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दुर्गासप्तशती [Recommended]
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Book Details
Language
hindi
Print Length
196
Description
देशभर में नवरात्रि तो बड़े धूमधाम से मनायी जाती है, पर क्या हम इस पर्व के मर्म को समझते हैं? हम जिन दुर्गा माँ की पूजा करते हैं अर्थात महिषासुरमर्दिनी, उनका चरित्र कहाँ से आया है? ये असुर और उनका संहार करने वाली माँ किनके प्रतीक हैं? यह असुर संहार हमारे दैनिक जीवन से कैसे सम्बंधित है? इन सबका उत्तर है श्रीदुर्गासप्तशती ग्रंथ। जो स्थान श्रीमद्भगवद्गीता का वेदांत में है, वही स्थान श्रीदुर्गासप्तशती का शाक्त सम्प्रदाय में है। शाक्त सम्प्रदाय हिन्दू धर्म का ही अंग है क्योंकि इसकी उत्पत्ति वैदिक परंपरा से हुई है और इसके आधार वेद हैं। शाक्त सम्प्रदाय सत्य के नारी रूप अथवा देवी रूप की उपासना करता है। और देवी की उपासना कई अर्थों में हमारे लिए ज़्यादा उपयोगी है क्योंकि शिव तो निराकार हैं, उनसे क्या सम्बन्ध बना सकते हैं हम? सम्बन्ध तो सगुणी प्रकृति से ही बन सकता है। और यही सम्बन्ध निर्धारित करेगा कि हम भवसागर से तरेंगे कि भवसागर में डूबेंगे। श्रीदुर्गासप्तशती में तेरह अध्याय और सात सौ श्लोक हैं। इनमें तीन चरित्र हैं अर्थात तीन तरह के राक्षस जो हमारे तीन तरह के अज्ञान - दम्भ, मद और मोह के प्रतीक हैं। इन राक्षसों का संहार करने वाली देवी प्रकृति के तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रथम चरित्र में तमोगुणी महाकाली हैं, दूसरे चरित्र में रजोगुणी महालक्ष्मी और तीसरे चरित्र में सतोगुणी महासरस्वती हैं। नवरात्रि में देशभर में जिन दुर्गा माँ की पूजा की जाती है वह महिषासुरमर्दनी का रूप दूसरे चरित्र से आता है। आचार्य जी ने तीनों चरित्रों को बड़े सरल, सुगम भाषा में विस्तृत और रोचक तरीके से समझाया है।
Index
1. देवी उपासना का रहस्य और उद्गम 2. माया: न समझो तो बन्धन, समझ गए तो मुक्ति का द्वार 3. भगवती महामाया: दुःख की स्रोत भी और मुक्ति दायिनी भी 4. क्या मूल अह्म वृत्ति ही देवी महामाया हैं? 5. क्या शक्ति ही शिव का द्वार हैं? 6. माया या प्रकृति को हमेशा स्त्रीलिंग में ही क्यों सम्बोधित किया जाता है?
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