'नीम लड्डू' कोई पुस्तक मात्र नहीं है, बल्कि दवाइयों का एक पिटारा है। यह दवाई हमें 'मन की कमज़ोरियों' व 'मन के अंधकार' जैसी ख़तरनाक बीमारियों से बचाती है।
निःसंदेह ये लड्डू हमारे लिए कड़वे हैं क्योंकि हमें भोगवादी बाज़ार, मीडिया और बॉलीवुड के द्वारा परोसे जा रहे मीठे ज़हर की आदत लग गयी है।
इस ज़हर के कारण हम भीतर से भी और बाहर से भी ख़त्म हो रहे हैं। भीतर भोग की लालसा, असंवेदनशीलता, और बेचैनी समय के साथ बढ़ ही रही है, और बाहर यह जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और वन्यजीवों की क्षति, और बढ़ती विद्वेष की भावना के रूप में परिलक्षित हो रही है।
ऐसी आपातकालीन स्थिति में कोई भी सच्चा मार्गदर्शक लोरियाँ सुनाकर या सहलाकर हमें ख़तरे से अवगत नहीं कराएगा। उसे ज़ोर देकर सच्ची और खरी-खरी बातें बोलनी पड़ेंगी, चाहे वो कड़वी ही क्यों न लगें।
आचार्य प्रशांत इस पुस्तक के माध्यम से वही काम कर रहे हैं।
ये 'नीम लड्डू' आपके लिए एक उपहार हैं, जिसमें अलग-अलग तरह के दो सौ लड्डू हैं। ये लड्डू एक बीमार मन के लिए काफ़ी असरकारक हैं।
सलाह रहेगी कि एक स्वस्थ जीवन के लिए प्रतिदिन इनका सेवन करें।
Index
1. अकेलापन मिटाने के लिए शादी2. अकेले रह जाना ही बेहतर है3. अपनी औक़ात पहचानो4. अपनी कमज़ोरियों से भिड़ जाओ5. अपनी नज़र में गिरना ज़रूरी है6. अपने बच्चों को क्यों बिगाड़ रहे हो?