भक्ति

भक्ति

राम बिनु ताप न जाई
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hindi Language
228 Print Length
Description
भक्ति के विषय में यह मान्यता रही है कि यह बस अल्प बुद्धि वालों के लिए उपयुक्त मार्ग है, जबकि वास्तव में बिना बोध के भक्ति बस अंधविश्वास और मूर्खता बनकर रह जाती है। आमतौर पर यह धारणा होती है कि भक्ति का अर्थ है कुछ किस्से-कहानियों को बिना तर्क किए मान लेना। हम इन भ्रामक परिभाषाओं से बच सकें, इसलिए आवश्यक है कि हम इसका अर्थ उनसे सीखें जिन्होंने भक्ति की ऊँचाइयों को छुआ है।

प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत हमें अनेक संतों से परिचित करवाते हैं और यह समझने में मदद करते हैं कि भक्ति वास्तव में क्या है और क्या नहीं है। कबीर साहब, बाबा बुल्लेशाह, मीरा और न जाने कितने संत हमें भक्ति रस में डूबने के लिए आमंत्रित करते हैं। अब चुनाव हमारा है — या तो हम भक्ति की छवियों में उलझकर अपना जीवन व्यर्थ गँवा सकते हैं, या अपने जीवन को भक्तिमय बना सकते हैं।
Index
CH1
भक्ति माने क्या?
CH2
झूठी भक्ति को कैसे पहचानें?
CH3
श्रद्धा और अंधविश्वास में क्या अन्तर है?
CH4
पूजा-पाठ से कुछ लाभ होता भी है या नहीं?
CH5
भजन का आनन्द हमेशा साथ क्यों नहीं रहता?
CH6
भजन को गहराई से समझे बिना गाने से क्या होगा?
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