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Book Details
Language
hindi
Print Length
222
Description
अध्यात्म में सबसे विकृत शब्दों में एक है 'ध्यान'। हम में से ज़्यादातर लोग जो अपनेआप को आध्यात्मिक या धार्मिक बोलते हैं, वे इस भ्रम में रहते हैं कि ध्यान किसी विशेष आसन में बैठकर या दिन के किसी विशेष समय पर की जाने वाली कोई विधि है। और हमें लगता है ये करके हमें ख़ुद को सत्य का साधक बोलने का अधिकार मिल गया है।
पिछले लगभग सौ वर्षों में पाश्चात्य संस्कृति ने जैसे अनेक चीज़ों को प्रभावित किया है, उसका परिणाम यह हुआ है कि ध्यान एक देह-केन्द्रित चीज़ बनकर आम लोगों में 'मेडिटेशन' के नाम से प्रचलित हो गया है। आज बाज़ार में ध्यान की सैंकड़ों विधियाँ उपलब्ध हैं; जिसको जो विधि पसन्द आती है वह उसे अपना लेता है।
ध्यान हमें कुछ पलों के लिए नहीं, निरंतर चाहिए। ध्यान की विधियाँ आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत में तो उपयोगी हो सकती हैं, परन्तु वास्तविक आंतरिक उन्नति के लिए तो ध्यान को हमारे जीवन का केन्द्र ही बनना पड़ेगा।
आचार्य प्रशांत इस पुस्तक के माध्यम से हमें सच्चे ध्यान की ओर ले चलते हैं ताकि हम अपने जीवन के तमाम झूठों से मुक्ति पा सकें।
Index
1. ध्यान क्या है? ध्यान की विधियाँ क्या हैं?2. ध्यान की विधियों की हक़ीक़त3. साउंडऑफ साइलेंस (Sound of Silence) का झूठ4. ध्यान में विचित्र आवाज़ें सुनाई देती हैं5. साँस तो लगातार चलती है, ध्यान लगातार क्यों नहीं चलता?6. ध्यान और एकाग्रता (मेडिटेशन और कॉनसन्ट्रेशन)
अध्यात्म में सबसे विकृत शब्दों में एक है 'ध्यान'। हम में से ज़्यादातर लोग जो अपनेआप को आध्यात्मिक या धार्मिक बोलते हैं, वे इस भ्रम में रहते हैं कि ध्यान किसी विशेष आसन में बैठकर या दिन के किसी विशेष समय पर की जाने वाली कोई विधि है। और हमें लगता है ये करके हमें ख़ुद को सत्य का साधक बोलने का अधिकार मिल गया है।
पिछले लगभग सौ वर्षों में पाश्चात्य संस्कृति ने जैसे अनेक चीज़ों को प्रभावित किया है, उसका परिणाम यह हुआ है कि ध्यान एक देह-केन्द्रित चीज़ बनकर आम लोगों में 'मेडिटेशन' के नाम से प्रचलित हो गया है। आज बाज़ार में ध्यान की सैंकड़ों विधियाँ उपलब्ध हैं; जिसको जो विधि पसन्द आती है वह उसे अपना लेता है।
ध्यान हमें कुछ पलों के लिए नहीं, निरंतर चाहिए। ध्यान की विधियाँ आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत में तो उपयोगी हो सकती हैं, परन्तु वास्तविक आंतरिक उन्नति के लिए तो ध्यान को हमारे जीवन का केन्द्र ही बनना पड़ेगा।
आचार्य प्रशांत इस पुस्तक के माध्यम से हमें सच्चे ध्यान की ओर ले चलते हैं ताकि हम अपने जीवन के तमाम झूठों से मुक्ति पा सकें।
Index
1. ध्यान क्या है? ध्यान की विधियाँ क्या हैं?2. ध्यान की विधियों की हक़ीक़त3. साउंडऑफ साइलेंस (Sound of Silence) का झूठ4. ध्यान में विचित्र आवाज़ें सुनाई देती हैं5. साँस तो लगातार चलती है, ध्यान लगातार क्यों नहीं चलता?6. ध्यान और एकाग्रता (मेडिटेशन और कॉनसन्ट्रेशन)