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अष्टावक्र गीता भाष्य 2023 प्रकरण (1-2) [राष्ट्रीय बेस्टसेलर]

अध्याय १ और २ पर भाष्य

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Book Details

Language
hindi
Print Length
240

Description

अष्टावक्र गीता को अद्वैत वेदान्त के सर्वोच्च ग्रन्थों में से एक माना जाता है। यह ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के मध्य एक वेदान्तिक संवाद है, जहाँ ग्यारह वर्ष के युवा गुरु अपने योग्य शिष्य से उच्चतम आध्यात्मिक ज्ञान की व्याख्या कर रहे हैं।

यह पुस्तक अष्टावक्र गीता पर आचार्य प्रशांत की व्याख्याओं का संकलन है। आचार्य जी एवं साधकों के मध्य गहन चर्चा और प्रश्नोत्तरी के फलस्वरूप ये व्याख्या इस पुस्तक में संकलित की गयी है।

साधक अपनी शंकाओं को दूर करने और अपने दैनिक जीवन में अष्टावक्र गीता के व्यावहारिक अनुप्रयोग से सम्बन्धित प्रश्न पूछते हैं। आचार्य प्रशांत शास्त्र की ऊँचाइयों को उस स्तर पर लाते हैं जहाँ श्रोतागण गूढ़ श्लोकों को भी आसानी से समझ सकते हैं, उनसे लाभान्वित हो सकते हैं और अन्ततः आत्मज्ञान की ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं।

इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप अध्यात्म के शुरुआती दौर में हैं अथवा एक गहरे साधक हैं; यदि आप समकालीन परिप्रेक्ष्य और भाषा में अद्वैत वेदान्त के कालातीत ज्ञान से परिचित होना चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए अनिवार्य है।

Index

1. संसार से आसक्ति ही दुख है (श्लोक 1.1-1.2) 2. देह नहीं, शुद्ध चैतन्य मात्र (श्लोक 1.3) 3. देह से पार्थक्य (श्लोक 1.4) 4. न तुम दृश्य हो, न दृष्टा हो (श्लोक 1.5) 5. मन के झमेलों में मत फँसो (श्लोक 1.6) 6. दृष्टा मात्र हो तुम! (श्लोक 1.7)
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