ज़िंदगी जीने के लिए है, छोड़ने के लिए नहीं

Acharya Prashant

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ज़िंदगी जीने के लिए है, छोड़ने के लिए नहीं
मैं देख रहा था अपने कमरे की खिड़की से। चिड़िया है एक, वो छुपी रहे, छुपी रहे। और जैसे ही बारिश शुरू होती है, वह बाहर निकल आती है और बारिश में लगती है फुदकने लगती है फुदकने यही काम वहां सामने बतके हैं पांच उनका है जैसे ही बारिश होती है वो ट्रेन बना देती हैं और वैसे वो अपने उसमें रहती हैं लेकिन बारिश होते ही उनकी ट्रेन चल पड़ती है और वैसे ट्रेन बना के जाती हैं फिर पूरा घूम के आती हैं। ये जीवन के सहज आनंद हैं। इनसे क्यों अपने आप को वंचित कर रहे हो? बारिश हो रही है तो भीगो नाचो। कौन रोक रहा है इसमें? यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। मैं आपको दो साल से सुन रही हूं। तो लाइक जब मैंने आपको सुनना चालू किया तो एक साल तक तो मैंने जब आपके बुक्स अगर पढ़े तब समझ में आया कि हमारी जो लाइफ में जो भी चीजें हम करते हैं बहुत कंडीशनिंग वगैरह होती है। हर चीज जो भी एक्शंस लेते हैं। बहुत सेल्फ डाउट्स आते हैं और चीजें जो छोड़ी हैं मतलब पहले जब आपकी बातें नहीं सुनती थी तब बहुत सारी बुरी आदतों का भी वो था। कि लाइक बहुत सारी चीजों में इन्वॉल्वड थी तो वो सब भी छोड़ दी। तो कहीं ना कहीं अब लगता है कि यार मतलब वो चीजें कहीं ना कहीं कभी कबभार ट्रिगर करती हैं कि अब क्या होगा? कुछ कर लूं क्या? मतलब कुछ मतलब वैसा होता है आचार्य जी।

आचार्य प्रशांत: जिन चीजों को आप छोड़ रहे हो उनको तभी छोड़िए जब वो सचमुच आपको किसी तरीके से रोक रही हो। नहीं तो नुकसान क्या होता है ना कि परंपरा में अध्यात्म और एक तरीके का एसिटिसिज्म लादा हुआ वैराग्य है। ये साथ चले हैं और इसलिए जो पूरी अध्यात्म की छवि ही है, वही ऐसी हो गई है कि लोग उससे बचते हैं। और यह बात वही लोक सत्य बन गई है। तो जो लोग आते भी हैं कि समझें विज़डम क्या चीज है, वह भी उस लोक सत्य के कारण ऐसी चीजों को भी छोड़ना शुरू कर देते हैं जिसको जिसको छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है।

जो जीवन के सहज आनंद हैं। उनको भी छोड़ना शुरू कर देते हैं क्योंकि उनको लगता है कि अध्यात्म का यही तो मतलब होता है सब छोड़ छाड़ दो। लेकिन इसका नतीजा क्या होता है? इसका नतीजा यह होता है कि जिंदगी हो जाती है बिल्कुल बेरौनक सुनी और फिर आपने जितना छोड़ा होता है उसका दोना आप पकड़ लेते हो। ऐसे भी लोग हैं आचार्य जी, जब से आपको सुना है तब से खेलना बंद कर दिया। घूमना बंद कर दिया। क्यों भाई? क्यों? यह तो इसमें कौन सा किसी का तुम नुकसान कर रहे थे कि तुमने यह काम बंद कर दिए? खेलना क्यों बंद कर दिया? घूमना क्यों बंद कर दिया? लोग आए आचार्य जी अब तो मैं जब से गीता कोर्स में आया हूं तब से लड़कियों से बिल्कुल बातचीत रोक दी है। ये ज्ञान तुम्हें किसने दिया? बोले नहीं, ‘मैं पहले ना बिल्कुल ऐसा ही था कि वो मनाइजर हुआ जा रहा था। दो भाई वो ठीक है कि तुम सबको इसी नजर से देख रहे थे कि पकड़ लूं खा लूं। वो चीज छोड़ दो। पर तुम कहो कि मैंने अब लड़कियों से बातचीत करनी बंद कर दी है। तो उसका परिणाम यही निकलेगा कि तुम गीता ही छोड़ोगे फिर।’ कितने दिन तक तुम दुनिया की आधी आबादी से बिना बात किए चल सकते हो। तुम जहां जाओगे वही दिखेंगी। और उनको तुम इतना तो नहीं अवॉइड कर पाओगे। तो ले दे के या तो अपनी नजर में पाखंडी बनोगे नहीं तो गीता को ही छोड़ दोगे।

देखिए जिस रास्ते पर पता है कि व्यर्थ की चीजें छोड़नी होती हैं। इस बात को आज के लगभग आखिरी सूत्र की तरह पकड़ लीजिए। जिस रास्ते पर पता ही है कि व्यर्थ की चीजें छोड़नी है, उस रास्ते पर उन चीजों को मत छोड़ दीजिए जो व्यर्थ की नहीं है। एक तो वैसे ही आदमी रोता है कि इस रास्ते पर टैक्स बहुत पड़ता है। बहुत सारी चीजें छूटती हैं। आप वह सब भी छोड़ना शुरू कर दें जो छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। तो आप फिर एकदम ही टूट जाएंगे कि क्यों भाई? क्यों चले आ रहे हो? यह जनवरी में ऋषिकेश में कैंप हो रहा है। और कुर्ता ही पजामा पहन के आ गए। हां अब तो बस पीतांबर धारण कर लिया है। कोट वगैरह नहीं पहनता मैं। यह क्या कर रहे हो? क्यों कर रहे हो? अभी बीमार पड़ोगे और बीमार पड़के सारा दोष किस पर डालोगे? अध्यात्म पर।

कोट तो तुम्हें दोबारा पहनना ही पड़ेगा। छूटेगा क्या? अध्यात्म छूट जाएगा। तो व्यर्थ में चीजें छोड़ा छाड़ी का कार्यक्रम मत चला दीजिएगा। हां, हम कहते हैं डेरी छोड़ो क्योंकि उसमें नुकसान है। हर तरीके का आपका प्रकृति, पर्यावरण, पृथ्वी सबका नुकसान है इसलिए हम कहते हैं। पर आप कहे मैंने रोटी पराठा भी छोड़ दिया। काहे को छोड़ा? किसने कहा था छोड़ने को? जो जीवन के सहज सुख हैं उनको काहे को छोड़े दे रहे हो? लेकिन अध्यात्म का मतलब ही यही बन गया है कि अपने आप को कठोर से कठोर दंड देना है। क्यों देना है?

पहले तो मैं बहुत ऐसा ही होता था। फ्रेवलस अब मैं बहुत गंभीर हो गया हूं। अष्टावक्र है ना साथ में। तो अब क्या करते हो? कह रहे हो अब तो कोई चुटकुला सुनाए तो थप्पड़ मार देता हूं उसको। किसने कह दिया कि अष्टावक्र के साथ हो तो हंस नहीं सकते। चुटकुले नहीं सुना सकते।

आचार्य जी जब से आपके साथ आया हूं तीन साल हो गए। कोई मूवी नहीं देखी। मैं खुद तैयार बैठा हूं अभी। तुम्हारा खत्म हो जा रहा हूं। ओपन हाइमर और बारबी दोनों देखूंगा। तुमसे किसने कह दिया कि तुम्हें पिक्चरें नहीं देखनी है भाई। पिक्चर नहीं देखनी है। खेलना नहीं है, घूमने नहीं जाना है, लड़की से, लड़के से बात नहीं करनी है, कपड़े नहीं खरीदने या पहनने हैं। ये सब शर्तें कृष्ण ने कब रख दी हैं? ये कब रख दी हैं? और जो शर्त उन्होंने सही में रखी है, उसका हम पालन नहीं करेंगे। जो बात उन्होंने कही नहीं, उसमें लगे पड़े हैं। कहे आ जाना ठीक है।

वहां एक उसमें हुआ था। ऋषिकेश में ही तो था। एक जने आकर शिकायत करी। वहां हमने समोसे दिए। बोले इसमें प्याज और लहसुन है। तो बोले नहीं आप तो गीता वाले हैं ना। हां तो? तो बोल रहे इसमें वो अदरक, लहसुन, प्याज क्यों डला है? गीता में ही कहां लिखा है प्याज नहीं खानी है? खुद भी परेशान हो रहे हमें ही परेशान कर रहे। हमने कब कहा कि प्याज लहसुन नहीं खानी होती भाई? बोले नहीं वो गुरुजी ने बताया था कि एक बहुत पुराना कुत्ता था उसने जहां पेशाब करी थी उससे प्याज पैदा हुई थी। कहां? बोल रहे है एक पुरानी किताब उसमें ऐसा लिखा है इसीलिए गुरु जी लोग बोलते हैं प्याज नहीं खानी चाहिए।

गुरु जी ने बोला होगा कृष्ण ने कहां बोल दिया, अष्टावकर ने यह बोला है? तो जो चीज नहीं भी छोड़नी चाहिए तुम वो भी छोड़ के बैठे हो और वो तुम बहुत दिन तक छोड़ तो पाओगे नहीं। क्यों जबरदस्ती छोड़ रहे हो? बल्कि जिसने बहुत कुछ छोड़ रखा हो उसके लिए जरूरी है कि वो चीजें एकदम ना छोड़े जिन्हें छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है।

अगर रुके हुए हो कल यहां गोवा में हो। किसने बोल दिया कि नहीं जा सकते बीच पे समुद्र में नहीं घुस सकते। और अगर वहां कुछ वाटर स्कूटर कुछ मिल रहा हो गुब्बारा उस पे नहीं चढ़ सकते। बड़ी शर्म आई। एक तरफ तो अभी हम संत कबीर को गा रहे थे। फिर वहां गुब्बारे में बैठ गए। क्या इसमें शर्माने की क्या बात है भाई? किसने कह दिया कि अगर भजन गाते हो तो समुद्र के ऊपर गुब्बारे में नहीं बैठ सकते। जाओ बैठो। कौन रोक रहा है? मौज करो। इसमें क्या समस्या हो गई?

मैं देख रहा था अपने कमरे की खिड़की से। चिड़िया है एक, वो छुपी रहे, छुपी रहे। और जैसे ही बारिश शुरू होती है, वह बाहर निकल आती है और बारिश में लगती है फुदकने लगती है फुदकने यही काम वहां सामने बतके हैं पांच उनका है जैसे ही बारिश होती है वो ट्रेन बना देती हैं और वैसे वो अपने उसमें रहती हैं लेकिन बारिश होते ही उनकी ट्रेन चल पड़ती है और वैसे ट्रेन बना के जाती हैं फिर पूरा घूम के आती हैं। ये जीवन के सहज आनंद हैं। इनसे क्यों अपने आप को वंचित कर रहे हो? बारिश हो रही है तो भीगो नाचो। कौन रोक रहा है इसमें? क्या समस्या हो गई? पक्षी भी इतने मूर्ख नहीं होते कि बिना बात का त्याग करें। क्यों?

अच्छे खासे दिखते थे। जब से गीता शुरू हुई है तब से मुंह ऐसा है जैसे श्मशान। भाई कंघी कर लो। तेल लगा लो, नहा लो। इन सब चीजों की मनाही नहीं होती है। किसी चीज की मनाही नहीं होती है। बस मूर्खताओं की मनाही होती है ना। तो फालतू की चीजें काहे को अपने आप को रोक रहे हो? बोले नहीं अब हम आध्यात्मिक है ना दिखना भी चाहिए। कैसे दिखोगे? जब तक यहां श्मशान नहीं होगा तब तक आध्यात्मिक नहीं लगते। हंसिए भी, खेलिए भी, नाचिए भी, मिलिए, जुलिए बस वो मत करिए जो जिंदगी का नर्क है। क्या? दुनिया से उम्मीदें मत बैठा लीजिएगा। नाचो बारिश में इतना नाचना है। बस यह मत सोच लेना कि बारिश में नाचने से परम सुख मिल जाना है। लेकिन ठीक है। साधारण सी बात है बारिश हुई कूद गए। हां अच्छा है कौन रोक रहा है? ये समझ में आ रही है ना बात?

एक तो वैसे ही दूध नहीं खाना, उसके साथ में और 100 चीजें कह दो कि यह भी नहीं है और अब हम आध्यात्मिक हो गए। हम शाम के 6:00 बजे के बाद कुछ नहीं खाते। मर जाओगे। अब तुम कुछ नहीं होगा। अध्यात्म जिस एक चीज को रोकता है वो एक चीज रोकिए बस। बाकी सब मामलों में अध्यात्म को कुछ बोलना ही नहीं है। सुपर लिबरल है। जो करना है जिंदगी में करो। कौन तुमको कुछ कह रहा है?

लेकिन जो पारंपरिक धर्म होता है वो हर चीज में कट्टर है और सौ मनाईयां करता है, निषेध लगाता है, वर्जना करता है। ये भी मना है, ये भी मना है। अलाउड नहीं है। जी हमारे यहां यह अलाउड नहीं है, वो अलाउड नहीं है। वहां पे हर चीज रोकी जाती है। बस वह चीज नहीं रोकी जाती जिसको रोकना चाहिए। क्या? मूर्खता। अज्ञान। तो अज्ञान को पूरी अनुमति है फलने फूलने की। और बाकी हर चीज पे पाबंदियां लगेंगी।

क्या पहनना है इस पे पाबंदी लगेगी। किससे बात करनी है इस पर पाबंदी लगेगी। किस दिन क्या खाना है इस पे पाबंदी लगेगी। सुबह कितने बजे सोना है, जगना है, मिलना है, जुलना है, किस दिन हर चीज पर पाबंदी लगा देंगे। बस वो जो एक काम जो अध्यात्म के मूल में होता है उसकी नहीं बात करेंगे। वास्तविक अध्यात्म में किसी चीज की कोई पाबंदी नहीं है। तुम्हारी जिंदगी जो करना है करो बस होश में करो मूर्खता में नहीं। जगे रहो हम आ रही है बात समझ में?

भविष्य का डर और ये सब लगा रहेगा इसका कोई इलाज नहीं होता आप मौज मनाओ। संसारी होता है इसका क्या है इसका यही तो है कि जिंदगी जो साधारण छोटी-छोटी खुशियां भी दे देती है यह वो भी नहीं ले पाता तो फिर इसके भीतर कामना का विस्फोट होता है। जीवन जो आपको छोटे-छोटे साधारण सुख दे सकता है सहज ही क्योंकि जिंदा हो इसलिए मिल जाते हैं, सुबह उठ गए हो अच्छी हवा चल रही है जीवन का एक सहज सुख है ये जिंदा होने की बदौलत मिल जाता है। तो साधारण संसारी उनको भी नहीं लेता ऐसे सुखों को भी वो इंकार कर देता है जब इतना इंकार करेगा इतना दमन करेगा तो फिर कामना फूटती है बहुत सारी कि मुझे बड़ा सुख चाहिए। बड़ा सुख चाहिए इसीलिए क्योंकि तुम छोटे-छोटे जो मिल रहे थे मुफ्त के तुमने वह भी नहीं लिए। जो छोटे-छोटे मिल रहे थे आसानी से उनको भी तुमने इंकार कर दिया कि प्याज लहसुन नहीं खाऊंगा। फिर अंत में जाकर के बोलते हो सीधे बकरा चाहिए। या अगर बकरा नहीं काटना है तो इंसान की गर्दन काटनी है। बहुत मिल जाएंगे ऐसे जो प्याज लहसुन तो नहीं काटते। इंसान काट देते हैं।

एक साधारण सी स्कूटी ले गोवा घूमना ठीक है। यह करना ठीक नहीं है। बताओ क्यों? क्योंकि इसमें दूसरे परेशान हो रहे हैं। तो ये अंतर करना आना चाहिए। किसकी बात कर रहा हूं मैं? ये जो बिना साइलेंसर की ले घूम रहे हैं नीचे बाइक। लेकिन आप यहां आए हो। आपने एक स्कूटी किराए पर ले ली। उसको लेके आप इधर-उधर जा रहे हो। तो आपने कोई उसमें गुनाह नहीं कर दिया। घूमो फिरो मौज करो।

प्रश्नकर्ता: धन्यवाद आचार्य जी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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