Acharya Prashant Books @99 [Free Delivery]
content home
Login
आत्मबोध
केंद्रीय श्लोकों पर भाष्य
Book Cover
Already have eBook?
Login
eBook
Available Instantly
Suggested Contribution:
₹50
₹260
Paperback
Out of Stock
66% Off
₹149
₹450
This book will be available soon. Please check again after a few days.
Book Details
Language
hindi
Print Length
116
Description
भारत की समस्त दार्शनिक विचारधाराओं का स्रोत वेदांत ही है। वैदिक काल के पश्चात जब धर्म का केंद्र वेदान्त से हटकर मात्र कर्मकांड रह गया था, तब वेदान्त को पुनर्जागृत गुरु आदि शंकराचार्य ने किया। आदि शंकराचार्य ने वेदान्त के सभी ग्रथों पर टीकाएँ लिखीं और कई ग्रथों की रचना भी की। 'आत्मबोध' आदि शंकराचार्य द्वारा रचित उन ग्रथों में से है जो एक शुरुआती साधक को आत्म-साक्षात्कार के पथ पर आगे बढ़ने में मदद करता है। आत्मबोध का शाब्दिक अर्थ होता है 'स्वयं को जानना'। हमारे सारे कष्टों और दुःखों के मूल में यही कारण है कि हम स्वयं से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। हम अपने-आपको वही मान बैठे होते हैं जो पहचान हमें समाज और परिस्थिति से मिली होती है। वेदांत सत्य के अन्वेषण हेतु अभी तक की सर्वश्रेष्ठ रचना है, पर वह हमारे लिए उपयोगी हो सके इसके लिए आवश्यक है कि उसकी व्याख्या भी हमारे काल और स्थिति अनुसार हो। यह पुस्तक मूल 'आत्मबोध' के केंद्रीय श्लोकों पर आचार्य प्रशांत द्वारा किए गए भाष्यों का संकलन है। यह पुस्तक आत्म को बोध की ओर उन्मुख करने का एक प्रयास है।
Index
1. मुक्ति डरावनी नहीं, बड़ी हार्दिक होती है 2. आत्मज्ञान कैसे हो? 3. कर्म नहीं, बोध 4. मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य 5. जहाँ दूरी है, वहाँ कल्पना है 6. डर कुछ कहना चाहता है
View all chapters