Combo books @99/book! 60+ combos available. FREE DELIVERY! 😎🔥
AP Books

मन [नवीन प्रकाशन]

बन्धन भी, मुक्ति भी

book
Already have eBook?
Login
eBook
Available Instantly
Suggested Contribution
₹51
₹150
Paperback
In Stock
29% Off
₹159
₹225
Now you can read eBook on our mobile app for the best reading experience View App
Quantity:
1
In stock
Free Delivery

Book Details

Language
hindi
Print Length
224

Description

मन क्या है? मन अपनेआप में एक व्यवस्था है जिसमें तमाम विचारों और भावनाओं की लहरें उठती-गिरती रहती हैं। मन को वास्तव में कहीं पहुँचना नहीं है। बल्कि इच्छा करना, इच्छित वस्तु को पाना, भोगना, फिर असन्तुष्ट हो जाना, फिर इच्छा करना, इसी दुष्चक्र में घूमते रहना मन का प्रयोजन है। मन की प्राकृतिक व्यवस्था में ऊँचाई या गहराई के लिए कोई जगह नहीं है। जहाँ तक हमारी बात है, हमारा प्रयोजन है एक आज़ाद और भरपूर जीवन जीना जिसमें कोई चक्रवत बाध्यता न हो। पर मन में उठती लहरें हमारे नियन्त्रण में नहीं होती हैं। मन हमसे पूछकर नहीं चल रहा होता। हाँ, हम ज़रूर मन के ग़ुलाम बन जाते हैं। तो मन के अनुसार चलने का मतलब ही है एक बहुत-बहुत गहरी ग़ुलामी। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से आचार्य प्रशांत हमें बताते हैं कि मन की दासता में जीना कोई अनिवार्यता नहीं है। मन तो अहम् की छाया मात्र है, तुम अपनेआप को जैसे परिभाषित करोगे, तुम अपनी जो मान्यता रखोगे, मन वैसा ही हो जाएगा। तो मन की सूक्ष्मताओं को गहराई से समझने और आपको मन के पार ले जाने में यह पुस्तक अवश्य सहायक सिद्ध होगी।

Index

1. मन: हज़ार जुनून, एक सुकून 2. क्यों परेशान है मन? 3. बदले की आग में जलता है मन 4. नकारात्मक सोच के फ़ायदे 5. जब मन पर उदासी छायी रहे 6. बातूनी मन को चुप कैसे कराएँ?
View all chapters
Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light