन्द जी ने वेदान्त की नवीन, परिष्कृत तथा आशावादी व्याख्या प्रस्तुत करने की आवश्यकता को महसूस किया। इसीलिए उन्होंने वेदान्त के आदर्शवादी पक्ष को व्यावहारिक रूप दिया तथा वेदान्त दर्शन को व्यावहारिक वेदान्त के रूप में प्रस्तुत किया।
Index
CH1
मंज़िल नहीं, बस अगला क़दम देखो
CH2
सभी चाहतों के भीतर की चाहत
CH3
स्वामी विवेकानंद एकाएक कामवासना से कैसे मुक्त हो गए?
CH4
गुरु के डंडे की ज़रूरत किसे पड़ती है?
CH5
रामकृष्ण तो परमभक्त थे, फिर उन्होंने विवाह क्यों किया?
CH6
एक अनोखी भक्ति
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