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गुरु बेचारा क्या करे
शिष्यत्व, समर्पण, बोध
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Book Details
Language
hindi
Print Length
70
Description
शुद्धतम रूप से गुरु बोध मात्र है। आत्मज्ञान, आत्मविचार ही आत्मबोध बन सकता है। आत्मविचार में जब तुम अपने-आप को देखते हो, तभी संभव होता है गुरु का तुम्हारे लिए कुछ कर पाना। जो स्वयं को देखने को राज़ी नहीं, गुरु उसके लिए कुछ नहीं कर पाएगा। गुरु ही प्रेरणा देता है आत्मविचार की, और आत्मविचार का आखिरी फल होता है आत्मबोध – यानि गुरु की प्राप्ति। गुरु से ही आदि, गुरु पर ही अंत; गुरु ही है आत्मा अनंत।
Index
1. जीवित गुरु खतरनाक क्यों? 2. दुनिया में इतने कम कबीर क्यों? 3. गुरु की पहचान क्या? 4. गुरु वो जो तुम्हें घर भेज दे 5. गुरु तुम्हें वो याद दिलाता है जो तुम जानते ही हो 6. गुरु तुम्हारी बीमारी के कारणों का कारण जाने
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