Now you can read eBook on our mobile app for the best reading experience View App
This book will be available soon. Please check again after a few days.
Book Details
Language
hindi
Print Length
176
Description
हम जिसे प्रेम कहते हैं वह हम तक मात्र किस्से-कहानियों और फिल्मों के माध्यम से पहुँचा है। ये भी एक ग़लतफ़हमी है कि प्रेम नैसर्गिक होता है। प्रकृति में, जानवरों में जो प्रेम दिखता है वो प्राकृतिक सौहार्द हो सकता है, प्रेम नहीं।
प्रेम तो सीखना पड़ता है।
प्रेम वास्तव में है मन का निरंतर आकर्षण, सतत प्रवाह शांति की तरफ़। प्रेम का वरदान या प्रेम की संभावना तो बस इंसान को ही मिली है। वो भी संभावना मात्र है।
प्रेम मिलेगा किसी कृष्ण जैसे के पास।
Index
1. प्रेम सीखना पड़ता है2. क्या प्रेम किसी से भी हो सकता है?3. कौन है प्रेम के काबिल?4. सच्चे प्रेम की पहचान5. दूसरे की चिंता करते रहने को प्रेम नहीं कहते6. प्रेम की भीख नहीं माँगते, न प्रेम दया में देते हैं
हम जिसे प्रेम कहते हैं वह हम तक मात्र किस्से-कहानियों और फिल्मों के माध्यम से पहुँचा है। ये भी एक ग़लतफ़हमी है कि प्रेम नैसर्गिक होता है। प्रकृति में, जानवरों में जो प्रेम दिखता है वो प्राकृतिक सौहार्द हो सकता है, प्रेम नहीं।
प्रेम तो सीखना पड़ता है।
प्रेम वास्तव में है मन का निरंतर आकर्षण, सतत प्रवाह शांति की तरफ़। प्रेम का वरदान या प्रेम की संभावना तो बस इंसान को ही मिली है। वो भी संभावना मात्र है।
प्रेम मिलेगा किसी कृष्ण जैसे के पास।
Index
1. प्रेम सीखना पड़ता है2. क्या प्रेम किसी से भी हो सकता है?3. कौन है प्रेम के काबिल?4. सच्चे प्रेम की पहचान5. दूसरे की चिंता करते रहने को प्रेम नहीं कहते6. प्रेम की भीख नहीं माँगते, न प्रेम दया में देते हैं