आध्यात्मिक भ्रांतियाँ

आध्यात्मिक भ्रांतियाँ

प्रचलित भ्रांतियाँ व उनका निवारण
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Paperback Details
hindi Language
304 Print Length
Description
भाषा सीमित है, और इन सीमाओं का कटु बोध जितना आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते समय होता है उतना और कभी नहीं होता। प्राचीन काल से ही मनुष्य ने ईश्वरीय अनुकंपा को शब्दों द्वारा दूसरों तक पहुँचाने के निरंतर प्रयास किये हैं, परन्तु सदी-दर-सदी संतों व रहस्यदर्शियों के सरलतम वचनों को भी मनुष्य ने अपने अहंकार की बलि चढ़ा दिया है।

यह पुस्तक आचार्य प्रशांत के शब्दयोग सत्रों की एक ऐसी श्रृंखला है जो मन से हर प्रकार की भ्रांतियों की सफ़ाई करती है। आचार्य जी के सरल वक्तव्यों के सामने सैद्धांतिक जटिलता कोई ठौर नहीं पाती। यह ग्रंथ जहाँ एक तरफ़ सामान्यतः निजी कहे जाने वाले विषयों जैसे भावुकता, प्रेम, और कर्ता-भाव की बात करता है तो दूसरी ओर समय, सत्य, और आत्म जैसे दार्शनिक विषयों पर भी प्रकाश डालता है।

इस पुस्तक का उद्देश्य पाठक के मन को ज्ञान से भरना नहीं है। यह विरल ग्रंथ तो मानवता को ज्ञान के उस तमाम बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए है जो अज्ञान से भी ज़्यादा खतरनाक है।

जिन्हें ज्ञान से मुक्ति चाहिए हो, वे ही श्रद्धापूर्वक इस ग्रंथ में प्रवेश करें।
Index
CH1
भावुकता हिंसा है, संवेदनशीलता करुणा
CH2
संवेदनशीलता, भावुकता नहीं
CH3
जो समय में है वो समय बर्बाद कर रहा है
CH4
काल और कालातीत
CH5
त्याग – छोड़ना नहीं है, जागना है
CH6
छूटता तब है जब पता भी न चले कि छूट गया
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