उपभोक्तावाद: आज का सबसे बड़ा धर्म

Acharya Prashant

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उपभोक्तावाद: आज का सबसे बड़ा धर्म

आचार्य प्रशांत: आवर बिगेस्ट रिलीजन टुडे इज़ द मार्केट। नन ऑफ़ अस आर हिन्दूज़ ऑर मुस्लिम्स ऑर फ़ॉलोअर्स ऑफ़ एनी अदर रिलीजन। वी आर फ़र्स्ट एंड फ़ोरमोस्ट ऑफ़ ओनली वन रिलीजन; नॉट हिदुइज़्म, नॉट जूडीज़्म — कन्ज्युमरिज़्म।

(आज हमारा सबसे बड़ा धर्म बाज़ार है। हममें से कोई भी न हिन्दू है, न मुस्लिम है, न ही किसी अन्य धर्म का अनुयायी है। हम न हिन्दू हैं न यहूदी; हमारा पहला और महत्वपूर्ण धर्म सिर्फ़ उपभोक्तावाद है)। तो आपको यही अगर देखना है न कि किस तरह से हमको इन्फ़्लुअन्स (प्रभावित) करके हमसे पैसे छीने जा रहे हैं, हमारी पूरी लाइफ़, पूरी पहले हमें तो प्रमोट (प्रचारित) किया जा रहा है कि कमाओ। और आपने कभी ये सोचा कि वो पैसे कमाने के लिए कोई आपको क्यों प्रेरित कर रहा है? ताकि जब आप कमा लो, तो कोई आपसे वो ले ले आपको कुछ फ़ालतू चीज़ें देने के बहाने।

प्रश्नकर्ता: यू मस्ट अर्न सो देट यू केन गेट इंश्योरेंस पॉलिसी (आप कमाओ ताकि आप बीमा पॉलिसी ले सको)।

आचार्य प्रशांत: यू मस्ट अर्न सो देट यू केन बाय द गुड्स देट दीज़ बास्टर्ड्स आर प्रोड्यूसिंग। सो, बाय अर्निंग, यू बिकम डीपर स्लेव्स, हू आर प्रोमोटिंग कॉज़ ऑफ़ टू पीपल। फ़िफ़्टी परसेंट ऑफ़ द एन्टायर वर्ल्ड्स वेल्थ इज़ ओन्ड बाय लेस देन वन परसेंट ऑफ़ इट्स पॉपुलेशन। दे आर द रियल मास्टर्स, दे आर द प्रीस्ट्स। (आपको कमाना चाहिए ताकि आप वो सामान खरीद सकें जो ये हरामज़ादे उत्पादित कर रहे हैं। तो पैसे कमाकर आप और भी गहरे गुलाम बन जाते हो, जो दो लोगों के हित को बढ़ावा दे रहे हैं। पूरी दुनिया की सम्पत्ति का पचास प्रतिशत, इसकी आबादी के एक प्रतिशत से भी कम लोगों के पास है। वे ही असली स्वामी हैं।)

हम सब कन्ज़्युमरिज़्म रिलीजन के फ़ॉलोअर्स हैं, और वो उस रिलीजन के पोह-परिवाम् हैं, द कंट्रोलर्स (नियंत्रक)। जिनके आप ब्रैंड्स खरीदते हो और जिन ब्रैंड्स के पीछे भागते हो, वो जो दो रुपये का कोक (लोकप्रिय अमरीकी पेय) नहीं होता, जिसके लिए आप कितने..पन्द्रह देते हो आजकल?

प्रश्नकर्ता: तीस-पैंतीस रुपये।

आचार्य प्रशांत: तीस रुपये देते हो। और आपको पता है, वो दुनिया का सबसे वैल्युएबल ब्रैंड (कीमती ब्रैंड) है आज भी। शायद अभी उसको एप्पल ने ओवरटेक किया है। पता नहीं किसने, एप्पल ने? पर आज तक वो दुनिया का सबसे वैल्युएबल ब्रैंड था। वो आपका प्रीस्ट है आज। जब आप उसको खरीद रहे हो, तो क्या आपको पता है कि आप क्या कर रहे हो? और आप उसे खरीदते नहीं; आप उसे सिर्फ़ इसलिए खरीदते हो, क्योंकि आप टीवी देखते हो। आज उसका एड (विज्ञापन) आना बन्द हो जाए, कल कोक की सेल (बिक्री) बन्द हो जाएगी। उसकी कोई नीड (आवश्यकता) ही नहीं है न, आपको याद ही नहीं आ सकता वो।

प्रश्नकर्ता: वो बार-बार हमारे दिमाग पर दबाव डाल रहे हैं कि इसे लो।

आचार्य प्रशांत: कोक इज़ सेक्सी, कोक इज़ गुड। व्हेन यू हैव द कोक इन योर हैंड, यू आर स्मार्ट। ऑल काइन्डस ऑफ़ एड्स। (कोक सेक्सी है, कोक अच्छा है। जब आपके हाथ में कोक होता है, आप स्मार्ट दिखते हैं। ये सभी प्रकार के विज्ञापन चल रहे हैं)। ये जो आपको लगातार प्रभावित किया जा रहा है मकान खरीदने के लिए, आपको पता है, दुनिया की सारी फ़ाइनेंशियल क्राइसिस (वित्तीय संकट) आज इसलिए है क्योंकि दुनिया की हर मिडल क्लास फ़ैमिली (मध्यम वर्गीय परिवार) ने प्रॉपर्टी (सम्पत्ति) खरीद ली है, जिसकी आज उसको ईएमआइ (किश्तें) देने का भी पैसा नहीं है।

ये जो पूरा स्लो डाउन (अर्थव्यवस्था का धीमा पड़ जाना) चल रहा, और यही चल रहा है। ये जितने ये डेवलपर्स लाइन से लगे हुए हैं, इन्होंने ही अनइम्प्लॉइमेन्ट (बेरोज़गारी) और बेकारी और बदतमीज़ी पैदा की है।

प्रश्नकर्ता: स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ने के कारण लोग कोका-कोला कम पीने लगे हैं, खासकर उच्च आय वर्ग में। कोका-कोला ने अब अपने मार्केटिंग प्रयास निचले आय वर्ग, जैसे रिक्शा चालक और टैक्सी चालक, पर केंद्रित किये हैं। इनके लिए छोटे आकार के कोक बाजार में उतारे गये हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रमुखता से बिक रहे हैं। कोक के उत्पादन की लागत काफ़ी कम है और मुख्य कंपनी को इसका अधिकांश मुनाफ़ा जाता है। एफ़एमसीजी ब्रैंड्स (तेजी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुएँ) अब कम आमदनी वाले लोगों को छोटे पैकेज में महँगे दाम पर सामान बेचकर निशाना बना रहे हैं।

आचार्य प्रशांत: आप अगर एक औरत हो तो एक ज्वेलरी वाला बन्दा आपसे क्या चाहेगा? जल्दी बताओ न!

प्रश्नकर्ता: वो भावनात्मक रूप से मेनिप्युलेट करना चाहेगा।

आचार्य प्रशांत: वो ये चाहेगा कि आप करियर वुमन (कामकाज़ी महिला) बनो, या वो ये चाहेगा कि आप जल्दी से शादी करके एक हाउसवाइफ़ बन जाओ?

प्रश्नकर्ता: शादी करके हाउसवाइफ़ ; उन्हें इन सब चीज़ों की ललक ज़्यादा रहती है।

आचार्य प्रशांत: करियर वुमन को कहाँ टाइम है कि वो उसको (खरीदे)।

प्रश्नकर्ता: तनिष्क की एक योजना थी जिसमें उपभोक्ता हर महीने ग्यारह महीने तक किश्तें भरता है, और तनिष्क वाले बारहवीं किश्त भरते हैं। मैंने भी इसमें निवेश किया और हर महीने दस हज़ार रुपये जमा करने लगी। मुझे लगा था कि इससे अच्छा-खासा लाभ मिलेगा, लेकिन बाद में पता चला कि मेकिंग चार्जेज़ (बनाने की लागत) बहुत अधिक हैं और मेरा निवेश उसी में खर्च हो गया। यह योजना भावनात्मक जरूरतों को ध्यान में रखकर बनायी गयी थी; अंततः मुझे इसका कोई वित्तीय लाभ नहीं मिला।

आचार्य प्रशांत: आप देखो न सही, मैं कह रहा हूँ कि आपके प्रीस्ट कौन हैं, आपको लाइफ़ एजुकेशन (जीवन शिक्षा) कौन दे रहा है; यही तो दे रहे हैं — ‘घर बनता है खुशियों से और खुशियाँ बनती हैं अपनों से।’ नाओ दिस इज़ — ‘और अपने बनते हैं सपनों से; अपने सपनों को साकार करिए, आज ही इस दिवाली अपने घर लेकर आइए..व्हॉटएवर (कुछ भी)।’

अरे! कल एक और चीज़ देखी। कल देखा कि ये जो घर अब तुमने ले लिया है, इसको गिरवी रखकर अब हमसे लोन लो, उससे कुछ और करो। पहले हमसे लोन लो घर खरीदने को, अब उसी घर को मॉर्गेज (गिरवी रखना) करके और लोन लो, कुछ और खरीदो। तो आपकी पूरी ज़िन्दगी जो करते हुए बीत रही है, आपको दिख भी नहीं रहा कि चन्द गिने-चुने लोग बैठे हैं और पेट बजा-बजाकर हँस रहे हैं, और आप सिर्फ़ उनके सर्वेंट्स की तरह काम कर रहे हो।

प्रश्नकर्ता: जिस दिन उन्हें मॉर्गेज के मामले में बैंक के चक्कर लगाने पड़ेंगे और मैनेजर उनका लोन रिजेक्ट कर देगा, उस दिन उनसे ज़्यादा सदमे में कोई नहीं होगा।

दूसरी बात, अगर हमें कोई मूर्ख व्यक्ति मिल जाए, तो आमतौर पर फिर उसे और अच्छे से मूर्ख बनाया जाता है। आप देख लो कि दस लोग मिलकर भी नहीं बता सकते कि ये हीरा असली है या नकली। मेरे एक दोस्त ने मोटी चेन पहनी थी और दस-पंद्रह लोग बैठे थे। आधे घंटे तक यह चलता रहा कि वह चेन असली है या नकली। अगर इतनी दुविधा है, तो..

आचार्य प्रशांत: तो नकली ही पहन लो!

प्रश्नकर्ता: तो नकली ही पहन लो। और अगर वो असली होती तो कम-से-कम सवा लाख की थी। और वो मेरा दोस्त इतने मज़े से बैठा हुआ है..कर लो, बताओ, असली है कि नकली है। आधे घंटे तक कोई बता ही नहीं पाया कि वो असली है या नकली।

आचार्य प्रशांत: यूएस (युनाइटेड स्टेट) में जब फ़ोर्ड और जनरल मोटर्स की राइवलरी (प्रतिस्पर्धा) चल रही थी, दैट वॉज़ द टाइम व्हेन रोड कंस्ट्रक्शन वॉज़ एट इट्स पीक। बोथ फ़ोर्ड एंड जीएम एन्श्योर्ड देट मोर-एंड-मोर रोड्स आर बीइंग मेड (वो समय था जब वहाँ सड़कें सबसे ज़्यादा बन रही थीं। फ़ोर्ड और जीएम, दोनों ने यह सुनिश्चित किया कि ज़्यादा-से-ज़्यादा सड़कें बनें)। जबकि अमेरिका ऐसा देश है जहाँ पर आपको लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेवल रोड (लम्बी दूरी की सड़कें) से आप कर नहीं सकते।

भारत में ठीक है, डिस्टेंसेज़ (दूरियाँ) छः-सौ, हज़ार किलोमीटर होते हैं; यूएस में तो मेनी थाउज़न्ड माइल्स, व्हेयर यू मस्ट फ़्लाइ (कई हज़ार मीलों की दूरी होती है जहाँ आपको हवाई जहाज़ से जाना पड़ेगा)। पर रोड ऐसी कर दी गयी कि आपका मन कर रहा है ड्राइव (गाड़ी चलाना) करने का; गाड़ियाँ खूब बिक रही हैं। और ये बाद में पता चला कि उसकी पूरी फ़ाइनेन्सिंग (वित्त व्यवस्था) ही इन्होंने कर रखी थी, फ़ोर्ड ने और जीएम ने। रोड्स बनायी जा रही हैं।

हम अपनी सैलरीज़ का जो कितना बड़ा हिस्सा कहाँ इन्वेस्ट (निवेश) करते हैं, हमें कहाँ पता है। आप अगर महीने में दो-तीन मूवीज़ भी देख रहे हैं, आप कैलक्यूलेट (हिसाब लगाना) करिए कि आप साल भर में मूवीज़ पर कितना खर्च कर देते हो। मुझे लग रहा है कि एक आम फ़ैमिली का साल भर का मूवी का खर्च लाख या लाख से ऊपर जाएगा, सिर्फ़ मूवी-मूवी का। अगर पाँच लोगों का परिवार है, तो पाँच तो टिकट ही हो गये। कितना हुआ? बारह-सौ-पचास का तो टिकट ही है, उसके बाद आना-जाना और खाना। वन मूवी आउटिंग विल नॉट बी लेस देन (एक फ़िल्म देखने की कीमत कम-से-कम) ढाई हज़ार रुपये!

प्रश्नकर्ता: इसके अतिरिक्त मॉल के अन्दर हैं तो वहाँ कई खरीदारियाँ होंगी।

आचार्य प्रशांत: उसको छोड़ दो एक बार को, सिर्फ़ मूवी भी है मान लो, तो भी ढाई हज़ार। एक और, आप महीने में कितनी मूवी देख रहे हो? कम-से-कम दस हज़ार तो आपका एक महीने का है; तो साल का हो गया लाख से ऊपर। और आपको पता भी नहीं है कि आपका वो पैसा किसके पास जा रहा है। आपका वो पैसा सबसे जो घटिया लोग हैं, उनके पास जा रहा है। जो बिलकुल द कर्स ऑफ़ द सोसाइटी (समाज के लिए श्राप) हैं, उनकी फ़ाइनेन्सिंग कर रहे हो अपने हार्ड अर्न्ड मनी (मेहनत का पैसा) से। और वो पैसा आपने अर्न कैसे किया? बॉस की लात खा-खाकर, गन्दे काम करके, अपने कस्टमर को गन्दी चीज़ें बेच-बेचकर।

प्रश्नकर्ता: एक और तथ्य है कि सारा मीडिया बारह सबसे बड़े कॉर्पोरेट हाउसेस के नियन्त्रण में है। अगर ऐसा रहेगा तो ज़रूर ही हमारे बीच भ्रामक चीज़ें फैलायी जाएँगी, जिनसे उनका स्वार्थ सिद्ध होता हो।

आचार्य प्रशांत: इन फ़ैक्ट, वी शुड हैव वन ऐक्टिविटी, जस्ट डॉक्यूमेंट ऑल दीज़ थिंग्स (हम सभी को इन सब खर्चों का एक लेखा-जोखा तैयार करना चाहिए) — तुम जो देखते हो, तुम जो खाते हो। और ये साज़िशें कितनी गहरी जा रही हैं, अभी हमें इसका अन्दाज़ा नहीं है। आप जो खा रहे हैं, उसको भी मेनिप्यूलेट (हेर-फेर) किया जा रहा है। देयर आर लैब्स, दे डिटरमिन देट व्हॉट इन योर फ़ूड विल मेक यू मोर डिज़ायरस, विल मेक यू क्रेव मोर (वहाँ प्रयोगशालाएँ हैं जहाँ वो तय करते हैं कि कौनसा खाना आपको और ज़्यादा खाने को इच्छुक बनाएगा, और ज़्यादा खाने की लालसा पैदा करेगा)। और आपके खाने में वही-वही केमिकल्स मिलाये जा रहे हैं जिससे आपकी डिज़ायर बढ़े और आप और शॉपिंग करो।

प्रश्नकर्ता: होता है ये सर ; कुछ फ़ूड्स में कम करने का भी होता है, डॉक्टर बताते हैं।

आचार्य प्रशांत: डॉक्टर्स के बताने की ज़रूरत नहीं है, हमेशा से ही तमोगुणी खाना, सतोगुणी खाना, ये हमेशा से ही डिमार्केशन (सीमा रेखा) बना हुआ है। प्याज़ खाओगे तो पक्का है कि शरीर में ये चीज़ें बढ़नी है, माँस खाओगे तो पक्का है कि इस तरह की कामनाएँ तुम्हारे शरीर में बढ़ेंगी, और अगर सीधे-सीधे दाल-रोटी खाओगे तो क्या होगा, ये भी पक्का पता है।

आप जो फ़ूड भी खा रहे हो, आप किसी रेस्तराँ में जाते हो, फ़ॉर एग्ज़ाम्पल, व्हेन यू गो टु स्टारबक्स, दे हैव अ पर्टिक्युलर अरोमा देयर, एंड डेट अरोमा इज़ वेरी केयरफ़ुली केलक्युलेटेड टु अराउज़ डिज़ायर विदिन यू (उदाहरण के लिए, आप स्टारबक्स जाते हो, वहाँ एक खास किस्म की खुशबू होती है, और वो खुशबू बड़े ही हिसाब से नाप-तोलकर रखी जाती है ताकि वो आपमें एक तरह की तीव्र इच्छा उत्पन्न कर दे।)

प्रश्नकर्ता: एंड टु मेक अस सिट लॉन्गर (और हमें देर तक बैठाने के लिए)।

आचार्य प्रशांत: सिट लॉन्गर, कन्ज़्यूम मोर (देर तक बैठो, ज़्यादा उपभोग करो)! जितने ये स्टोर्स (दुकानें) होते हैं, आप वहाँ घुसते हो, आपको पता भी होता है कि आपसे वो कैसे ज़्यादा पैसे निकलवा लेंगे — द पर्टिक्युलर अरेंजमेंट ऑफ़ द आइटम्स एंड एव्रीथिंग (चीज़ों की एक ख़ास तरह से की गयी सजावट)। ये जो दुनिया भर के रिसर्च (शोध) हो रही है, और फिर सब चल क्या रहा है; इसी का तो हो रहा है कि कैसे बिना बन्दे को बताये (लूट लिया जाए)। देखिए, अब वो ज़माना तो है नहीं कि कोई पिस्तौल दिखाकर लूटेगा। अब पिस्तौल दिखाकर नहीं लूटा जाता, अब ये करके लूटा जाता है। और ये लूट ज़्यादा खतरनाक है, कहीं ज़्यादा खतरनाक है!

प्रश्नकर्ता: शुरुआत में हेल्थ इसूज़ और *डिज़ीज़*। इसका मतलब खाने में भी, व्हॉट स्टेज़ विद यू इज़ अनहेल्दी।

आचार्य प्रशांत: ऑफ़ कोर्स, लाइक कंस्टिपेशन (हाँ, जैसे कब्ज़।)

प्रश्नकर्ता: नहीं, कंस्टिपेशन इज़ स्टिल बायोलॉजिकल; आइ एम सेइंग देट वंस आइ ईट अ पिज़्ज़ा, इट स्टेज़ विद मी होल डे। (कब्ज़ फिर भी जैविक है; मैं कह रहा हूँ कि जैसे एक बार मैंने पिज़्ज़ा खाया तो वो पूरा दिन मेरे साथ रहता है।)

आचार्य प्रशांत: राइट, राइट!

प्रश्नकर्ता: वहीं अगर मैं दाल-रोटी खाऊँ, तो मुझे फिर याद रखने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि खाने के कुछ समय बाद आपके शरीर में दाल-रोटी का बिलकुल भी कोई तत्व नहीं बचा है।

आचार्य प्रशांत: मैंने तो ये अनुभव किया है कि सबसे अच्छा खाना वो जो मुँह में स्वाद न छोड़े। उसका मुँह में टेस्ट ही नहीं बचता।

प्रश्नकर्ता: हाँ, जब कुछ न बचा हो, कोई अवशेष नहीं, भूल जाओगे बिलकुल।

आचार्य प्रशांत: और कुछ खाने के बाद आपकी साँस में उसकी गन्ध आ रही है और आपके मुँह में उसका स्वाद बच रहा है, तो शायद ये एक अच्छा इंडिकेशन है कि वो खाना आपके लिए ठीक नहीं है।

और सबसे मज़ेदार बात ये है कि जो कुछ हमारा पूरा शोषण कर रहा है, पूरी तरह हमें नोंच रहा है, खून पी रहा है हमारा, हमें ये यकीन दिला दिया गया है कि वही गुड लाइफ़ है। हम बिलकुल वही-वही करने के लिए मरे जा रहे हैं जो वो चाहते हैं। वो जो ऊपर आका बैठा हुआ है, वो जो चाहता है, हम वही-वही करने के लिए लालायित हैं बिलकुल!

छोटे-छोटे बच्चे, पाँच-पाँच सात-सात साल के, उनको — दे आर सच ग्रेट कन्ज़्यूमर्स टुडे (वो आज के महाउपभोगी हैं), सबसे ज़्यादा उन्हें खरीदना है, ऑल द टाइम दे आर बाइंग (हर समय वो खरीद रहे हैं)। कानपुर में मेरा एक दोस्त है, उनका बेटा — कौन सा था वो फ़ोन , तुम्हारा कौन सा है ये? (प्रश्नकर्ता से पूछते हुए)

प्रश्नकर्ता: आइ फ़ोन फ़ोर एस

आचार्य प्रशांत: हाँ, आइ फ़ोन फ़ोर एस कुछ निकला है नया, वो लेकर घूम रहा है। तो मैंने कहा कि ये आपने दिलाया इसको। बोले, ‘अरे! वो उसने नोट थ्री तोड़ दिया न, इसलिए।’

प्रश्नकर्ता: मैंने एक रिपोर्ट पढ़ा जिसमें बच्चों के एड्स में इस्तेमाल किये जाने के बारे में लिखा था। जबकि बच्चों का कपड़े धोने से कोई लेना-देना नहीं है, एड्स में बच्चों को दिखाते हुए बोला जाता है कि अगर कपड़े गन्दे हैं तो धुलेंगे सर्फ़ एक्सल में ही। ये तो मैंने एक उदाहरण दिया, ऐसे अनेकों एड्स में बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है प्रॉडक्ट्स को बेचने के लिए।

आचार्य प्रशांत: जैसे किसी समय पर किन्हीं प्रोफ़ेट्स (पैगम्बर) को आकर कुछ बातें बिलकुल नाजायज़ घोषित करनी पड़ी थीं, जैसे अरब में उनको आकर बोलना पड़ा था कि मूर्ति पूजा मत करना, सबसे बड़ा कुफ़्र यही है, उसी तरीके से अगर आज कोई प्रोफ़ेट हो, पहली चीज़ बोलेगा, ‘घर से टीवी उठाकर बाहर फेंको। और जिस घर में टीवी पाया जाए, वो साला काफ़िर का घर है, गर्दन काट दो उसकी।‘

आज जो प्रोफ़ेट होगा, वो पहला काम यही बोलेगा कि जिस घर में टीवी मिले, उसकी गर्दन काटो। जैसे उस समय ये था न कि वो जो भी थे इधर-उधर, दुनिया भर के उनके सारे काम ही गन्दे थे, तो शराब पीने पर पाबन्दी लगानी पड़ी। और बहुत चीज़ें हैं। तो वैसे ही आज इन चीज़ों पर पाबन्दी लगाने की ज़रूरत है। और ये कमैंडमन्ट (नियम) ही होंगे पूरे आचरण के लेवल के।

प्रश्नकर्ता: एक चीज़ और सर, पीपल आर बिकमिंग मोर एन्ड मोर बॉडी कॉन्शियस, देट्स व्हाइ दे फ़ॉल इन टु द ट्रैप ऑफ़ बाइंग यूज़लेस प्रॉडक्ट्स।

आचार्य प्रशांत: पीपल आर नॉट बिकमिंग (लोग होते नहीं जा रहे हैं) बेटा, नोबडी बॉर्न दिस वे, यू आर मेकिंग देम दिस वे (कोई भी ऐसे नहीं जन्मता, आप उन्हें ऐसा बना देते हो)। एव्री टाइम यू पर्चेज़ समथिंग, जस्ट बी अवेयर देट यू आर स्ट्रेंथनिंग द हैंड ऑफ़ दोज़ हू वॉन्ट टु जस्ट फ़िनिश यू। एव्री रुपी देट यू आर स्पेंडिंग, इज़ गोइंग इन्टु द पॉकेट ऑफ़ सम पर्सन, हू इज़ आउट टू एक्सप्लॉइट यू। (जब आप कुछ खरीदते हो, इस बारे में जागरूक रहना कि आप उनके हाथ मज़बूत कर रहे हो जो आपको खत्म करना चाहते हैं। हर रुपया जो आप खर्च कर रहे हो, किसी ऐसे व्यक्ति की जेब में जा रहा है जो आपका शोषण करने के लिए बिलकुल तैयार है।)

तो इसीलिए अपनी नीड्स (ज़रूरत) कम-से-कम रखिए, खरीदिए कम-से-कम। आप जितना पैसा खर्च कर रहे हो — पहली बात तो जितना खर्च करोगे उतना ही कमाना भी पड़ेगा, और कमाने में कोई दुनिया में बैठा नहीं है दानी जो आपको मुफ़्त में दे देगा पैसा। जितना खर्च करोगे, उतना ही अपनेआप को बेचना पड़ेगा। और जिसको खर्च करोगे, आप उसके हाथ मज़बूत कर रहे हो। तो इसीलिए खर्च करने से पहले सोचो कि मैं कर क्या रहा हूँ, आपका खर्च करना बहुत दूर तक जाता है।

हमने कहा था न, ‘इल्यूज़न (माया) तब है जब टोटेलिटी (पूर्णता) न दिखाई दे।’ यही इल्यूज़न है। आपको पूरी बात दिखाई नहीं दे रही है कि चल क्या रहा है; आपको बस इतना दिख रहा है कि आपने काउन्टर पर एक कपड़ा खरीद लिया है। इतना ही नहीं हुआ है, अभी बहुत कुछ हो गया है। अब आपने पैसा दे दिया है, जिससे वो और एडवर्टाइज़ (विज्ञापित) करेगा। और आप उस एडवर्टाइज़्मेंट (विज्ञापन) के कारण तो अपने ही पैसे से अपनी ही गुलामी खरीद रहे हो, एंड द कॉनसन्ट्रेशन ऑफ़ वेल्थ इज़ इन्क्रीजिंग (और धन का संग्रहण बढ़ रहा है)।

आज ऐसा है कि लेस देन वन परसेंट ऑफ़ पॉपुलेशन कंट्रोल फ़िफ़्टी परसेंट ऑफ़ वर्ल्ड्स वेल्थ (एक प्रतिशत से कम जनसंख्या के पास पूरी दुनिया का पचास प्रतिशत धन है)। आज से बीस साल पहले भी ऐसा नहीं था, उसके पहले और कम था। मोर एंड मोर मनी इज़ शिफ़्टिंग टु फ़्युअर एंड फ़्युअर हैंड्स, एंड दोज़ फ़्युअर हैंड्स आर बिकमिंग मोर एंड मोर पॉवरफ़ुल (अधिक से अधिक पैसा दुनिया के उन चुनिन्दा हाथों में जा रहा है, और वो हाथ ज़्यादा से ज़्यादा ताकतवर होते जा रहे हैं)। गैप इज़ इन्क्रीज़िंग (अमीर-गरीब के बीच फ़ासले बढ़ते जा रहे हैं)। इकोनॉमिक्स में उसको, एक जिनी कोइफ़िशन्ट होता है, उससे मेज़र करते हैं।

प्रश्नकर्ता: बैंक ने क्रेडिट कार्ड जारी कर दिये हैं, जिससे शॉपिंग करना बहुत आसान हो गया है। पहले जब नकद भुगतान करना होता था, तो लोग दो हज़ार रुपये के उत्पाद को खरीदने से पहले दस बार सोचते थे। अब केवल कार्ड स्वाइप करना होता है, जिससे प्लास्टिक मनी का उपयोग बढ़ गया है। ऐसा लगता है कि अगले महीने इसका भुगतान कर देंगे। इसका नतीजा ये है कि आजकल कई लोग विभिन्न प्रकार के लोन जैसे कार लोन, पर्सनल लोन आदि में उलझे हुए हैं। कई बार तो यह लोन चुकाते-चुकाते पूरा जीवन ही बीत जाता है।

आचार्य प्रशांत: और आपकी जो पूरी लॉ एंड ऑर्डर की व्यवस्था है, और क्या काम कर रही है? अब थोड़ा ध्यान से सोचना, इससे पहले कि बोलो, ‘जय पुलिस और जय सेना।’ अब पुलिस का इस स्थिति में क्या रोल है, जब हर कोई लोन में है? हर कोई लोन में है, और कुछ लोग हैं जो..?

प्रश्नकर्ता: बचे हुए हैं।

आचार्य प्रशांत: बचे नहीं हुए हैं। जिन्होंने वो लोन दे रखा है और जिस लोन का वो इंटरस्ट वसूलेंगे, तो अब पूरे सिस्टम का, कोर्ट्स का, और पुलिस का क्या काम है अब?

प्रश्नकर्ता: लोगों से पैसा निकलवाना।

आचार्य प्रशांत: ये एन्श्योर (पक्का करना) करना कि लोग वापस दे रहे हैं। यही तो लॉ एंड ऑर्डर है — जब लोन लिया है तो पैसे लौटाओ। तो इतनी जल्दी खुश मत हो जाया करो।

प्रश्नकर्ता: अब हर किसी के पास पचास क्रेडिट कार्ड हैं, और लगभग दो-से-तीन प्रतिशत जनसंख्या कर्ज़ चुका रही है।

आचार्य प्रशांत: आप जिन नेताओं को गाली देते हो, जानते हो उन नेताओं को पैसा कहाँ से मिलता है? दो सोर्सेज़ (स्रोतों) से — एक तो आपके टैक्स का पैसा जो वो उड़ा लेते हैं; दूसरा, ह्यूज डोनेशंस (बड़े अनुदान), जो उनको कम्पनीज़ से आती हैं। कांग्रेस को पिछले फ़ाइनेंशियल इयर (वित्तीय वर्ष) में करीब पौने तीन हज़ार करोड़ की डोनेशन मिली है, और बीजेपी को करीब एक हज़ार करोड़ की। वो जो डोनेशन कॉर्पोरेट हाउसेज़ इनको दे रहे हैं, वो किसका पैसा है?

प्रश्नकर्ता: हमारा।

आचार्य प्रशांत: वो आपका पैसा है। फ़ायदा चलिए जिसको मिल रहा है, ठीक, ये पक्का है कि वो पैसा हमारा है। वो पैसा कमाने के लिए अपनी ज़िन्दगी खराब कर रहे हैं। और वो पैसा आप ही खर्च करते हैं, आपसे कोई ज़बरदस्ती नहीं छीन रहा है। और वो पैसा आप खर्च करके ऐसे लोगों के हाथ मज़बूत कर रहे हैं। आप जिस आर्मी को बोलते हो कि देश को प्रोटेक्ट कर रही है, देश के नाम पर वो किसको प्रोटेक्ट कर रही है? आपको कर रही है क्या? पॉलिटिशियंस को प्रोटेक्ट कर रही है न! क्योंकि देश जाएगा तो आप तो तब भी रहोगे, राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री नहीं रहेगा।

इससे पहले कि आप गुण गाओ और जल्दी से भावुक हो जाओ और करने लगो एफ़र्ट (प्रयास), देखो तो कि इस पूरी चीज़ में आपका क्या है, हाउ मच ऑफ़ आइ, इसमें मेरा क्या है।

YouTube Link: https://youtu.be/SZ7QBVmgy7w?si=8H0QqGuRHEtBVWFF0

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