लोग ट्विटर पर अफवाहें क्यों फैलाते हैं?

Acharya Prashant

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लोग ट्विटर पर अफवाहें क्यों फैलाते हैं?
यह जीवन की गरीबी और दरिद्रता का प्रमाण है कि न जोश है, न जज़्बा, न सामर्थ्य, न ईमानदारी। तो ट्विटर पर अफवाहें फैलाना, गाली-गलौज करना ही पेशा बन गया है। घर का लंगड़ा कुत्ता भी बात नहीं मानता और कुछ करने को भी नहीं है, तो खोलो ट्विटर! जो समय गाली-गलौज और दुष्प्रचार में बर्बाद कर रहे हो, उसे शिक्षा हासिल करने में लगाओ। बहुत कुछ है जो पढ़ सकते हो, जान सकते हो। जीवन को सार्थक लक्ष्य से भरो, फिर या तो सोशल मीडिया के लिए वक्त नहीं रहेगा या फिर उसका सदुपयोग करोगे, दुरुपयोग नहीं। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: मैंने देखा है कि मेरे आसपास के सब यार दोस्त लोग जिनका दुनिया में मुँह भी नहीं खुलता, कुछ तो बहुत ही औसत स्तर के हैं, कुछ ऐसे हैं जो फिसड्डी से भी हैं; यह सब लोग ट्विटर और रेडिट वगैरह पर जाकर जाँबाज़ योद्धा और सूरमा हो जाते हैं। खूब लड़ते हैं एकदम जोश में, ये क्या है?

आचार्य प्रशांत: ये वही है जो तुम समझ ही रही हो और मेरे मुँह से कहलवाना चाहती हो। ज़िन्दगी में चूँकि कुछ कर पाने का न जोश है, न जज़्बा, न सामर्थ्य, न ईमानदारी; तो जाकर के यूँ ही पहुँच गए और ट्विटर पर किसी को गरिया दिया।

कई लोग तो ऐसे होते हैं कि एक-एक दिन में आठ-आठ, दस-दस ट्वीट हैं और उसके बाद दिन के अस्सी कमेंट् (टिप्पणियाँ) दूसरों के अकाउंट पर जा जाके। खास तौर पर ट्विटर तो जैसे द्वेष, दुर्भावना और गाली-गलौज का अड्डा बना हुआ है। ट्विटर पर हर आदमी एक घायल योद्धा है। ज़िन्दगी की जिसने बड़ी महान लड़ाइयाँ लड़ी हैं और अब आकर के जीवन भर में उसने जो ज़हर इकट्ठा करा है, उसको उगल रहा है कभी इस अकाउंट पर, कभी उस अकाउंट पर।

अभी कल-परसों मैंने जर्मन विचारक हैं, आर्थर शोपेनहावर, उनको लेकर के एक ट्वीट डाली। जिसमें मैंने जो नीचे चित्र होता है, जो अटैचमेंट (संलग्न) होता है, उसमें मैंने पहले उनको उद्धृत करा है, उनको क़ोट करा है उन्हीं के शब्दों में, जहाँ पर उन्होंने उपनिषदों के बारे में कुछ बोला है, बहुत कुछ बोला। उन्होंने बोला है कि, “मेरे दर्शन पर उपनिषदों का बड़ा गहरा प्रभाव रहा है और उपनिषदों को अगर कोई पढ़ ले तो उसके जीवन में, उसके मन में तमाम तरह की उच्च भावनाओं और विचारों का प्रवाह होगा।“ फिर आगे उन्हीं के शब्दों में उन्होंने कहा है कि, “उपनिषदों ने मुझे जीवन में तो शांति दी ही दी है, मरते वक्त भी यह मुझे शांति प्रदान करेंगे।“

तो ये पूरा क़ोट उस ट्वीट में संलग्न है, उसी ट्वीट का हिस्सा है। फिर उस ट्वीट पर मैंने लिखा कि भाई! बहुत सारे प्रमुख वैज्ञानिक, विचारक, दार्शनिक, नाटककार; आइंस्टीन हो, सैमुअल बेकेट हो, बर्नार्ड शॉ हो, नीत्शे हो; ये सब बड़े प्रेरित थे शोपेनहावर से। अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे में तो कहते हैं कि उन्होंने अपनी स्टडी में, जो उनका अध्ययन कक्ष था, उसमें सिर्फ तीन लोगों की तस्वीर लगा रखी थीं जिसमें से एक तस्वीर शोपेनहावर की थी।

मैंने लिखा कि ये सब जो लोग थे ये शोपेनहावर से प्रेरित थे और शोपेनहावर उपनिषदों से प्रेरित थे और उन्हीं उपनिषदों का भारत में बड़ा अपमान है। उनके प्रति या तो अज्ञान है या अपमान है। तो उस पर किन्हीं सूरमा उनका कमेंट आया, बोल रहे कि आपको कैसे पता कि शोपेनहावर ने उपनिषद् पढ़े भी थे? क्योंकि भाई! उन्होंने ही बोला है, मैंने नहीं बोला। और उन्होंने जो बोला है वो उसी ट्वीट में उद्धरण के तौर पर लगा दिया है। पर ट्विटर पर सब लोग दुर्जेय योद्धा हैं।

कुछ न आता हो, कुछ न जाता हो। तुम्हारे घर में तुम्हारा लंगड़ा कुत्ता भी तुम्हारी बात न मानता हो लेकिन तुमको ट्विटर पर आकर पूरी दुनिया से अपनी बात मनवानी है। उतरे ही इसलिए हैं कि क्या है अभी कुछ करने को नहीं है, चलो रे! कुछ खोलो ट्विटर, रेडिट, यूट्यूब, कुछ खोलो फेसबुक खोलो। जाकर के कहीं पर पाँच-सात लोगों को गाली-गलौज कर लेते हैं, गरिया आते हैं।

ये सब आपके जीवन की जो विपन्नता है, गरीबी, दरिद्रता, उसका सबूत है कि ये सब करना पड़ता है।

आपके पास करने के लिए कोई सार्थक काम हो तो फिर आप सोशल मीडिया का उस सार्थक काम के लिए उपयोग करेंगे, अगर उस काम में सोशल मीडिया का कोई उपयोग हो सकता है तो। आप ये थोड़ी ही करेंगे कि जगह-जगह घूम कर के दूसरों को गरिया रहे हैं। कोई कुछ मिल गया जो आपने पढ़ा भी नहीं, जिसको आप पढ़ सकते भी नहीं और वहाँ पर आप टिप्पणियाँ लिख रहे हैं।

ये तक चल रहा होता है — अरबी में कुछ लिखा होगा, फ्रेंच (फ्रांसीसी) में कुछ लिखा होगा, उस पर जाकर के नीचे कोई भोजपुरी में कमेंट कर रहा है और गरिया रहा है। क्योंकि उसे ये करना था। उसका दिन का कोटा है कि उसे दस-बीस जगह जाकर के मल त्याग करना है तो कर आया।। उसने कर दिया।

आज ही का तो दिन था, किन्हीं सज्जन ने एक ख़ासतौर पर वीडियो बनाया है मुझे टारगेट करके, लक्ष्य करके और वो कह रहे हैं कि ये देखिए ये कोरोनावायरस के बारे में जनता को भ्रमित कर रहे हैं तो इनके जो कोरोनावायरस पर वीडियो हैं, सब लोग जा करके उसको डिसलाईक (नापसंद) करो। भाई! तुम्हारे और कोई काम नहीं हैं?

मैं इतना महत्त्वपूर्ण आदमी नहीं हूँ कि तुम मुझे लक्ष्य बना करके मेरे वीडियो डिसलाइक कराओ, चाहे लाइक (पसंद) करवाओ, कुछ भी। और जहाँ तक कोरोनावायरस की बात है, उसके लिए यूट्यूब पर लड़ाईयाँ थोड़ी ही लड़ी जाएँगी। जाओ कुछ रिसर्च जर्नल्स (शोध पत्रिकाएँ) पढ़ो। दुनिया की प्रयोगशालाओं में जो शोध हो रहे हैं, उनकी जानकारी हासिल करो।

और वो चीज़ें टीवी चैनल से नहीं सीखोगे तुम, न किसी तुम यूट्यूब के वीडियो से सीख लोगे। उसके लिए तुम्हें विज्ञान की कुछ समझ होनी चाहिए। उसके लिए तुम्हें केमिस्ट्री (रसायन शास्त्र) थोड़ी पता हो, थोड़ी बायोटेक्नोलॉजी (जैव प्रौद्योगिकी) पता हो, थोड़ी वायरोलॉजी (विषाणु विज्ञान) पता हो, थोड़ी एपिडेमिओलॉजी (महामारी विज्ञान) पता हो। अगर ये बातें नहीं पता हैं तो इन पर कोई कोर्स कर लो। हफ़्ते-हफ़्ते के भी कोर्सेस होते हैं जिससे तुमको थोड़ा, आरंभिक ज्ञान मिल जाएगा।

अभी तो तुमसे पूछे कि आर (R) और आर नॉट (R0) का अंतर बता दो, क्या अंतर है? एक वायरस (विषाणु) कितना फैल रहा है उसमें आर और आर नॉट, ये दो संख्याएँ होती हैं जो बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं, तो तुम्हें वो न पता हो। अभी तुमसे पूछे कि इसमें जो मरीजों का, चाहे वो इन्फेक्शंस (संक्रमण) का हो और चाहे मोर्टालिटी (मृत्यु-संख्या) का हो, डिस्ट्रीब्यूशन ((बंटन/वितरण)) नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन है या पॉयजन डिस्ट्रीब्यूशन है, तो तुम्हें वो न पता हो। तुमसे पूछा जाए कि अगर ये जो डिस्ट्रीब्यूशन है, ये नॉर्मल हैं तो इसका मीन (माध्य) कितना है? अच्छा इसका यही बता दो स्टैंडर्ड डेविएशन (मानक विचलन) कितना है, तुम्हें वो न पता हो।

ये सब तुम्हें पता नहीं, तुम बातें बड़ी-बड़ी कर रहे हो। तुम कह रहे हो- ये है, वो है, कोरोना अफवाह है, ऐसा है, वैसा है, कुछ नहीं होता। थोड़ा दिमाग लगा लो। जो समय तुम इधर-उधर गाली-गलौज में और दुष्प्रचार में लगा रहे हो, उसी समय को थोड़ी तालीम हासिल करने में लगाओ। कुछ कोर्सेस कर लो। थोड़ी गणित पढ़ लो। थोड़ी स्टैटिस्टिक्स (सांख्यिकी) पढ़ लो। बहुत कुछ है जो पढ़ सकते हो, जान सकते हो। हिंदी-अंग्रेज़ी में कम बात करो संख्याओं में ज़्यादा बात करो क्योंकि संख्याओं में तथ्य होते हैं।

हिंदी-अंग्रेज़ी में तो तुम गाली-गलौज करने के लिए भी स्वतंत्र हो जाते हो। गणित में गाली नहीं होती। कभी सुना है गणित में गाली हो रही? कैसे लिखोगे गणित की गाली? एक्स क्यूब वाय स्क्वायर (X³Y²) – ये गाली हो गई? गणित में गाली नहीं दे पाओगे क्योंकि गणित में जो बात होगी वो बिल्कुल ठोस होगी। तो इसीलिए तुम गणित की भाषा में बात नहीं करते।

एक साहब हैं वो ऐसे कह रहे हैं, “ये है कोई फर्ज़ी आचार्य! आक्रमण! यलग़ार! सब लोग जाओ इसके चैनल पर इसके वीडियो को डिसलाईक करो।“ कर दो। मेरा उसमें कोई नुकसान नहीं हो रहा। मेरे लिए तो अच्छी बात है। इसी बहाने हो सकता है दो-चार लोगों को सद्बुद्धि आ जाएगी। वो डिसलाईक करने, गाली देने के लिए आएँगे, बात को सुनेंगे समझेंगे, हो सकता है सद्बुद्धि आ जाए। लेकिन एक बहुत बड़ी क़ौम खड़ी हो गई है जिसका पेशा ही यही है – व्हाट्सऐप पर अफवाहें फैलाना, सोशल मीडिया का दुरुपयोग करना।

जबकि सोशल मीडिया अपने आप में बस एक उपकरण है जिसकी उपयोगिता है। उसको तुम सही काम के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हो और घटिया मंसूबों के लिए भी।

खेद की बात यह है कि जैसा आदमी होता है वैसे उसके मंसूबे होते हैं। चूँकि हम सब बड़ी अंधेरी ज़िन्दगियाँ जीते हैं इसीलिए हमारे मंसूबे भी काले होते हैं। जीवन में कुछ सार्थक पाओ करने के लिए उसके बाद या तो तुम्हारे पास सोशल मीडिया के लिए वक्त नहीं रहेगा या फिर तुम सोशल मीडिया का सदुपयोग करोगे। समझ में आई बात?

जीवन को किसी सार्थक काम, किसी सार्थक लक्ष्य से भर दो। उसके बाद या तो सोशल मीडिया के लिए तुम्हारे पास बहुत वक्त बचेगा नहीं और अगर तुम्हारे सार्थक काम, सार्थक लक्ष्य में सोशल मीडिया उपयोगी है तो फिर तुम उसका सदुपयोग ही करोगे दुरुपयोग नहीं।

ठीक है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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