मृत्यु (Mrityu) [नवीन प्रकाशन]

मृत्यु (Mrityu) [नवीन प्रकाशन]

मरण न जाने कोय
5/5
4 Ratings & 1 Reviews
Paperback Details
hindi Language
212 Print Length
Description
एक आम आदमी की पूरी ज़िन्दगी भय से संचालित होती है और उस भय के केंद्र में बैठा होता है मृत्यु का भय, मिट जाने का भय। हमारा प्रत्येक कर्म बस इसी ख़ातिर होता है कि हमारी शारीरिक मृत्यु को हम किसी तरह टाल सकें या मौत के बाद भी हम किसी-न-किसी रूप में जीवित रहें।

इस डर का प्रमुख कारण है देह से और देह से जुड़े रिश्तों से हमारा गहरा तादात्म्य। शरीर की तो प्रकृति ही है एक दिन जन्मना, प्रौढ़ होना और फिर ढल जाना। पर क्या सबकुछ नश्वर ही है? क्या कुछ ऐसा भी है जो कभी न मिटता हो? और अगर ऐसा कुछ है, तो क्या संसार में रहते हुए उसे प्राप्त किया जा सकता है?

प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत मृत्यु के विषय में हमें कुछ मूलभूत बातें समझाते हैं। जिस चीज़ से हम सदा भागते रहे हैं, यह पुस्तक एक अवसर है उसे क़रीब से जानकार उसके भय से मुक्त होने का।
Index
CH1
जीवन-मरण का ये चक्र चल क्यों रहा है?
CH2
मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं? हमारा क्या होता है?
CH3
पुनर्जन्म तो होता है, पर आपका नहीं होगा
CH4
जब मृत्यु निकट हो
CH5
मृत्यु के बाद क्या?
CH6
आत्मा ऐसा नहीं करती मृत्यु के बाद
Choose Format
Share this book
Have you benefited from Acharya Prashant's teachings? Only through your contribution will this mission move forward.
Reader Reviews
5/5
4 Ratings & 1 Reviews
5 stars 100%
4 stars 0%
3 stars 0%
2 stars 0%
1 stars 0%