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10 धोखे जो सब खाते हैं

माया बाहर नहीं भीतर है

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Book Details

Language
hindi
Print Length
223

Description

हर व्यक्ति जीवन भर किसी ऐसे की तलाश में रहता है जिस पर पूरा भरोसा किया जा सके। कोई भी वस्तु या व्यक्ति जैसा हमें प्रतीत होता है, वह वास्तव में उससे बहुत भिन्न होता है।

प्रकृति का नियम है गति, और गति का अर्थ है बदलाव। हम परिवर्तनशील संसार में कुछ ऐसा खोजते हैं जो कभी बदले ना – यही मूल अज्ञान है, यही हमारे भीतर बैठी माया है।

कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे धोखा न मिला हो। पर चूँकि हम स्वयं को नहीं जानते और संसार को नहीं समझते, इसीलिए हम बार-बार वही ग़लतियाँ दोहराते हैं। माया हमारे सामने प्रकृति के तीन गुणों को अलग-अलग रूपों में लाती है और हम यह समझ बैठते हैं कि किसी वस्तु या व्यक्ति में हमें तृप्ति मिल जाएगी।

प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत हमें उन धोखों से अवगत करवाते हैं जिनमें हम अक्सर फँसते हैं। '10 धोखे जो सब खाते हैं' पुस्तक यह समझने में सहायक होगी कि धोखा खाने की वृत्ति हमारे भीतर ही बैठी हुई है इसलिए हम बार-बार ठोकर खाते हैं।

Index

1. जो ये जान जाएगा वो रिश्तों में कभी धोखा नहीं खाएगा 2. जब घरवाले ही धोखा दें 3. अगर दोस्तों से धोखा मिला हो 4. 28 की उम्र में सेठजी बनना है? 5. दो गड्ढे - पैसा और वासना 6. इन तीन तरह के लोगों का भरोसा बिलकुल मत करना
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