AP Books
प्रकृति [नवीन प्रकाशन]

प्रकृति [नवीन प्रकाशन]

साध्य नहीं, साधन
5/5
4 Ratings
eBook
Available Instantly
Suggested Contribution
₹21
₹150
Paperback
In Stock
43% Off
₹159
₹280
Already have eBook?
Login

Book Details

Language
hindi
Print Length
210

Description

आचार्य जी की प्रस्तुत पुस्तक आज के जलवायु परिवर्तन के दौर में लोगों को जागरुक करने की एक अनिवार्य पहल है। हमने आज अपनी प्रकृति की जो दुर्दशा की है उसे सुधारने का एकमात्र उपाय है प्रकृति और स्वयं के रिश्ते को समझना। हम जीते तो प्रकृति में ही हैं पर प्रकृति को न समझ पाने से अपने दुखों, बन्धनों और कामनाओं को कभी नहीं समझ पाते। हम एक पूरा जीवन बेहोशी में गुज़ार देते हैं। हम अपनी अपूर्णता और असन्तुष्टि का समाधान बाहर खोजते हैं। हमें लगता है कि बाहर भोग-भोगकर हम संतुष्ट हो जाएँगे। लेकिन हम जितना बाहर से कुछ भरने का प्रयास करते हैं उतना भीतर से अधूरे होते जाते हैं। आचार्य जी समझाते हैं कि समस्या कमी की नहीं, अधिकता की है। हम शरीर बनकर जीते हैं और दुनिया को भी अपनी भोग का साधन मानते हैं यही कारण है कि आज हमारी भोगवादी प्रवृत्ति ने पृथ्वी को, प्रकृति को नष्ट होने की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। हम अपने कामनाओं के पीछे इतने बेहोश हैं कि हमें नहीं समझ आता कि प्रकृति को होने वाली क्षति हमारी अपनी क्षति है। आचार्य जी की पुस्तक के माध्यम से जागरूकता फैलाने की इस पहल को आगे बढ़ाएँ और प्रकृति के प्रति अपना कर्तव्य निभाएँ।

Index

1. बन्दर, केला, बन्दरिया 2. वासना गलत है तो भगवान ने बनायी क्यों? 3. जब तक है कर्ताभाव तब तक है दासता 4. कर्म के पीछे कोई कर्ता नहीं, बस गुण मात्र हैं 5. माटी कुदम करेन्दी यार 6. ‘माँ’ बोलकर शोषण?
View all chapters
Buy new:
₹159
43% Off
₹280
In Stock
Free Delivery
Quantity:
1
Share this Book
Have you benefited from Acharya Prashant's teachings? Only through your contribution will this mission move forward.
Reader Reviews
5/5
4 Ratings
5 stars 100%
4 stars 0%
3 stars 0%
2 stars 0%
1 stars 0%