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निरालम्ब उपनिषद्
भाष्य
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Book Details
Language
hindi
Description
वैदिक आध्यात्मिक साहित्य में उपनिषदों का स्थान शीर्ष है। इन्हें ही वेदांत कहा गया है। ये कोई सामान्य, साधारण, मान्यता मूलक ग्रंथ नहीं हैं; ये अतिविशिष्ट हैं। जैसे मन की सारी आध्यात्मिक यात्रा इन पर आकर रुक जानी हो, उसका अंत हो जाना हो। इसलिए इनको कहा गया है वेदांत। यह निरालंब उपनिषद् शुक्ल यजुर्वेद से लिया गया है। निरालंब का अर्थ होता है — बिना अवलंब के, बिना सहारे के। नाम से ही स्पष्ट है कि यह उपनिषद् किसी ऐसे की बात करने जा रहा है जो किसी पर अवलंबित नहीं है, आश्रित नहीं है। क्यों आवश्यक है निरालंब की बात करना? क्योंकि जहाँ अवलंबन है, जहाँ कोई दूसरा है वहीं दुख है। और जहाँ निरालंब है, वहीं पूर्णता है, वहीं आनंद है। हमारी चाहत होती है उसी अवस्था को पा लेने की जहाँ अब कोई धोखा नहीं है, जहाँ पूर्ण विश्रांति है। प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत ने निरालंब उपनिषद् के प्रत्येक श्लोक का सरल और उपयोगी अर्थ किया है।
Index
1. जब तुम पूर्ण तब दुनिया पूर्ण 2. संसार प्रकृतिस्थ और तुम आत्मस्थ 3. वृत्तियों से दूरी ही बड़प्पन का प्रमाण 4. झूठ की गोद से उठो, सत्य तो उपलब्ध है ही 5. इस कुचक्र में न कोई पहला न कोई अंतिम, बस दोहराव 6. दोहराव में जीने की सज़ा — एक निरन्तर ऊब
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