प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, वृत्ति क्या होती है?
आचार्य प्रशांत: जो तुम्हें गोल-गोल फँसाए रखे सो वृत्ति। (हाथ से गोले का इशारा करते हुए) जो तुम्हें वर्तुल में घुमाए रखे, वृत्त में घुमाए रखे, सो वृत्ति। जिसमें चलते तो लगातार रहो, पर पहुँचो कभी नहीं, सो वृत्ति।
वृत्त समझती हो न?
इंग्लिश मीडियम (अंग्रेजी माध्यम से पढ़ी) हो? वृत्त माने (हाथ से गोल का संकेत करते हुए) ये वृत्त कहलाता है, ये। तो इसपर दौड़ते हैं, दौड़ते हैं और लगातार यही लग रहा है कि मंज़िल मिल ही जाएगी, क्यों? क्योंकि अभी रास्ता शेष दिख रहा है – इसको कहते हैं वृत्ति।
थोड़ी शॉपिंग (खरीदारी) और कर लें, ये बॉयफ्रेंड नहीं तो (हाथ से कोई और का इशारा करते हुए) – ये वृत्ति है। चालीस से पचास, पचास से साठ, अस्सी, एक, दो, छः लाख, दस लाख, ये? (गोल-गोल का संकेत करते हुए)
जन्मे, मरे, जन्मे, मरे, जन्मे, मरे – ये (हाथ से गोल का संकेत करके)।
क्रोध, पछतावा, क्रोध, पछतावा, क्रोध, पछतावा – ये? (हाथ से वृत्त का संकेत करते हुए), उत्तेजना का उफान और फिर (हाथ दाएँ-बाएँ लहराते हुए) सूखा मैदान, ये वृत्ति।
और वही चीज़ अपनेआप को बार-बार दोहरा रही है, दोहरा रही है, दोहरा रही है, इसी को संतों ने काल-चक्र कहा है, जीवन-मरण का चक्र कहा है, चौरासी का फेरा कहा है। इसी से बार-बार बाहर निकलने की बात करी है।
जैसे कोई पागल बना रहा हो तुम्हें (मुस्कराते हुए), जैसे किसी ने बुद्धू बना दिया हो।
एक पिक्चर देखी थी मैंने (मुस्कराते हुए) – तुम लोग इस तरह के सवाल करते हो अब कहाँ मैं उपनिषदों की बात करूँ, तो मैं पिक्चरों की बात करूँगा – तो उसमें था कादर खान और शक्ति कपूर – देखो बात इसी तल पर तुम्हें समझ में आएगी – तो शक्ति कपूर जौनपुर से आया होता है, ठीक है, कहाँ? बम्बई। अब कादर खान एक कोने पर भिखारी बनकर बैठा हुआ है, ठीक? तो शक्ति कपूर जाता है कादर खान के पास, एक जगह का पता पूछता है। बोलता है, ‘वहाँ कैसे जाना है?’ कादर खान कहता है, ‘जौनपुर के हो?’ शक्ति कपूर कहता है, ‘तुम तो अंधे हो, तुम्हें कैसे पता?’ बोलता है, ‘वो चमेली का तेल लगाया है तुमने, तो ऐसे पता है मुझे।’
तो ये उससे पूछता है कि ‘अच्छा वहाँ कैसे जाना है?’ तो कादर खान कहता है, ‘अच्छा, झुको तो बताता हूँ। पास आओ, गला ख़राब है’, तो जैसे ही झुकता है, तो भिखारी ये खट से चाकू निकालता है, बोलता है, ‘जो माल है सब यहीं पर रख दो।’
पूरा उसका सब माल-वाल – ये अपनी अटैची लेकर आ रहे होते हैं उत्तर प्रदेश से – वो सब माल-वाल उसका वो अंधा भिखारी बंबई का, वहीं रखवा लेता है। और कहता है, ‘कपड़े-वपड़े भी उतार दो, सब अपना उतार देता है।’
तो शक्ति कपूर फिर कहता है कि ‘अब सब लूट तो लिया ही है, मुझे जहाँ जाना है वहाँ का रास्ता तो बता दो’ – लुटने के बाद, किससे प्रश्न पूछ रहा है? जिसने लूटा है उसी से, कि जहाँ जाना है वहाँ का रास्ता तो बता दो। तो कादर खान कहता है, ‘ऐसा करो, इधर जाओ’ (दाहिनी तरफ़ संकेत करते हुए); शक्ति कपूर बोलता है ‘ठीक है’। बोलता है ‘फिर वहाँ से दाएँ मुड़ना’, कहता है ‘ठीक’। कहता है, ‘फिर वहाँ से लाल बत्ती आएगी’, बोलता है, ‘ठीक’, बोलता है, ‘वहाँ से फिर दाएँ मुड़ना’, कहता, ‘ठीक’, कहता ‘फिर आगे जाना’, ‘ठीक’, ‘वहाँ तिराहा आएगा’, ‘हाँ’, ‘वहाँ से उधर को जाना’, कहता ‘ठीक’, ‘फिर वहाँ से बाएँ मुड़ना’, ‘ठीक’, कहता ‘फिर?’ बोलता है, ‘फिर, तुम ठीक फिर वहीं आ जाओगे मेरे सामने।’
(श्रोतागण हँसते हुए)
तो शक्ति कपूर बोलता है, ‘तुम्हारे सामने दोबारा क्यों आऊँगा?’ कादर खान बोलता है – ध्यान देना – ‘ताकि मैं तुम्हें दोबारा लूट लूँ।’ – ये वृत्ति है।
एक बार जिसके हाथों लुटे, उसी से दोबारा लुटने की उत्सुकता को कहते हैं वृत्ति। एक बार जो ग़लती करी, उसी ग़लती को दोहराने की आदत को कहते हैं वृत्ति।
कादर खान लूट रहा है शक्ति कपूर को, और शक्ति कपूर कादर खान से ही पूछ रहा है कि ‘लूट तो लिया, अब मुझे मेरी मंज़िल का रास्ता भी बता दो।’
और वो भी खुलेआम बता रहा है; बोल रहा है, ‘इधर जाओ, उधर जाओ, उधर जाओ, उधर जाओ और फिर घूम फिर करके मेरे पास वापस आ जाओ।‘ और वो पूछ रहा है, ‘तुम्हारे पास क्यों वापस आ जाऊँ?’ तो कह रहा, ‘ताकि मैं तुम्हें दोबारा लूट लूँ।’
और वो बात मज़ाक की थी। मैंने कहा, ये बात तो आध्यात्मिक है, आप (प्रश्नकर्ता) ऐसे ही समझेंगी।
समझ में आ रही है बात?
जिस दुकान पर एक बार लुटे, उसी दुकान पर बार-बार जाना कहलाती है वृत्ति।
प्र२: आचार्य जी, फिर तो ये आदत हो गयी?
आचार्य: वही है, वृत्ति आदत है। तुम्हारी पुरानी-से-पुरानी आदत का नाम है वृत्ति।
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