Description
हर व्यक्ति जीवनभर किसी ऐसे की तलाश में रहता है जिस पर पूरा भरोसा किया जा सके। पर जब भी हमें लगता है कि संसार में कोई विश्वास करने लायक है, उतनी बार हम गलत साबित होते हैं।
कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे धोखा न मिला हो। पर चूँकि हम स्वयं को नहीं जानते और संसार को नहीं समझते, हम बार-बार वही गलतियाँ दोहराते हैं। हमारा भीतरी अज्ञान हमें यह देखने नहीं देता कि सिर्फ़ वस्तुएँ और परिस्थितियाँ बदल जाने भर से उनसे हमारा रिश्ता नहीं बदल जाता। जब तक हम भीतर से नहीं बदलते, तब तक हम उन्हीं गड्ढों में अलग-अलग तरीकों से गिरते रहेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य प्रशांत हमें उन धोखों से अवगत करवाते हैं जिनमें हम अक्सर फँसते हैं। '10 धोखे जो सब खाते हैं' पुस्तक यह समझने में सहायक होगी कि धोखा खाने की वृत्ति हमारे भीतर ही बैठी हुई है, साथ-ही-साथ यह जानने में भी मदद करेगी कि कैसे हम बार-बार ठोकर खाने से बच सकते हैं।