आज के समय में क्लाइमेट चेंज मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। अत्यधिक बढ़ता तापमान, बिगड़ता वर्षा चक्र, अनियमित हवाएँ व तूफान, विलुप्त होती प्रजातियाँ, पिघलते ग्लेशियरों के कारण बढ़ता समुद्र जलस्तर - ये सब क्लाइमेट चेंज के कुछ प्रभाव है।
हम सिक्स्थ मास एक्स्टिंक्शन फ़ेज़ (छठे महाप्रलय) में प्रवेश कर चुके हैं। प्रजातियों की विलुप्ति दर आज साधारण दर से बढ़कर हज़ार गुना हो गई है। हम त्वरित गति से अपने ही विनाश की ओर बढ़ रहे हैं और महत्वपूर्ण बात ये है कि इस विनाश का कारण भी हम खुद ही हैं।
वेदान्त कहता है — हमारे बाहर के सब कर्म हमारी भीतरी बेचैनी की अभिव्यक्ति होते हैं। हम नहीं जानते कि हम कौन हैं, हम यहाँ किसलिए हैं, हमारी वास्तविक ज़रूरत क्या है, इसलिए हम अन्तहीन भोग करते हैं, प्रजनन करते हैं और एक अर्थहीन जीवन जीते हैं।
लेकिन क्या ये भोग और भोग की वस्तुएँ हमारे मन के खालीपन को भर पा रही हैं? इतना भोग करने पर भी वो भीतरी बेचैनी घटने की बजाय और बढ़ती क्यों जा रही है?
इस पुस्तक के माध्यम से आचार्य जी ने समझाया है कि कैसे मन की बेचैनी और उसको मिटाने की अनंत अज्ञान भरी कोशिशों का ही परिणाम क्लाइमेट चेंज है। यह पुस्तक क्लाइमेट चेंज के अर्थ और खतरनाक प्रभावों के साथ उसके असल कारण को समझने और उस ज्ञान से उठे असली समाधान तक पहुँचने में किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत मददगार है।
Index
1. पृथ्वी बुख़ार में है2. लद्दाख ही नहीं, हम सब जल रहे हैं3. मरोगे बाद में, पहले पागल होओगे4. जितने बेहोश हैं, सब मरेंगे5. मौसम तो बदलता रहता है, उसमें कौनसी बड़ी बात हो गयी?6. बेटा, किस क्लास में हो? गूगल करना नहीं आता?