उपनिषद् महावाक्य सारे उपनिषदों का सार हैं। ये ऋषियों की ऐसी उद्घोषणा है जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से परिचित कराते हैं। ये हमें बताते हैं कि हम मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से परे, जन्म-मरण, सुख-दुःख से विलग सच्चिदानंद स्वरूप हैं।
इन महावाक्यों में अधिकतम तीन पद हैं और ये तीन पदों में ही संपूर्ण वेदांत का सार प्रकट कर देते हैं। सारे ग्रंथ इन महावाक्यों का ही विस्तार रूप हैं।
चूँकि ये महावाक्य अपने में गहनतम अर्थ छुपाए हुए हैं, अतः इनका सामान्य अर्थ नहीं किया जा सकता। इन्हें समझने के लिए एक विशेष ध्यान और सावधानी की ज़रूरत पड़ती है।
प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत सभी महावाक्यों का गूढ़ व उपयोगी अर्थ बता रहे हैं। आचार्य प्रशांत अर्थों को इस तरह प्रस्तुत कर रहे हैं कि इन्हें आसानी से आत्मसात किया जा सकता है।
यदि इन महावाक्यों को ही स्पष्टता से समझ लिया जाए तो और कुछ जानना शेष नहीं रह जाएगा। उपनिषद् के इन महावाक्यों से परिचित होकर आप अपनी क्षुद्रता को संरक्षित नहीं रख पाएँगे, आपको उत्कृष्टता की ओर जाना ही पड़ेगा।