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क्रांति
बाहर भी, भीतर भी
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Book Details
Language
hindi
Print Length
158
Description
भगत सिंह ने पूरे देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया क्योंकि अकेले-अकेले आज़ादी तो वैसे भी नहीं मिलने की। ये वास्तव में कोई सामाजिक या राजनैतिक पहल नहीं थी। ये किसी बर्बर, विदेशी शासन के प्रति आक्रोश या क्रांति मात्र नहीं था। मूलतः ये आध्यात्मिक मुक्ति का अभियान था। एक ऐसी मुक्ति जिसमें तुम कहते हो - "मेरे शरीर की बहुत कीमत नहीं है। बाईस-तेईस साल का हूँ, फाँसी चढ़ जाऊँ, क्या फर्क पड़ता है? शरीर के साथ मेरा तादात्म्य वैसे भी नहीं है। मैंने तो अब पहचान बना ली है बहुत बड़ी सत्ता के साथ।" भगत सिंह के जीवन में वो बहुत बड़ी सत्ता थी - भारत देश। दुनियाभर के तमाम साहित्य का अध्ययन किया था उन्होंने, खासतौर पर समकालीन क्रांतिकारी साहित्य का। समाजवाद, साम्यवाद—इनकी तरफ झुकाव था उनका। खूब जानते थे, समझते थे। किसी बहके हुए युवा की नारेबाज़ी नहीं थी भगत सिंह की क्रांति में; गहरा बोध था। और वो बोध, मैं कह रहा हूँ, मूलतः आध्यात्मिक ही था।
Index
1. क्रान्तिकारी भगत सिंह, और आज के युवा 2. मार्क्स, पेरियार, भगतसिंह की नास्तिकता 3. महापुरुषों जैसा होना है? 4. सब महापुरुष कभी तुम्हारी तरह साधारण ही थे 5. गुलामी चुभ ही नहीं रही, तो आज़ादी लेकर क्या करोगे? 6. हमारे छह दुश्मन
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