वेदान्त की बात जितनी स्पष्टता से महात्मा बुद्ध के दर्शन में उभरकर आती है, उतनी स्पष्टता से शायद कहीं और नहीं। और बुद्ध की वाणी सबसे ज़्यादा साफ़ होकर सुनाई देती है आचार्य नागार्जुन में।
‘शून्यता सप्तति’ आचार्य नागार्जुन द्वारा रचित ग्रंथ है, जो मानव के मूल दुख को संबोधित करता है। शून्यता पर आधारित यह ग्रंथ हमारी मान्यताओं और मन में उठ रहे कुतर्कों पर सवाल करता है।
आचार्य नागार्जुन की सारी बात शून्यता की थी। और आचार्य नागार्जुन तथ्यों की दुनिया में भी गहरी पैठ रखते थे — वो रसायनविद् थे, खगोलशास्त्री थे और तंत्रविद्या का भी गहरा ज्ञान रखते थे। आचार्य नागार्जुन ने तर्क को बड़ा महत्व दिया है, और तर्क की दुनिया में पूरे विश्व में उनका नाम बहुत-बहुत सम्मान से लिया जाता है।
मूल 'शून्यता सप्तति' ग्रंथ में कुल तिहत्तर छंद हैं। प्रस्तुत पुस्तक में प्रथम बारह छंदों पर आचार्य जी के व्याख्यानों को संकलित किया गया है। आचार्य जी ने एक-एक छंद को आज के परिप्रेक्ष्य में व आपके जीवन से जोड़कर अत्यंत व्यावहारिक रूप से समझाया है, जिससे यह अमूल्य आध्यात्मिक ज्ञान आम जनमानस के लिए भी सहज और बोधगम्य हो जाता है।
Index
1. व्यावहारिक सत्य की उपेक्षा करके परमार्थ नहीं हासिल होता2. निर्वाण भी शून्य है3. न आदि न अन्त, मात्र प्रक्रिया4. न उत्पत्ति, न स्थिति, न विनाश5. अनुभव नहीं, बोध6. सत्य की समाप्ति नहीं, असत्य की शुरुआत नहीं