जीवनपर्यंत मन किसी नये की तलाश में रहता है। उस तलाश को वो अक्सर ही किसी नये अनुभव, घर, गाड़ी इत्यादि से पूरी करने की अभिलाषा करता है।
नये की तलाश मन को अक्सर ही एक आशा में बाँध देती है कि यदि बाहर की स्थितियाँ बदल जाएँ तो भीतर की बेचैनी भी मिट जाएगी।
आचार्य प्रशांत छात्रों के साथ हुए संवादों के माध्यम से समझाते हैं कि मन की बेचैनी और ऊब बाहरी बदलावों से नहीं बल्कि भीतर से आत्मस्थ होकर जाती हैं।
आत्मस्थ होना ही एक नये जीवन, एक नयी कहानी की नींव है।
Index
1. मन ग़लत दिशा में क्यों भागता है?2. अभिभावकों से स्वस्थ सम्बन्ध3. करने से पहले सोचना आवश्यक है क्या?4. मन प्रशिक्षण के अनुरूप ही विषय चुनेगा5. मैं किसी भी नियम पर चल क्यों नहीं पाता?6. दूसरों के सम्मान से पहले अपना सम्मान