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Book Details
Language
hindi
Print Length
204
Description
अपूर्ण चेतना ही मनुष्य के रूप में जन्म लेती है। बच्चा जन्म लेता है और पहली बार जब आँखें खोलता है तो आँखों के सामने पाता है संसार को।
संसार हमारी अपूर्णता का ही प्रक्षेपण मात्र है पर ये संसार तमाम तरीक़ों से लगातार ये दावा करता है कि
वो हमें तृप्त कर देगा। जगत का काम ही है हर तरीक़े से हमारी इन्द्रियों को और मन को पकड़ना। सबकुछ हममें कामना का संचार करने के लिए है, और कामना से उठता है दुख।
अब अगर जगत पल-पल एक ऐसा झूठ दिखा रहा है जिससे हमें दुख ही मिलना है तो इस जगत को एक अर्थ में शत्रु कहना ग़लत नहीं होगा। इसलिए श्रीकृष्ण इस जगत को चक्रव्यूह बताते हैं और अर्जुन से कहते हैं - 'युद्धयस्व!’
ख़ासकर आज के समय में प्रकृति के संसाधनों और आमलोगों के मानस पर उनका वर्चस्व है जो झूठ के पक्ष में हैं और जिन्हें सच पसन्द है वो बस कीर्तन करना जानते हैं।
इस पुस्तक में आचार्य प्रशांत ने आज धर्मयुद्ध का क्या स्वरूप होगा, इस बात पर ज़ोर दिया है। उन्होंने बताया है कि आज का युद्ध स्वार्थ और अज्ञान की ताक़तों के विरुद्ध है जो पृथ्वी को विनाश की ओर तेज़ी से ले जा रहे हैं। आज युद्ध ही ज्ञान का साधन है और युद्ध ही ज्ञान का प्रमाण है।
Index
1. इंसान की सब समस्याओं का मूल समाधान2. जवान हो, और खून नहीं खौलता?3. दुनिया में इतना अधर्म है, कृष्ण कब प्रकट होंगे?4. विचार बनाम वृत्ति5. जिम जाती हूँ, फिर दुगना खाती हूँ - ‘लूज़र’ ज़िन्दगी से कैसे बचूँ?6. तितिक्षस्व
अपूर्ण चेतना ही मनुष्य के रूप में जन्म लेती है। बच्चा जन्म लेता है और पहली बार जब आँखें खोलता है तो आँखों के सामने पाता है संसार को।
संसार हमारी अपूर्णता का ही प्रक्षेपण मात्र है पर ये संसार तमाम तरीक़ों से लगातार ये दावा करता है कि
वो हमें तृप्त कर देगा। जगत का काम ही है हर तरीक़े से हमारी इन्द्रियों को और मन को पकड़ना। सबकुछ हममें कामना का संचार करने के लिए है, और कामना से उठता है दुख।
अब अगर जगत पल-पल एक ऐसा झूठ दिखा रहा है जिससे हमें दुख ही मिलना है तो इस जगत को एक अर्थ में शत्रु कहना ग़लत नहीं होगा। इसलिए श्रीकृष्ण इस जगत को चक्रव्यूह बताते हैं और अर्जुन से कहते हैं - 'युद्धयस्व!’
ख़ासकर आज के समय में प्रकृति के संसाधनों और आमलोगों के मानस पर उनका वर्चस्व है जो झूठ के पक्ष में हैं और जिन्हें सच पसन्द है वो बस कीर्तन करना जानते हैं।
इस पुस्तक में आचार्य प्रशांत ने आज धर्मयुद्ध का क्या स्वरूप होगा, इस बात पर ज़ोर दिया है। उन्होंने बताया है कि आज का युद्ध स्वार्थ और अज्ञान की ताक़तों के विरुद्ध है जो पृथ्वी को विनाश की ओर तेज़ी से ले जा रहे हैं। आज युद्ध ही ज्ञान का साधन है और युद्ध ही ज्ञान का प्रमाण है।
Index
1. इंसान की सब समस्याओं का मूल समाधान2. जवान हो, और खून नहीं खौलता?3. दुनिया में इतना अधर्म है, कृष्ण कब प्रकट होंगे?4. विचार बनाम वृत्ति5. जिम जाती हूँ, फिर दुगना खाती हूँ - ‘लूज़र’ ज़िन्दगी से कैसे बचूँ?6. तितिक्षस्व