आध्यात्मिक साहित्य में संतवाणी एक विशेष स्थान रखती है। वेदान्त के गूढ़ सिद्धांतों को सरल करके आम जनमानस की भाषा में कह देना, इसकी बात ही निराली है।
संतों द्वारा बोले गये शब्द आज समाज में उपस्थित तो है, पर उनका मार्मिक अर्थ कहीं खो गया है। कबीर साहब हो या गुरु नानक मीराबाई हो या लल्लेश्वरी, उन्होंने हमें मिट्टी की भाषा में आकाश देना चाहा पर हमने उनके अमूल्य वचनों के अर्थ भी अपने अनुसार ही कर डाले।
अगर हम संतों के वचनों का सही अर्थ समझ पायें, तो एक भजन, एक दोहा और कभी-कभी तो एक शब्द ही मन की अनेक गुत्थियों सुलझा देता है। आचार्य प्रशांत इस पुस्तक के माध्यम से सतों की सीख हमें आज की भाषा में समझा रहे हैं। यह पुस्तक उन सभी के लिए है जो संतों की संगति पाकर अपने जीवन को सही दिशा देना चाहते हैं।
Index
1. भक्ति का आधार क्या है?2. सालाही सालाहि एती सुरति न पाईआ3. सतनाम का क्या महत्व है?4. मन्दिर- जहाँ का शब्द मौन में ले जाए5. सुनना ही समाधान है6. खोजना है खोना, ठहरना है पाना