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Book Details
Language
hindi
Print Length
220
Description
जो अनावश्यक है, जब वो होता है तो उसको दुख बोलते हैं। नहीं होना चाहिए पर पकड़ रखा है, वही दुख है। आनन्द के साथ कोई दुख नहीं होता। आनन्द कोई आती-जाती स्थिति नहीं होती। आनन्द कुछ ऐसा नहीं है जो हमें कुछ करके या कहीं बाहर से प्राप्त हो जाएगा। आनन्द वो स्थिति है जिसमें, सुख भी बड़ा छोटा लगे, अनावश्यक लगे, चाहिए ही नहीं।
आनन्द सुख को नहीं कहते। सुख तो तब मिलता है जब कोई भोग की वस्तु प्राप्त हो। लेकिन जब हम जान जाते हैं कि हमारे पास पहले से ही कुछ ऐसा मिला हुआ है कि कुछ अतिरिक्त नहीं चाहिए जो हमें संतुष्ट करे तब हम आनन्दित हैं।
कृष्ण कहते हैं कि बाहरी विषयों से हटकर जब व्यक्ति मन की सभी कामनाएँ त्याग देता है तो उसको आनन्द की प्राप्ति होती है।
Index
1. जीवन में दुख है ही क्यों?2. दुख छूटता क्यों नहीं?3. चुनौतियों का सामना कैसे? आनन्द और सुख में अन्तर4. सर, हमारी खुशियों से आपको क्या तकलीफ़ है?5. वो ख़ास खुशी - जो हम सब को चाहिए6. आनन्द और सुख में अन्तर
जो अनावश्यक है, जब वो होता है तो उसको दुख बोलते हैं। नहीं होना चाहिए पर पकड़ रखा है, वही दुख है। आनन्द के साथ कोई दुख नहीं होता। आनन्द कोई आती-जाती स्थिति नहीं होती। आनन्द कुछ ऐसा नहीं है जो हमें कुछ करके या कहीं बाहर से प्राप्त हो जाएगा। आनन्द वो स्थिति है जिसमें, सुख भी बड़ा छोटा लगे, अनावश्यक लगे, चाहिए ही नहीं।
आनन्द सुख को नहीं कहते। सुख तो तब मिलता है जब कोई भोग की वस्तु प्राप्त हो। लेकिन जब हम जान जाते हैं कि हमारे पास पहले से ही कुछ ऐसा मिला हुआ है कि कुछ अतिरिक्त नहीं चाहिए जो हमें संतुष्ट करे तब हम आनन्दित हैं।
कृष्ण कहते हैं कि बाहरी विषयों से हटकर जब व्यक्ति मन की सभी कामनाएँ त्याग देता है तो उसको आनन्द की प्राप्ति होती है।
Index
1. जीवन में दुख है ही क्यों?2. दुख छूटता क्यों नहीं?3. चुनौतियों का सामना कैसे? आनन्द और सुख में अन्तर4. सर, हमारी खुशियों से आपको क्या तकलीफ़ है?5. वो ख़ास खुशी - जो हम सब को चाहिए6. आनन्द और सुख में अन्तर