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प्रेम
स्नेह भी, देह भी
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Book Details
Language
hindi
Description
जीवन का आधार है प्रेम। परंतु प्रेम का आधार कहीं हीनता, दुर्बलता, लालच या भय तो नहीं? अक्सर ही हम हमारी गहरी-से-गहरी आसक्ति, मनमोहक आकर्षण, दूसरों पर निर्भरता इत्यादि को प्रेम का नाम दे देते हैं। सरल लफ़्ज़ों में कहा जाए तो हम हमारे गहरे-से-गहरे बंधन को प्रेम समझ बैठते हैं।

इस किताब में आचार्य प्रशांत ने बेहोशी से जनमे सम्बन्धों पर रौशनी डालते हुए उस प्रेम की ओर इशारा किया है जो मन की हीनता से नहीं पूर्णता से उत्पन्न होता है; जो दुर्बलता नहीं, आत्म शक्ति में स्थापित करता है; जो भय नहीं, आज़ादी की ओर उन्मुख कर जीवन को आत्म-ऊर्जा से भरता है।

आचार्य प्रशांत कहते हैं: सिर्फ़ एक विकसित मन ही प्रेम कर सकता है; प्रेम और बोध साथ ही पनपते हैं।
Index
1. मुहब्बत है क्या चीज़… 2. प्रेम क्या है और क्या नहीं? 3. प्रेम – मीठे-कड़वे के परे 4. प्रेम – आत्मा की पुकार 5. सम्बन्ध क्या हैं? 6. सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम-रहित
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