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अर्जुन विषाद योग + सांख्य योग + कर्मयोग + ज्ञानयोग
श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य के पहले चार अध्याय
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Paperback
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1
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Book Details
Language
hindi
Print Length
760
Description
श्रीमद्भगवद्गीता के पहले अध्याय में हम अर्जुन की किंकर्तव्यविमूढ़ता से परिचित होते हैं। दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन को सांख्य योग की सीख देते हैं। उससे बात बनती दिखती नहीं तो तीसरे अध्याय में निष्काम कर्मयोग का उपदेश दिया जाता है, और चौथे अध्याय में श्रीकृष्ण यह स्पष्ट कर देते हैं कि बिना आत्मज्ञान निष्कामता संभव नहीं है। इन चारों अध्यायों को समझना हमारे लिए अति-महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें भी अपनी वास्तविक पहचान और उचित कर्म के बारे में पता नहीं रहता। हम नीचाइयों में न रह जाएँ, हारे हुए न रह जाएँ, इसीलिए तो गीता है। प्रथम अध्याय इसलिए है ताकि हम स्वयं में अर्जुन को देख पाएँ; हम देख पाएँ कि वो अर्जुन नहीं हम हैं – मोह और भय से ग्रसित। दूसरा अध्याय इसलिए है ताकि हम समझ पाएँ कि हमारा वास्तविक 'मैं' कौनसा है और हमारा झूठा 'मैं' कौनसा है। तीसरा व चौथा अध्याय इसलिए हैं कि हम यज्ञ का वास्तविक अर्थ समझकर आत्मज्ञान के प्रकाश में किए गए निष्काम कर्म से अहम् की आहुति दें। आपकी संस्था इन चारों अध्यायों का संगम आपके लिए लाई है। आशा है कि आप अपने भीतर के अर्जुन और कृष्ण को एक ही साथ देख पाएँ।