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जानदार व्यक्तित्व (उक्तियों के साथ) – नवीन प्रकाशन

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Book Details

Language
hindi
Print Length
187

Description

मनुष्य जन्म लेता है तो उसके पास कोई पहचान नहीं होती, जैसे कि खाली आकाश हो। लेकिन वृत्ति का बीज उसके मस्तिष्क में पहले से मौजूद है तो वह आतुर है कि कोई अपनी पहचान बना लूँ।

फिर परिवार, समाज, शिक्षा और परिवेश के द्वारा उसको तमाम पहचानें दी जाती हैं और वह उन पहचानों को सोख लेता है। अब उसके पास कई मुखौटों के परत हैं। इन्हीं मुखौटों से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

चूँकि ये सारी पहचानें बाहरी और सीमित हैं, इसलिए इनको लेकर व्यक्ति भयाक्रान्त रहता है। साधारण मनुष्य के व्यक्तित्व के आधार में दो ही चीज़ें होती हैं - कुछ पाने का लोभ और कुछ खोने का डर। तो इस तरह से व्यक्ति का व्यक्तित्व ही व्यक्ति का बन्धन बन जाता है।

फिर दुर्लभ ही सही लेकिन ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जो अपनी निजी व्यक्तित्व के सीमाओं को तोड़कर समूचे समष्टि के कल्याण के लिए व्यवहार करते हैं। ये न उत्साही होते हैं, न गम्भीर होते हैं। ये समस्त प्रकार के आग्रहों, छवियों और व्यक्तित्वों से मुक्त होते हैं।

इनका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं होता, वक़्त की जो माँग होती है, उसके अनुसार वो व्यक्तित्व धारण कर लेते हैं। इनके जीवन में वास्तव में जान होती है, और इसीलिए इन्हें हम निस्सन्देह 'जानदार व्यक्तित्व' की संज्ञा दे सकते हैं।

Index

1. शानदार व्यक्तित्व के मालिक कैसे बनें? 2. न छोटे हो, न कमज़ोर — अपनी ताक़त जगाओ तो सही 3. तुम भेड़ नहीं हो, फिर भीड़ के पीछे क्यों? 4. ये सिर झुकने के लिए नहीं है 5. हिचक और डर है जीवन में? 6. तुम कमज़ोर हो, इसलिए लोग तुम्हें दबाते हैं
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