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शक्ति

शक्ति

प्रकृति से परमात्मा तक
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Book Details

Language
hindi
Print Length
230

Description

शिव केंद्र हैं, शिव सत्य हैं। शिव वो हैं जिन तक मन, ‘मन’ रहकर पहुँच नहीं सकता। शिव को तो रहस्य रहना है सदा। शक्ति मन है, संसार है। शिव में स्थिरता है, अचलता है। शक्ति में गति है, चलनशीलता है। शक्ति जीवन है, शक्ति वो सबकुछ है जिससे आप एक मनुष्य होकर के सम्बन्ध रख सकते हैं। शक्ति भाव है, शक्ति विचार है। शक्ति में संसार के सारे उतार-चढ़ाव हैं, आँसू हैं और मुस्कुराहटें हैं।

सत्य होगा अरूप, पर हम रूपों में जीते हैं। सत्य होगा अचिंत्य, पर हम विचारों और भावों में जीते हैं। सत्य होगा निराकार, पर हम तो आकार, रंग और देह में जीते हैं। सत्य होगा असीम, पर हमारा तो सबकुछ ही सीमित है। जिन्होंने असीम की पूजा शुरू कर दी, जिन्होंने निर्गुण, निराकार को पकड़ने की चेष्टा कर ली, जिन्होंने यह कह दिया कि वो सबकुछ जो प्रकट और व्यक्त है, वो तो क्षुद्र है और असत्य है, उन्होंने जीवन से ही नाता तोड़ लिया, उनका मन बिलकुल शुष्क और पाषाण हो गया।

अरूप तक जाने का एकमात्र मार्ग रूप है। सत्य तक जाने का हमारे लिए एकमात्र मार्ग संसार है। शिव के अन्वेषण का एकमात्र मार्ग शक्ति है। जिन्होंने संसार से किनारा कर लिया, ये कहकर कि संसार तो सत्य नहीं है, उन्होंने संसार को तो खोया ही, सत्य से भी और दूर हो गए।

Index

1. दुर्गा सप्तशती पर आचार्य प्रशांत का लेख 2. नवरात्रि विशेष: समझदार होकर भी लाचार क्यों? 3. नवरात्रि विशेष, दूसरा दिवस: देवी कौन हैं? 4. नवरात्रि का असली अर्थ, और मनाने का सही तरीक़ा 5. नवरात्रि के नौ रूपों को कैसे समझें? 6. स्त्री और शक्ति
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