यारों से सावधान! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

Acharya Prashant

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यारों से सावधान! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। आपको मैं पिछले दो-ढाई वर्ष से सुन रही हूँ। अपने घर परिवार, दोस्त-रिश्तेदारों में और समाज में जब देखती हूँ तो पाती हूँ कि ये कंडीशंड माइंड (संस्कारित मन) से सब हो रहा है उनके जीवन में, तो अभी ऐसा लगता है पूरा अकेली हूँ मैं। मैं बात सबसे करती हूँ पर मेरे कोई दोस्त नहीं हैं। तो ये क्या हो रहा है?

आचार्य प्रशांत: बहुत अच्छा हो रहा है। दोस्त तो मेरे पास भी नहीं हैं लेकिन कमी कभी महसूस नहीं हुई। शायद ये दोस्तों-यारों की ज़्यादा ज़रूरत ही तब पड़ती है जब ज़िंदगी एकदम बेकार हो, ग़ौर करके देखिएगा।

ज़िंदगी में करने के लिए दहकता हुआ काम हो, उसी से आशिक़ी हो जाती है। ये सैटरडे-संडे (शनिवार-रविवार) बैठकर के दोस्तों के साथ शराब पीने का वक़्त किसके पास होता है फिर!

लेकिन ये भी हमारे भीतर बड़ा सिद्धान्त डाल दिया गया है कि आपकी असली संपदा तो आपके मित्र होते हैं। इससे बड़ी मूर्खता की बात नहीं है दूसरी। न सत्य, न बोध, न गुरु; आपको बताया गया है यार। और वो यार कौन‌ — जिसके साथ खुलती है बकार्डी, टीचर्स। यार और कौन होता है? यार वो तो होता नहीं जो आपको सही रास्ते ले जाएगा, रोशनी दिलाएगा।

ये दोस्तों का सिद्धान्त ही क्या है? ये यारी का फंडा क्या है? क्या करोगे यारों का? और क्या करते हो यारों का?

आप यहाँ पर आये हो, आपमें से बहुत कम होंगे जिनके यारों ने उन्हें प्रेरित किया होगा आने को यहाँ, बल्कि आपको यहाँ आने के लिए अपने यारों के विरोध से गुज़रकर आना पड़ा होगा। यहाँ की आप तस्वीरें और क्लिप्स वगैरह अपने सोशल मीडिया पर डालकर देख लीजिएगा, कई यार आपके आपको अनफ्रेंड न कर दें तो। कोई लाइक नहीं करेगा; कोई डिसलाइक करेगा, कोई व्यंग्य में कोई कॉमेंट लिख देगा कि अब तो तू बड़ा आदमी हो गया, बड़ा ज्ञान पेल रहा है। ऐसे ही लिखते हैं न?

और जो आपको बोल दे, 'अरे! बड़ा ज्ञानी हो रहा है', वो यार है आपका? जिस यार को ज्ञान से समस्या है, वो यार है या दुश्मन है? और इन यारों ने ज्ञान शब्द को ही गाली बना दिया है। कोई ढंग की बात करो, तुरन्त आपको बोलेंगे, 'ज़्यादा ज्ञानी न बन।' जैसे ज्ञानी होना कोई गुनाह हो और ज्ञानी नहीं हो तुम तो क्या हो, जानवर हो? उनके (जानवरों को) नहीं होता ज्ञान। मनुष्य को तो ज्ञान होना ही चाहिए। बिना ज्ञान के क्या हो तुम!

इन्होंने ज्ञान को ही — ये तो यारां दे यार!

एक कार ले लो, उसमें छः भर जाओ। पुलिसवाला सामने आये तो एक को नीचे पाँव के पास दबा दो। ये ऋषिकेश है, यहाँ से कल रात को जब वापस लौट रहा था, शिवमूर्ति को पार किया जो लक्ष्मण झूला पर है, उससे आप आगे जाइए, अगर आपको गाड़ी से वापस जाना है तो पूरा लंबा रास्ता लेना पड़ता है नीलकंठ पुल से घूम कर आते हैं। आप वहाँ से जाइए उधर, उधर पूरा अंधेरा होता है। वहाँ सब यारों की गाड़ियाँ खड़ी होती हैं अंधेरे में छुपकर। और डिक्की पर क्या होता है? यारों की गाड़ियाँ खड़ी हैं, डिक्की पर बोतल खुली हुई है।

मुझे बोतल से भी कोई समस्या नहीं होती अगर बोतल खोलकर के इनका डर मिटा होता, इन्होंने कोई ढंग की बात कर ली होती। बात ये है कि जब बोतल खुलती है तो इनकी मूर्खता खुलती है। लेकिन भीतर बड़ा अच्छा-अच्छा सा लगता है, ‘देखो, मेरे पास यार हैं।’

पूछो — क्यों चाहिए? बोलते हैं, 'यही तो मेरा सपोर्ट सिस्टम (सहारे की व्यवस्था) हैं, मेरा नेटवर्क हैं, बुरे वक़्त पर काम आएँगे।' ये बुरे वक़्त में काम नहीं आएँगे, यही तुम्हारा बुरा वक़्त हैं। इनके साथ होना ही बुरा वक़्त है, ये काम क्या आएँगे बुरे वक़्त पर! पर हम सुरक्षा के मारे, हमें लगता है सिक्योरिटी (सुरक्षा) मिलती है न इनसे। किसी दिन कुछ ग़लत हो गया, बुरा हो गया, तो इन्हीं को तो फ़ोन घुमाएँगे!

उपनिषद्, वेदान्त, बहुत कम जगह होगा ऐसा कि मित्रों की बात करते हों। पर आज की संस्कृति में मित्रता बहुत बड़ी बात हो गयी है। वजह बताये देता हूँ, मित्र वो जो आप ही के तल पर है और आप ही के जैसा है; उसके साथ सुविधा रहती है, वो आपको परेशान नहीं करता। वो ये नहीं कहता कि बदलो, बल्कि आप अगर बदलना चाहते हो, बेहतर होना चाहते हो तो वो आपको खींच और लेता है टाँग पकड़कर नीचे से कि बेहतर हो मत जाना कहीं तुम!

आप अभी प्रयोग करके देख लीजिए। सोचिए, अगर आप जैसा सोचते हैं, आपके विचारों में अगर शुद्धि आ जाए तो आपके लिए सबसे मुश्किल होगा अपने दोस्तों के सामने जाना। विचार छोड़िए, आपकी भाषा में ही अगर शुद्धि आ जाए, आप अपने दोस्तों से बात नहीं कर पाएँगे। जैसे ही आप जाएँ अपने दोस्तों के सामने और कोई भी शुद्ध बात बोलें, भले ही वो भाषा के तौर पर शुद्ध हो, भाव के तौर पर शुद्ध हो, 'कैसी बातें कर रही है?' आप थोड़े गंभीर हो जाइए, देखिए आपके यार क्या करते हैं? 'कैसे सीरियस (गम्भीर) सा हो रहा है! चल पार्टी करते हैं।'

ये आपका सुरक्षाचक्र है? सिक्योरिटी नेटवर्क है? ये भूत आपके जीवन में काम आएँगे? आप इन्हें क्यों ढो रहे हैं?

और सुनिए अब नुक़सान — इन्हीं के कारण आपके जीवन में कोई अच्छा व्यक्ति कभी प्रवेश नहीं कर पाता। ये जो हम कलपते रहते हैं न कि सही संगति नहीं मिलती, सही साथी नहीं मिलता, उसकी वजह है आपके ये जो वर्तमान साथी हैं। इनके रहते हुए कोई आपके पास आ कैसे जाएगा। अब तो फेसबुक पर भी किसी की फ्रेंड रिक्वेस्ट (मित्रता का आग्रह) स्वीकार करने से पहले लोग देखते हैं कि उसकी, जिसने आपको अभी रिक्वेस्ट भेजी है, उसकी अपनी फ्रेंड लिस्ट (मित्रों की सूची) कैसी है।

सत्तर मूर्खों से घिरे हुए आप चल रहे हैं, कौन ढंग का आदमी आपके निकट आएगा? बताइए। बोलिए! फिर आप कलपते हैं, 'हाय-हाय कोई मिला नहीं, कोई मिला नहीं, ज़िंदगी तनहा बीत रही है।'

पहली बात तो ऐसे किसी विशेष की ज़रूरत नहीं होती जीवन में कि मिले, मिले, तभी कुछ होगा। ये भी एक रोमैंटिक फ़साना है, आपके दिमाग में फ़िल्मों ने बैठा दिया है। और दूसरी बात, अच्छे लोग जीवन में मिल भी सकते हैं, लेकिन तब नहीं जब आपने अपनेआप को मूर्खों के झुंड में स्थापित कर रखा हो।

सत्संगति बहुत ऊँची बात है, मिल जाए, अनुग्रह; पर नहीं मिले तो अकेले जीने में भी कोई बुराई नहीं है, बड़ी मौज है।

और अकेले से मेरा मतलब ये नहीं है कि कोई बात करने को नहीं है, कुछ नहीं है, ये नहीं। मैंने जब ये कहा कि मेरे दोस्त नहीं हैं तो मेरे पास क्या बात करने के लिए लोग नहीं हैं? मैं यहाँ सैकड़ों लोगों से बात कर रहा हूँ। मेरे पास बात करने के लिए इतने लोग हैं कि मेरे पास समय नहीं होता। और मेरे पास सार्थक बात करने के लिए लोग हैं।

हाँ, यारां-दे-यार नहीं हैं। और हो सकते थे। अभी भी चाहूँ तो बहुत बन जाएँगे; चक दे फट्टे। करना क्या है उनका! शू!

अभी आप उनको बोलिएगा, 'आज सर्वसार उपनिषद् पढ़ा।' कहेंगे, 'छड यार, बोतल खोल।' क्या है! बोतल खोल लेंगे, फिर कह रहा हूँ, खोल लेते हैं बोतल; उसमें से तुम एक और उपनिषद् निकालकर दिखा दो तो खोल लेते हैं। होश बढ़ता हो अगर पीने से, तो ज़रूर पिएँगे। पर तुम्हारे लिए पीने का तो मतलब ये है कि तुम्हारा जो बचा-खुचा, रत्तीभर भी होश है तुम उसको भी गँवा देना चाहते हो।

अब सिर्फ़ शराब की ही बात नहीं है, नशे सौ तरह के होते हैं न। कोई आपसे व्यर्थ की बातें ही कर रहा है दो-दो घंटे, कोई आपको ऐसी ख़बरें दे रहा है जो आपको दी नहीं जानी चाहिए — अप्रासंगिक, व्यर्थ की ख़बरें वो आपको बताये ही जा रहा है, फॉरवर्ड करे जा रहा है, फॉरवर्ड करे जा रहा है, और अब दोस्त हैं तो देखना पड़ेगा क्या भेजा है।

वो फॉरवर्ड कर रहा है डिज़ाइनर कटलरी के क्षेत्र में नया इनोवेशन (नवाचार) हुआ है, अब देखो, डिज़ाइनर कटलरी देखो। क्यों देखें? क्यों पता होना चाहिए ये सब? और वो फॉरवर्ड कर रहा है आपको। यारां-दा-ग्रुप बना हुआ है, उसमें क्या चलता है? क्या चलता है?

यार कौन? जिसके साथ एकदम बेहूदी बातें कर सको, वो यार है। आपमें से कई लोग चालीस पार के होंगे, आपके बैच मेट्स (शिक्षा मित्र) के ग्रुप्स होंगे। अब चालीस पार तो प्रौढ़ता की अवस्था आ जानी चाहिए न। क्या चलता है उन ग्रुप्स में? वो सबकुछ चलता है जो अगर आपके बच्चे देख लें तो आपको माँ-बाप मानने से इन्कार कर दें।

पैंतालीस के हैं, पचास के हैं, ग्रुप्स पर सेक्सी फॉर्वर्ड्स चल रहे हैं।

आप कोई ढंग की चीज़ सोचना चाहते हैं, कुछ ठीक करना चाहते हैं, लेकिन वहाँ ग्रुप पर एक बैठा हुआ है दिलदार, उसका काम ही यही है — वो फॉरवर्ड कर रहा है आपको कि देखो कैसे वार्डरोब मालफंक्शन (कपड़ों की ख़राबी) हो गया फ़लानी का और पूरा छः घंटे तक यही चर्चा चल रही है ग्रुप पर। और फ़ोन आपका टन-टन बजे जा रहा है।

और उस पर भी तुर्रा ये कि अगर आप उसमें शिरकत न करें तो आपको ताने पड़ेंगे, 'क्या हो गया? संन्यासी हो गया क्या तू? भाई! भाभी ने कुछ बोल दिया क्या?'

उसका अपना मालफंक्शन हुआ पड़ा है, पर तुम उसे उसकी ज़िंदगी का मालफंक्शन नहीं देखने दोगे, किसी और सुंदरी का वार्डरोब मालफंक्शन दिखा रहे हो।

जो ये दो-चार दोस्तों के झुरमुट से बच जाता है वो ज़िंदगी में न जाने फिर कितने अच्छे लोगों से बहुत अच्छे रिश्ते बना पाता है। इन तीन-चार से बचिए और तीस-चालीस, तीन-सौ, चार-सौ, तीन-चार हज़ार को अपनी ज़िंदगी में जगह दीजिए। यारों से बचने का मतलब अकेलापन नहीं होता। यारों से बचने का मतलब होता है कि अब आपको एक बहुत बड़ा कुटुंब मिल जाएगा — सही, सार्थक, अच्छा।

मुँह उतर रखा है बहुत लोगों का। 'क्या करना पड़ेगा? सत्र पूरा होते ही ग्रुप छोड़ना पड़ेगा?'

जी, ज़रूर छोड़िए, आज ही छोड़िए। या कहिए कि मैं इस पर अपनी शर्तों पर रहूँगा। और मेरी शर्तें ऐसी नहीं हैं जो सिर्फ़ मेरे हित की हों, वो सबके हित की हैं। और अगर तुम आग्रह ही करोगे कि मैं इस पर रहूँ, तो फिर मैं इस पर वो सामग्री डालूँगा जो वयस्कों को शोभा देती है। जो समझदार लोगों को, इंसान कहलाने लायक़ लोगों को शोभा देती है, मैं वो डालूँगा। तुम वार्डरोब मालफंक्शन डालो, मैं उपनिषद् डालूँगा।

फिर ये जंग है। तुम चाहते हो मैं तुम्हारे जैसा बन जाऊँ, मैं चाहता हूँ तुम सच जैसे बन जाओ। देखते हैं कौन जीतता है! और अगर तुम हार मानने को तैयार नहीं तो तुम मुझे ख़ुद ही निकाल दो ग्रुप से, लेकिन मैं तुम्हारा कूड़ा-करकट तो नहीं बर्दाश्त करूँगा।

और जब मैं ग्रुप कह रहा हूँ तो मेरा आशय किसी वाट्सएप ग्रुप भर से नहीं है। मैं हर सामाजिक ग्रुप की बात कर रहा हूँ।

'ऐसे तो हमारा बहिष्कार हो जाएगा, हम कहीं के नहीं रहेंगे।'

क्यों?

'हमारे तो फ़ैमिली ग्रुप पर यही सब चलता है। सबसे ज़्यादा अश्लील सामग्री तो मेरा जीजा डालता है और जीजी उसपर थम्सअप बनाती है।’

अरे! दम तो दिखाओ, इंसान हो, ऐसा क्या डरना! और मैं नहीं कह रहा छोड़ ही दो, मैं कह रहा हूँ पहले सुधारने की कोशिश करो। आप यहाँ पर आये हैं, आपको यहाँ जो हो रहा है, वो ठीक लगता होगा थोड़ा-बहुत, तभी तो आये हैं न। और अगर ये आपको ठीक लगता है, तो ये बातें आप बाँटिए न अपने यारों से और अपने रिश्तेदारों से। जो समझने को तैयार होंगे, वो आपके साथ रहेंगे, जो समझने को तैयार नहीं होंगे, वो आपको छोड़ देंगे। लो, हो गया दूध का दूध, पानी का पानी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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