Description
हमारी ज़िन्दगी पर भावनाऍं अक्सर बहुत हावी रहती हैं और सिर्फ़ भावनाओं के चलाए ही हम चल रहे होते हैं।
क्या हैं भाव?
जिसे हम भाव कहते हैं, वो और कुछ नहीं है, वो विचार ही है जो घना हो गया है।
भावनाऍं अपने आपमें न अच्छी हैं न बुरी हैं — भावनाऍं बाहरी हैं। बाहर से कोई भी विचार भीतर प्रवेश करता है और उसी को आप अपना भाव बोलने लगते हैं। फिर हमारी पसंद-नापसंद, हमारे चुनाव और पूरा जीवन उन्हीं भावों के चलाए चलते हैं।
भाव शारीरिक हैं, पशुओं में भी होते हैं, और वेदान्त कहता है तुम चेतना हो। आचार्य प्रशांत की यह पुस्तक आपको आपके भावों और उनके स्रोत से परिचित करवाने का एक प्रयास है। जिससे कि आपके चुनाव भाव आधारित नहीं, बोध आधारित हों, आत्मिक हों।