हमारे सभी त्योहार और पर्व उत्सव होते हैं। उनका एक विशेष महत्व होता है। इन त्योहारों के पीछे कोई पवित्र स्मृति या कहानी जुड़ी होती है, जो हमें कुछ सीख देती है, चाहे वह दीपावली हो या होली।
होली के पीछे भी एक सुंदर घटना है, जो कहानी कहती है हिरण्यकश्यप के अहंकार की, होलिका की चालाकी की और भक्त प्रह्लाद की निर्मलता और निर्दोषता की।
पर अभी जिस प्रकार हमारा जीवन ही भोगवाद और बाज़ारवाद के हत्थे चढ़ चुका है, तो उसी तरह हमारे त्योहार भी कुरूप और कुत्सित हो चुके हैं।
होली त्योहार के नाम पर अब हमें भक्त प्रह्लाद और राजा हिरण्यकश्यप याद नहीं आते बल्कि गुलाल, पिचकारी, हुल्लड़बाजी और नशाखोरी याद आते हैं।
इसी ख़तरे से परिचित कराने और साथ-ही-साथ होली पर्व की महत्ता और सुंदरता से आपको अवगत कराने के उद्देश्य से आचार्य जी की यह पुस्तक 'होली' आपके समक्ष लायी जा रही है।
इस पुस्तक के साथ अपने त्योहार को और अपने जीवन को निर्मल करें।
Index
1. दारू और चिकन वाली होली?2. होली खेलने से पहले होली को समझो3. ऐसे होली मनाकर क्यों धर्म को बदनाम करते हो?4. होलिका दहन का विरोध करने वाले5. हमारी पहचानें - होली के रंगों जैसी