Description
अपरोक्षानुभूति का शाब्दिक अर्थ है - प्रत्यक्ष अनुभव अर्थात् सीधे और सरल तरीके से स्वयं की सच्चाई को जान लेना। अपरोक्षानुभूति आदि शंकराचार्य द्वारा रचित प्रकरण ग्रंथ है। इसमें आचार्य शंकर ने वेदांत दर्शन के मर्म को सरल भाषा में प्रस्तुत किया है। शुरुआती श्लोकों में 'साधन चतुष्टय' का वर्णन है अर्थात् वो चार गुण जो एक साधक में होने अनिवार्य हैं। और फिर मध्य के श्लोकों में संसार की उत्पत्ति, हमारे अज्ञान और भ्रमित रहने के कारण और आत्मज्ञान के उपायों पर चर्चा की गई है। और अंतिम श्लोकों में निदिध्यासन के पन्द्रह अंगों—यम, नियम, त्याग, मौन, देश, काल, आसन, मूलबन्ध, देह की समता, नेत्रों की स्थिति, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि—को परिभाषित किया गया है। आदिशंकर कहते हैं कि इन सभी अंगों के निरन्तर अभ्यास के बिना ज्ञान प्राप्ति असंभव है। अपरोक्षानुभूति में जो आत्मज्ञान के लिए बातें कही गईं हैं वह सीधी हैं, सरल हैं, सहज हैं; पर वो हमारे लिए सहज नहीं हैं। हम उस सहजता से बहुत दूर निकल चुके हैं, हम जटिल हो चुके हैं।