राम निरंजन न्यारा रे (Ram Niranjan Nyaaraa Re)

राम निरंजन न्यारा रे (Ram Niranjan Nyaaraa Re)

सम्पूर्ण भजन व भाष्य
5/5
6 Ratings & 2 Reviews
Paperback Details
hindi Language
180 Print Length
Description
राम निरंजन न्यारा रे,

अंजन सकल पसारा रे!


अंजन माने प्रकृति; ये शरीर, हमारे विचार, हमारी मान्यताएँ, सुख-दुख, रिश्ते-नाते, कल्पनाएँ, आकांक्षाएँ—सब अंजन का ही विस्तार है, सब अंजन का ही पसार है। तो निरंजन क्या है? राम हैं निरंजन — वो जो इस पूरे विस्तार से न्यारे हैं, विशिष्ट हैं।

क्या आपके जीवन में भी कुछ ऐसा है जो इस प्रकृति के फैलाव से अलग है? क्या आपके जीवन में कुछ ऐसा है जो आपको उस निरंजन राम से मिलवा सके?

प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य जी कबीर साहब के इस भजन का वेदान्तिक अर्थ कर रहे हैं और एक-एक शब्द के माध्यम से हमारे जीवन के अंजन की परतों को खोल रहे हैं। पूरी चर्चा में आचार्य जी बता रहे हैं कि कैसे अंजन से घिरे रहकर भी कोई उसी अंजन को माध्यम बना सकता है निरंजन तक पहुँचने का। आशा है इस पुस्तक के माध्यम से आप भी अंजन से निरंजन की ओर बढ़ पाएँगे।
Index
CH1
‘मैं’ विशेष नहीं, प्रकृति की धूल भर है
CH2
ओम्: सान्त से अनन्त की यात्रा
CH3
साधन को पकड़े रहना सबसे बड़ा बन्धन
CH4
जिसे पूजोगे, उसी को पा जाओगे
CH5
सच या संसार, किसे चाहे अहंकार?
CH6
असली चोर बाहर नहीं, भीतर है
Choose Format
Share this book
Have you benefited from Acharya Prashant's teachings? Only through your contribution will this mission move forward.
Reader Reviews
5/5
6 Ratings & 2 Reviews
5 stars 100%
4 stars 0%
3 stars 0%
2 stars 0%
1 stars 0%