समय [Hardbound]

समय [Hardbound]

यूँ ही फिसल न जाए ज़िंदगी
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10 Ratings & 2 Reviews
Paperback Details
hindi Language
196 Print Length
Description
इंसान का मन समय में ही जीता है और समय से ही सबसे ज़्यादा भयभीत रहता है। अतीत, वर्तमान और भविष्य — हम समय को इन तीन भागों में बाँटकर देखते हैं। मन या तो अतीत की स्मृतियों में खोया रहता है या भविष्य की कल्पनाओं में। पर यह कभी समझ नहीं पाता कि समय है क्या।

दुनियाभर के दार्शनिकों, विचारों और वैज्ञानिकों ने काल को गहराई से समझने का प्रयास किया है पर कुछ ही लोग हुए हैं जो काल को जानकार कालातीत में प्रवेश कर पाये हैं।

इस पुस्तक में हमें आचार्य प्रशांत समझा रहे हैं कि समय क्या है और कैसे हम इस महत्वपूर्ण संसाधन का सदुपयोग करके अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
Index
CH1
करते क्या हो खाली समय में?
CH2
ये होता है खाली बैठे-बैठे सोचने से
CH3
हमें एक जानलेवा बीमारी लगी हुई है
CH4
जीवन का सीमित ईंधन कामनाओं-वासनाओं में मत जलाओ
CH5
यूँ ही फिसल न जाए ज़िन्दगी
CH6
बॉस ने कहा, ‘8 घंटे बहुत कम हैं, 12 घंटे काम किया करो’
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