विश्व भर में श्रीमद्भगवद्गीता को अध्यात्म का पर्याय माना जाता है। यहाँ तक कहा गया है कि जीवन से जुड़े हर प्रश्न का उत्तर इस ग्रन्थ में समाहित है। श्रीकृष्ण द्वारा वर्णित कुछ मुख्य विषयों की सूची बनायी जाए तो उसमें 'कर्मयोग' का स्थान श्रेष्ठ रहता है। यह पुस्तक आचार्य प्रशांत द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ३ 'कर्मयोग' पर दी गयी व्याख्याओं पर आधारित है। वैसे तो यह ग्रन्थ अति प्राचीन है परन्तु आचार्य प्रशांत द्वारा की गयी व्याख्या इसको आज की पीढ़ी के लिए अत्यन्त सरल व प्रासंगिक बना देती है।
Index
1. कृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्मयोग की शिक्षा (श्लोक 3.1-3.7)2. बड़ा मुश्किल है कृष्ण से प्रेम कर पाना3. यदि ज्ञान ही श्रेष्ठ है तो कर्म की क्या आवश्यकता?4. यज्ञ क्या है? हम अपने जीवन को ही यज्ञ कैसे बना सकते हैं? (श्लोक 3.9)5. निष्काम कर्म का महत्व (श्लोक 3.11-3.12)6. बिना फल की इच्छा के कर्म क्यों करें? (श्लोक 3.10)