कृष्ण को व्यक्ति रूप में नहीं जानना है, स्वयं कृष्ण बता गये हैं कि कृष्ण को कैसे जानना है। कृष्ण कह रहे हैं, 'मैं वो हूँ जिसको कोई कर्म लिप्त या बद्ध नहीं करता।' कृष्ण के मुख से यह कृष्ण का परिचय है – ‘मैं कौन हूँ? सब कर्म मुझे लिप्त नहीं करते, कर्मफल की मेरी कोई इच्छा नहीं है। जो व्यक्ति मुझे ऐसा जानता है, वह भी कर्मों में बद्ध नहीं होता।' जिसने जान लिया कि कृष्ण वो हैं जो कभी कर्मों में लिप्त नहीं होते, वो स्वयं भी फिर कभी कर्मों में लिप्त नहीं होता। क्योंकि उपनिषद् बता गये हैं कि जो ब्रह्म को जान जाता है वो ब्रह्म ही हो जाता है। अब इसके बाद सन्देह की और भूल-भुलैया की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
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1. अपने ही विरुद्ध रण है गीता2. व्यर्थ है शोक करना3. निष्काम कर्म ही यज्ञ है4. जो उच्चतम है, वही हो जाना है