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श्वेताश्वतरोपनिषद
भाग 1
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Paperback
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Book Details
Language
hindi
Print Length
167
Description
श्वेताश्वेतर उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। इसके वक्ता श्वेताश्वेतर ऋषि हैं। श्वेताश्वेतर उपनिषद आरंभ में जगत की उत्पत्ति और हमारे अस्तित्व का विश्लेषण करता है। इसके पश्चात हमारी सभी इच्छाओं के पीछे बैठी मूल इच्छा को उद्घाटित करता है और हमें अमरता, आत्मसाक्षात्कार, योग, ध्यान और माया से परिचित करवाता है। हम सभी चैतन्यस्वरूप आत्मा ही हैं पर अभी हम अपने-आपको एक देह और मन के रूप में ही जानते हैं। इसलिए यह उपनिषद हमें कुछ नई बात नहीं बताता बल्कि हमें हमारे देह और मन के झूठे तादात्म्य से तोड़ता है। इस उपनिषद् में श्वेताश्वेतर ऋषि हमें प्रतीकों के माध्यम से सभी बातें बता रहे हैं। आचार्य प्रशांत जी इन प्रतीकों का सही अर्थ कर हमें उस ज्ञान से परिचित करा रहे हैं जो इस उपनिषद के मूल में छुपा हुआ है। इस ज्ञान का उद्देश्य और कुछ नहीं बल्कि हमें हमारे सभी कष्टों और दुःखों से मुक्ति दिलाकर अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित कराना है। यह प्रथम भाग श्वेताश्वेतर उपनिषद के प्रथम तीन अध्यायों पर आचार्य जी की व्याख्याओं का संकलन है।
Index
1. क्या हैं संसार, अहम् और ब्रह्म? 2. ध्यान देता है स्पष्टता 3. स्वयं को जानो, सत्य को जानो 4. ज्ञान और भोग साथ नहीं चलते 5. सत्य: न तुम, न तुम्हारा संसार 6. जो दिख रहा है, जो देख रहा है, और जो मुक्त है
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