प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा सवाल मेरी रिलेशनशिप को लेकर है।
आचार्य प्रशांत: तो ज़ोर से बोलो न।
प्रश्नकर्ता: रिलेशनशिप को लेकर है मेरा सवाल। तो काफ़ी लंबे समय से हम साथ हैं। हमारी दोस्ती भी काफ़ी गहरी है लेकिन अब आइ फ़ील लाइक दैट स्पार्क इज़ फेडिंग अवे इन माय रिलेशनशिप। (मुझे लगता है मेरे रिश्ते में से रस जा रहा है।)
आचार्य प्रशांत: ज़ोर से बोलो यार! नहीं समझ में आ रहा। स्पार्क इज़ फ़ेडिंग?
प्रश्नकर्ता: फ़ेडिंग इन माय रिलेशनशिप। मैं खुद को बँधा-बँधा महसूस करता हूँ अब, तो अब उसे ये बिना हर्ट करे रिलेशनशिप की डिग्निटी को मेनटेन करते हुए…
आचार्य प्रशांत: उसे बिना हर्ट करे?
प्रश्नकर्ता: हाँ, उसे ये कैसे बताऊँ?
आचार्य प्रशांत: क्या बताना है?
प्रश्नकर्ता: कि अब वो बात नहीं रही है, रिलेशनशिप में अब वो बात नहीं रही।
आचार्य प्रशांत: वो अंधी है, उसे दिख नहीं रहा है? ये कोई बताने की बात होती है? खाना ठंडा है इसके लिए थर्मामीटर चाहिए क्या? हो गया, खाना ठंडा पड़ गया। अब क्या करना है, कुछ नहीं।
ये जो रिश्ते बनाने और तोड़ने की तुम लोगों की कला है, मुझे तो नहीं समझ में आती। एक दिन होता है जब तुम कहते हो कि नाउ इट्स ऑन। शी सेड, ‘यस।’ 'एक दिन तुम कहते हो, 'नाउ इट्स ऑफ़, वी ब्रोक-अप, शी मूव्ड ऑन और आइ मूव्ड ऑन।' ये नहीं समझ में आता। दूसरे व्यक्ति में कुछ तो अच्छा होगा, कुछ तो अच्छा होगा और मैं कह रहा हूँ कुछ ही तो अच्छा होगा।
जब तुम्हें लगता है कि उसमें अच्छाई है तो तुम उसको बिल्कुल देवता समान बना लेते हो और जाकर एकदम चिपक जाते हो, 'मिल गई सपनों की रानी! देवी उतर आई है!' और जब रिश्ता तोड़ते हो तो फिर ऐसा तोड़ते हो कि ब्लॉकिंग, घोस्टिंग सब कर देते हो, 'जा तेरा कभी मुँह नहीं देखूँगा।' और क्या करते हैं वो, ब्रेकअप की पार्टी कर ली, उसकी फ़ोटोएँ जला दीं, उसके गिफ़्ट कोमोड में डाल दिए। सीवर ब्लॉक हो गया, पता नहीं क्या-क्या था गिफ़्ट में, कौन जाने। ये दोनों ही बातें बस ये बता रही हैं कि मदहोशी बहुत है। एकदम भ्रम में हो। "अति का भला न बरसना और अति की भली न धूप, अति का भला न बोलना, अति की भली न?"
प्रश्नकर्ता: चुप।
आचार्य प्रशांत: ज़रा पास भी जाओ तो आहिस्ता-आहिस्ता और दूरियाँ भी बने तो आहिस्ता-आहिस्ता। ये जाकर चिपकना और फिर एकदम दूर हो जाना, ये नहीं कुछ होता। क्यों तुम्हें उसको कुछ बताना है और बताओगे तो क्या बताओगे, किन शब्दों में बताओगे? मैं तो समझ नहीं पा रहा हूँ बताओगे क्या। 'आइ डोंट फाइंड यू हॉट एनीमोर।' (अब तुम मुझे हॉट नहीं लगती।) क्या बोलोगे? 'स्पार्क इज़ फ़ेडिंग अवे।' कौन-सा स्पार्क? हटाओ ये इमेजरी पूरी। स्पार्क, काहे का स्पार्क, कहाँ आग लगी थी?
अरे! भाई, साधारण दोस्ती-यारी में भी होता है कि कभी मिलना-जुलना, खाना-पीना साथ ज़्यादा होता है, कभी कम हो जाता है। उसमें कोई इतनी गंभीर बात तो नहीं होती। हर रिश्ते में इस तरीके के अंतराल आते हैं। आते हैं तो उसको क्यों ब्रेकअप वगैरह का नाम दे रहे हो?
हाँ ठीक है, उतना साथ नहीं उठते-बैठते। पहले हो जाता था कि रोज़ ही मिल रहे हैं। अरे! नहीं मिलते अब रोज़ यार। महीने में एक बार एक-दूसरे से बात कर ली। अपने आप को घाव देना ज़रूरी क्यों है? जैसे कुछ चीरकर, नोचकर छाती से निकाल दिया हो बाहर और फिर वो जो ज़ख्म है वो बहुत अरसे तक पीड़ा देता है, उसमें से लहू रिसता है। न जाने कितने आते हैं ब्रेकअप ट्रॉमा वाले। ‘छः साल पहले ब्रेकअप हुआ था।' तो उसका छः साल पहले ब्रेकअप हुआ था, अभी वो ट्वैल्थ में है! इसको ट्रॉमा चल रहा है।
तुम्हारी समस्या बताऊँ क्या है? तुम्हारे जीवन में कुछ भी सहज नहीं है। रिश्ता भी सहज नहीं बनता। तुम रिश्ता भी सोचकर बनाते हो, तुम रिश्ता भी कहते हो, ‘ओके यस!’ अरे! ये चीज़ें ऐसी होती हैं जो सहज बनती हैं, स्वतःस्फूर्त बनती हैं, स्पाॅन्टेनिअसली बनती हैं। ये चीज़ खूबसूरत तभी होती है जब तुम्हें पता भी न चले और बन जाए। लेकिन तुम रिश्ता बनाते हो ठप्पा लगाकर, कहते हो, 'कल तक वो मेरी गर्लफ्रेंड नहीं थी।' (चेहरा पोंछते हुए) इसी काम तो आती है वो टिशू पेपर। 'कल तक वो गर्लफ्रेंड नहीं थी, आज वो मेरी गर्लफ्रेंड हो गई है।’ क्यों? ‘मैंने ठप्पा लगा दिया। ठप्पा लगाने से एक सेकंड पहले भी वो मेरी गर्लफ्रेंड नहीं थी।’
ठप्पा एक डिस्कंटिन्यूटी (अलगाव) है। ये डिस्कंटीन्यूअस फ़ंक्शन्स अच्छे नहीं होते। कंटिन्यूटी समझते हो न? चल रहा है, एक लहर है, एक तारतम्य में है। एक उसमें सुमधुर समरसता है, अपना वो चल रहा है। और ऐसे ही फिर जब डिस्कंटीन्यूटी आती है तुम्हारी तो वो भी सडन (अचानक) होती है। अब डिस्कंटीन्यूअस हो गए। 'कल तक हमारा रिश्ता था आज हमारा रिश्ता नहीं है।' ये कौन-सा रिश्ता है जो सडनली टूट सकता है? कौन-सा रिश्ता है ये?
सूरज भी ढलता है तो धीरे-धीरे ढलता है बाबा! और हमेशा के लिए नहीं ढलता है। पहली बात तो धीरे-धीरे ढलता है और फिर आ जाता है, वापस आ जाता है। मुझे आज तक ब्रेकअप समझ में नहीं आया। माने रिश्ता कैसा था जिसको अब तुम पूरी तरह तोड़ सकते हो? क्या खाकर फिर रिश्ता बनाया था जिसको अब तुम पूरी तरह तोड़ सकते हो? और अगर तुम वही व्यक्ति हो जिसने पहले एक ऐसा रिश्ता बनाया था जिसको पूरी तरह तोड़ा जाना चाहिए, तो तुम फिर आज भी गड़बड़ आदमी हो। तो आज भी रिश्ते बनाने से पहले ज़रा विचार कर लेना और रिश्ते तोड़ने से पहले भी विचार कर लेना। है न?
सहज क्यों नहीं हो सकते रिश्ते? क्यों उन पर इतने ठप्पे लगाने, इतने नाम देने ज़रूरी हैं? ये बहुत वायलेंट (हिंसक) हरकतें होती हैं। किसीको बुलाकर उसको बोलना, 'वो तुमसे न कुछ कहना था।' और जैसे ही किसी से बोलते हो न, 'तुमसे न कुछ कहना था, तुमसे एक बात करनी थी,' वैसे ही उसको पता चल जाता है कि ये क्या बकने वाला है अब। वायलेंस शुरू हो गया। चल तो पहले से ही रहा था अब एकदम पीक पर पहुँच गया। ये बहुत-बहुत क्रूर तरीके हैं। मत करो!
हाँ भाई, लोग अलग-अलग तरीके से विकसित होते हैं, इवॉल्व करते हैं। आप गीता पढ़ रहे हैं, वो नहीं पढ़ रही है। हो सकता है उसकी ज़िंदगी किसी और दिशा में जा रही हो। वो आपको बोल रही है, 'फ़लानी मूवी लगी है, देखने आओ।' गीता सत्रों के बाद आपको समझ में आ गया है कि वो मूवी एकदम व्यर्थ है, आप नहीं देखना चाहते तो उसको शालीनता से बोल दीजिए न कि मैं तेरे साथ मूवी नहीं देखूँगा। वो जितनी बार बेकार की मूवी के लिए बोले उतनी बार बोल दो, ‘नहीं देखूँगा।’ या उसको ये बोलना ज़रूरी है कि वी हैव ब्रोकन-अप? मूवी के लिए मना करो न, रिश्ते के लिए क्यों मना कर रहे हो? रिश्ता खिलौना है कोई? मैं नहीं कह रहा रिश्ता बचाकर रखो। मैं कह रहा हूँ — रिश्ता बनाओ ही मत। सब सहज रहे, क्यों नाम देना है?
मैं बताता हूँ नाम तुमको क्यों देना है? ताकि रिश्ते में एक्सक्लूज़िविटी (विशिष्टता) आ जाए। एक बार दो ने बोल दिया, 'हम गर्लफ्रेंड-बॉयफ़्रैंड हैं।' अब उसको हक मिल जाता है मेरा मोबाइल चेक करने का और मुझे हक मिल जाता है उसका पर्स चेक करने का। तुम उसके पर्स में हाथ डाल रहे हो और वो तुम्हारे मोबाइल में हाथ डाल रही है, इसको हम बोलते हैं एक्सक्लूज़िव रिलेशनशिप (विशेष रिश्ता)। और उसको पता नहीं लगना चाहिए कि तुम किसी और लड़की से भी बात करते हो। यही है न? इसलिए ठप्पा लगाना पड़ता है। तो ऐसा रिश्ता बनाते ही क्यों हो जिसमें एक-दूसरे को ये हक दे रखा है कि तू मेरे पर्स में घुसेगी और मैं तेरे मोबाइल में घुसूँगा? ये रिश्ता बनाते ही क्यों हो? ये रिश्ता ही वल्गर है।
प्रेम का मतलब ये नहीं होता कि जाकर बिल्कुल एक-दूसरे के घुस गए हैं। वो अश्लीलता है, भोंडापन है, बदतमीज़ी है और हिंसा है। 'अपना पासवर्ड बताओ न।' और जिस दिन ब्रेक-अप हो गया उस दिन पासवर्ड चेंज करना है। यही है न? ये नौबत ही क्यों आई थी कि पहले पासवर्ड बताया था? ये कौन-सा रिश्ता है जिसमें पासवर्ड की अदला-बदली चल रही है? क्यों?
दो कैदी साथ तो रह सकते हैं जैसे किसी जेल में, पर प्यार तो आपस में दो आज़ाद पंछी ही कर सकते हैं। जहाँ आज़ादी नहीं है वहाँ प्यार नहीं हो सकता, साथ हो सकता है। जेल में कैदी बीस-बीस बरस एक साथ रहते हैं, वो प्यार नहीं कहलाता। और तुम अगर एक-दूसरे को ही परस्पर कैद में डाल रहे हो, म्यूचुअल बाॅन्डेज (आपसी बंधन) तो तुममें प्यार कभी होगा ही नहीं।
जिस रिश्ते में आज़ादी नहीं है उसमें प्यार कहाँ से आ जाएगा! और जिसको तुम कहते हो फॉर्मलाइज़ेशन ऑफ़ रिलेशनशिप (रिश्ते का औपचारिकीकरण), चाहे वो हस्बेंड-वाइफ़ हो, चाहे गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड, चाहे कुछ और — ये जो फॉर्मलाइज़ेशन ऑफ़ रिलेशनशिप है, ये कैद ही की शुरुआत है। क्योंकि जैसे ही तुम रिश्ते को नाम देते हो, तुमने एक परिभाषा दे दी और परिभाषा का मतलब होता है बंधन। 'अब तुम ये कर सकते हो, तुम ये कर सकते हो और तुम ये नहीं कर सकते।' 'तू ये कर सकती है, तू ये नहीं कर सकती और ये तुझे करना ही पड़ेगा। ये होने के नाते अब ये तेरा कर्तव्य हो गया, ये तुझे करना पड़ेगा।' ये जो फॉर्मलाइजेशन ऑफ़ रिलेशनशिप है ये बिगिनिंग ऑफ़ डिस्ट्रक्शन (विनाश की शुरुआत) है। इतनी प्यारी पंक्तियाँ हैं, “प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।” कल भी बोला था आज फिर दोहरा रहा हूँ, समझ में क्यों नहीं आ रहा?
ये नामबाज़ी इतनी ज़रूरी क्यों है? “तू मेरा कौन लागे?” कौन लागे क्या, तुझे पता नहीं है कौन लागे? नहीं पता तो भग! पर वो लगी हुई है पूछने में कि नाम बताओ, नाम बताओ न। 'नाम बताओ, नाम बताओ, हम आपके हैं कौन?'
लगता है कि सिक्योरिटी मिल गई, एक बार इसने बोल दिया कि मैं तुम्हारा फ़लाना हूँ तो अब वो कर्तव्य-बद्ध हो गया न। क्योंकि अगर तू अब मेरा हस्बेंड है तो तुझे ये-ये ड्यूटीज़ परफ़ाॅर्म करनी पड़ेंगी तो इसीलिए तू एडमिट कर कि तू मेरा हस्बेंड है। तो तुम उससे ड्यूटीज़ परफ़ाॅर्म कराना चाहती हो, ये प्यार का काम है? और मैं आपसे कहता हूँ, “प्रेम में वादों की कोई कीमत नहीं, प्रेम में वो वादे भी निभ जाते हैं जो किए ही नहीं।"
प्यार अगर होगा तो ड्यूटीज़ की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वो ऐसे वादे भी निभा देगा जो उसने कभी करे ही नहीं हैं। पर हम डरे हुए लोग हैं, हमारे पास प्यार तो है नहीं तो हम फॉर्मलाइज़ करना चाहते हैं हर चीज़ को।
जिस चीज़ की शुरुआत होती है फ़ाॅर्मल तरीके से फिर उसका एंड (अंत) भी तुम्हें फ़ाॅर्मल तरीके से करना पड़ेगा। वही एंड करने के लिए पूछ रहे हैं कि दिल धड़क रहा है कि फ़ाॅर्मली एंड कैसे करूँ। तुमने फ़ाॅर्मली शुरू क्यों किया? हर तरीके का डर है और हर तरीके का स्वार्थ और लालच है। जिस दिन तक वो सिर्फ़ लड़की थी उस दिन उसके पास पर थे, जिस दिन वो पत्नी बन गई उस दिन हम कहेंगे, 'अब तो…!' और ये ही वो भी बोलेगी, 'मिस्टर हस्बेंड, कम इनसाइड। ज़्यादा उड़ो मत!' और अगर वो उड़ नहीं सकता तो मैं कह रहा हूँ प्यार भी नहीं कर सकता।
पर कटे पक्षियों में अधिक-से-अधिक एक-दूसरे के लिए दया हो सकती है, प्यार क्या होगा! पूरी-की-पूरी किताबें लिखी हुई हैं, 'हाउ टू कोप विद अ ब्रेकअप?' आप क्रॉसवर्ड वगैरह जाइए, वहाँ ये सब हैं सेल्फ़ हेल्प में। 'हाउ टू मैनेज द आफ़्टरमैथ ऑफ़ अ रिलेशनशिप?' (रिश्ते के खत्म होने के बाद के परिणामों को कैसे मैनेज करें)। क्या है ये? कोई कह रहा, 'नहीं मुझे अब तो काउंसलिंग की ज़रूरत है, मैं थेरेपी लेने जा रही हूँ।' क्यों जा रही थेरेपी लेने? थेरेपी समझ रहे हो? कौन-सी थेरेपी? मसाज थेरेपी नहीं!
प्रश्नकर्ता: साइकोथेरेपी।
आचार्य प्रशांत: ये वाली। 'मैं थेरेपी लेने जा रही हूँ। अभी हाल-हाल में मेरा ब्रेकअप हुआ है।' तो वो फिर उससे पूछ रहा है, 'अच्छा आपको कैसा महसूस हो रहा है? अच्छा! आपको उसमें क्या पसंद था?' 'उसकी ब्लू शर्ट।' 'आपके घर में जहाँ-जहाँ कहीं ब्लू कलर है उसको पिंक पेंट करा दीजिए। ब्लू याद नहीं आएगा।'
ये क्या लगा रखा है? इंसान हो, एडल्ट हो, क्या हो? ‘कोपिंग विद अ ब्रेक-अप, हाउ टू मूव ऑन’, ये बेस्ट सेलर्स हैं? ये सब तब होता है जब ज़िंदगी में कोई सार्थक उद्देश्य नहीं होता, जब कुछ ऊँचा करने के लिए नहीं होता। तब यही चीज़ें बड़ी भारी लगने लगती हैं कि किसने प्रपोज़ल एक्सेप्ट कर लिया और किससे रिलेशनशिप में अब खटास आ रही है, तब यही बातें बहुत भारी लगती हैं।
और ये चीज़ ऐसी होती है, कभी अंत नहीं हो सकता इसका, ये ज़िंदगी भर चलेगी। इसमें जो पड़ गया फिर वो पड़ ही गया। यही करो रोज़-रोज़। तुम्हें नहीं पता चलेगा तुम्हारा वक्त कहाँ उड़ गया। जैसे अभी तुम बहुत गंभीर होकर बैठे हो न, अभी तुमसे पूछूँ — दुनिया में इतनी चीज़े चल रही हैं, तुम गंभीर हो उनके बारे में? तुम्हें कोई लेना-देना नहीं। कोई लेना-देना नहीं। हमास से शुरू हुआ हिज़बुल्ला तक पहुँचा, अब ईरान तक पहुँच गया, ईरान के साथ लगे हुए हैं चीन, उत्तरी कोरिया, कुछ हद तक रूस। ईरान ने जो भी एयर डिफेंस मैकेनिज्म भी एक्टिवेट किया था वो रूस का दिया हुआ है एस-थ्री हंड्रेड। एक बार रूस इसमें आ गया तो तुम्हें पता ही है कि इज़राइल खुलेआम किसकी छाव में सारा काम कर रहा है।
तुम विश्व युद्ध के बिल्कुल निकट खड़े हो लेकिन तुम्हारी कुल बड़ी भारी समस्या क्या है? 'मैं उसको कैसे बताऊँ कि हमारे रिश्ते में अब चिंगारी नहीं है!' डूम्सडे क्लॉक लगातार टिक-टिक, टिक-टिक कर रही है। क्या करोगे रिश्ता बना कर? बच्चे पैदा करोगे उन बच्चों के लिए पृथ्वी शायद बचनी ही नहीं है। बच्चे पैदा करना माने आज से लगभग अस्सी साल आगे तक का उसको जीवन देना। ठीक? और अस्सी साल में तो जो अभी स्थिति है पृथ्वी की और जिस दिशा को हम जा रहे हैं, जैसे-जैसे क्लाइमेट चेंज इंटेंसिफ़ाई हो रहा है, तुम कौन-सी पृथ्वी छोड़ने वाले हो अपने बच्चों के लिए? पर उन चीज़ों की तुम्हें परवाह नहीं है। यही बहुत है कि हाउ नॉट टू हर्ट हर फ़ीलिंग्स। (उसकी भावना को कैसे ठेस न पहुँचाऊँ।)
नदी की तरह जियो। वो सहज बहती है और इसीलिए कभी उल्टा नहीं बहती। वो ये नहीं कहती कि कुछ हो गया था उसको रिवर्स करना है। वो ऐसे जा रही है, कुछ आ गया रास्ते में तो बस वो क्या करती है? ( हाथ से बहने का अभिनय करते हुए) या ये कहती है कि हम गलत आ गए, रिवर्स गियर लगाओ। नहीं करती न नदी। जो कर लिया नदी कभी उसको डिसओन (अस्वीकार) नहीं करती। करती है? कानपुर पहुँचकर कभी गंगा को कहते सुना कि हरिद्वार में गलती हो गई, अब हरिद्वार वाला काम अंडू करना है? कभी अंडू सुना? नहीं! कानपुर पहुँच गए, हरिद्वार में जो हुआ सो हुआ, आगे बढ़ना है ऐसे-ऐसे-ऐसे। ज़िंदगी आगे बढ़ती रहे प्रवाह की तरह, उसमें ये डिलीट, अंडू ये सबकुछ नहीं होता।
नहीं जम रहा? कुछ नहीं हो सकता। तुम्हारी हालत अगर ऐसी है तो फिर अच्छा ही है कि वो मुक्त हो जाए। कोई ब्रेकअप वगैरह करने की कोई ज़रूरत नहीं है। सहज मित्रता का रिश्ता रखो और उसमें फेजेज आते-जाते रहते हैं। कोई ऑब्जेक्टिव नहीं होता है कि गर्लफ्रेंड है, आगे चलकर तो शादी करनी है। कुछ नहीं है। एक इंसान है, दूसरा इंसान है, एक रिलेशनशिप है, सौ लोगों के साथ होती है। कोई बड़ी भारी बात नहीं हो गई। कोई उसका ऑब्जेक्टिव नहीं है कि लड़की से रिश्ता है तो उसका तो एक ही ऑब्जेक्टिव हो सकता है न मैरिज। कुछ नहीं।