इंसान का मन समय में ही जीता है और समय से ही सबसे ज़्यादा भयभीत रहता है। अतीत, वर्तमान और भविष्य – हम समय को इन तीन भागों में बाँटकर देखते हैं। मन या तो अतीत की स्मृतियों में खोया रहता है या भविष्य की कल्पनाओं में। पर यह कभी समझ नहीं पाता कि समय है क्या।
दुनियाभर के दार्शनिकों, विचारकों और वैज्ञानिकों ने काल को गहराई से समझने का प्रयास किया है। पर कुछ ही लोग हुए हैं जो काल को जानकर कालातीत में प्रवेश कर पाये हैं।
इस पुस्तक में हमें आचार्य प्रशांत समझा रहे हैं कि समय क्या है और कैसे हम इस महत्वपूर्ण संसाधन का सदुपयोग करके अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
Index
1. करते क्या हो खाली समय में?2. ये होता है खाली बैठे-बैठे सोचने से 3. हमें एक जानलेवा बीमारी लगी हुई है 4. जीवन का सीमित ईंधन कामनाओं-वासनाओं में मत जलाओ 5. यूँ ही फिसल न जाए ज़िन्दगी6. ब्रह्म मुहूर्त कौनसा?
View all chapters
समय
यूँ ही फिसल न जाए ज़िंदगी
eBook
Available Instantly
Suggested Contribution:
₹50
₹0
Already have eBook?
Login
Book Details
Language
hindi
Description
इंसान का मन समय में ही जीता है और समय से ही सबसे ज़्यादा भयभीत रहता है। अतीत, वर्तमान और भविष्य – हम समय को इन तीन भागों में बाँटकर देखते हैं। मन या तो अतीत की स्मृतियों में खोया रहता है या भविष्य की कल्पनाओं में। पर यह कभी समझ नहीं पाता कि समय है क्या।
दुनियाभर के दार्शनिकों, विचारकों और वैज्ञानिकों ने काल को गहराई से समझने का प्रयास किया है। पर कुछ ही लोग हुए हैं जो काल को जानकर कालातीत में प्रवेश कर पाये हैं।
इस पुस्तक में हमें आचार्य प्रशांत समझा रहे हैं कि समय क्या है और कैसे हम इस महत्वपूर्ण संसाधन का सदुपयोग करके अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
Index
1. करते क्या हो खाली समय में?2. ये होता है खाली बैठे-बैठे सोचने से 3. हमें एक जानलेवा बीमारी लगी हुई है 4. जीवन का सीमित ईंधन कामनाओं-वासनाओं में मत जलाओ 5. यूँ ही फिसल न जाए ज़िन्दगी6. ब्रह्म मुहूर्त कौनसा?