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मृत्यु [नवीन प्रकाशन]

मरण न जाने कोय

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Book Details

Language
hindi
Print Length
221

Description

एक आम आदमी की पूरी ज़िन्दगी भय से संचालित होती है और उस भय के केंद्र में बैठा होता है मृत्यु का भय, मिट जाने का भय। हमारा प्रत्येक कर्म बस इसी ख़ातिर होता है कि हमारी शारीरिक मृत्यु को हम किसी तरह टाल सकें या मौत के बाद भी हम किसी-न-किसी रूप में जीवित रहें।

इस डर का प्रमुख कारण है देह से और देह से जुड़े रिश्तों से हमारा गहरा तादात्म्य। शरीर की तो प्रकृति ही है एक दिन जन्मना, प्रौढ़ होना और फिर ढल जाना। पर क्या सबकुछ नश्वर ही है? क्या कुछ ऐसा भी है जो कभी न मिटता हो? और अगर ऐसा कुछ है, तो क्या संसार में रहते हुए उसे प्राप्त किया जा सकता है?

प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत मृत्यु के विषय में हमें कुछ मूलभूत बातें समझाते हैं। जिस चीज़ से हम सदा भागते रहे हैं, यह पुस्तक एक अवसर है उसे क़रीब से जानकार उसके भय से मुक्त होने का।

Index

1. जीवन-मरण का ये चक्र चल क्यों रहा है? 2. मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं? हमारा क्या होता है? 3. पुनर्जन्म तो होता है, पर आपका नहीं होगा 4. जब मृत्यु निकट हो 5. मृत्यु के बाद क्या? 6. आत्मा ऐसा नहीं करती मृत्यु के बाद
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