Description
"जो लोग अपनी भाषा की ही इज्ज़त नहीं कर सकते, कहाँ आगे बढ़ेंगे? आध्यात्मिक रूप से नहीं, भौतिक रूप से भी नहीं आगे बढ़ेंगे।
भारत को पुनर्जागरण (रेनेसां) चाहिए; हमें सुधार नहीं चाहिए, हमें पुनर्जागरण चाहिए। हमें अपनेआप पर यकीन करना सीखना होगा।
हज़ार सालों तक मिली सामरिक हारों ने और झूठे इतिहासकारों ने — इन दोनों ने मिलकर के हमें भीतर से बिलकुल पंगु कर दिया है, छलनी-छलनी कर दिया है।
हम टूट गए हैं, हम चूरा-चूरा हो गए हैं।
हम ऐसे हो गए हैं जैसे कोई बस रोटी के लिए जिये।"
इन संवादों के माध्यम से आचार्य प्रशांत भारतीयों में अपनी ही भाषाओं के प्रति हीनभावना के मूल कारणों को समझाते हैं और उन सभी मूल्यों से अवगत करवाते हैं जो भारतीयों की असल पहचान हैं।