आत्मविचार में जब तुम अपनेआप को देखते हो, तभी संभव होता है गुरु का तुम्हारे लिए कुछ कर पाना।
जो स्वयं को देखने को राज़ी नहीं, गुरु उसके लिए कुछ नहीं कर पाएगा। गुरु ही प्रेरणा देता है आत्मविचार की, और आत्मविचार का आखिरी फल होता है आत्मबोध — यानि गुरु की प्राप्ति।
गुरु से ही आदि, गुरु पर ही अंत; गुरु ही है आत्मा अनंत।
Index
1. जीवित गुरु ख़तरनाक क्यों?2. दुनिया में इतने कम कबीर क्यों?3. गुरु की पहचान क्या?4. गुरु वो जो तुम्हें घर भेज दे5. गुरु तुम्हें वो याद दिलाता है जो तुम जानते ही हो6. गुरु तुम्हारी बीमारी के कारणों का कारण जाने