नफरत की असली वजह: जब हम खुद को दूसरों में देखते हैं

Acharya Prashant

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नफरत की असली वजह: जब हम खुद को दूसरों में देखते हैं

प्रश्नकर्ता: कार्ल गुस्ताव जंग ने एक जगह लिखा है कि, “*इफ यू हेट अ पर्सन, यू हेट समथिंग इन हिम दैट इज़ पार्ट ऑफ योरसेल्फ।*”(यदि आप किसी व्यक्ति से नफरत करते हैं, तो आप उसमें मौजूद किसी चीज़ से नफरत करते हैं जो आपका ही हिस्सा है।) तो इस लाइन का क्या मतलब है?

आचार्य प्रशांत: अक्सर जिससे तुम्हें सख्त नफ़रत होती है, उससे तुम्हें नफ़रत होती ही इसीलिए है क्योंकि वो बिलकुल तुम्हारे जैसा है।

चूॅंकि वो बिलकुल तुम्हारे जैसा है इसीलिए उसको भी वही चाहिए जो तुम्हें चाहिए। और चूॅंकि उसको भी वही चाहिए जो तुम्हें चाहिए इसीलिए तुम उससे नफ़रत करते हो। क्योंकि तुम्हें लगता है कि जो तुम्हें चाहिए वो ऐसी चीज़ है जो बाॅंटने से बँट जाएगी, जो सीमित है और जिस पर यदि एक का कब्ज़ा हो गया तो दूसरे को नहीं मिलेगी। बात समझ रहे हो?

दो लोग बहस कर रहे हैं। दोनों क्या चाहते हैं? जीत। और धारणा ये है कि जीत दो में से किसी एक की हो सकती है। चाहते दोनों एक ही चीज़ हैं, क्या? जीत। दोनों एक को ही चाहते हैं लेकिन दोनों की ही धारणा है कि वो चीज़ दोनों की नहीं हो सकती, एक की हो सकती है, इसीलिए दोनों एक दूसरे से नफ़रत कर रहे हैं।

दो पुरुष हैं, दोनों को एक ही स्त्री चाहिए। गौर से देखा जाए तो दोनों बिलकुल भाई-भाई हैं, दोनों बिलकुल एक जैसे हैं क्योंकि दोनों को एक ही स्त्री चाहिए। पर दोनों को एक-दूसरे से बड़ा दुश्मन कोई नहीं लगेगा, दोनों में बड़ी ईर्ष्या उठेगी।

तुम्हें जिससे ईर्ष्या उठती है, समझ लो तुम बिलकुल वैसे ही हो। जो तुमसे बहुत नीचे का है उससे तुम्हें ईर्ष्या नहीं उठ सकती। उठेगी कभी? और जो तुमसे बहुत ऊपर का हो उससे भी तुम्हें ईर्ष्या नहीं उठ सकती।

नौकरानी को सेठानी से ईर्ष्या नहीं होती, नौकरानी को बगल के घर की नौकरानी से ईर्ष्या हो जाती है। जो तुमसे बहुत ऊपर का हो, उससे तुम्हें कोई ईर्ष्या नहीं होती। तो जिससे तुम ईर्ष्या कर रहे हो, ईर्ष्या करके तुम यही दर्शा देते हो कि तुम बिलकुल वैसे ही हो।

और उसके जिन अवगुणों से तुम दुश्मनी रखते हो, वो सब अवगुण तुममें भी हैं, इसीलिए तो तुम उससे इतना …। सामने वाले में दोष दिखें और तुममें भी वहीं दोष हों तो नतीजा दो में से एक निकलेगा— या तो दोस्ती या दुश्मनी।

समझना बात को। सामने वाले में दोष दिखें और तुममें भी वहीं दोष हों तो दो में से एक नतीजा निकलेगा— या तो दोस्ती होगी या दुश्मनी। तुम नशेड़ी हो, सामने वाला भी नशेड़ी है तो दोस्ती हो सकती है अगर बहुत सारी शराब उपलब्ध हो, कि चल भाई, साथ-साथ पिएँगे। तो दोस्ती हो जाएगी।

पर तुम नशेड़ी हो, सामने वाला भी नशेड़ी है और बोतल एक ही है तो तत्काल दुश्मनी हो जाएगी, कि किसको मिलेगी। तुम और तुम्हारे सामने जो है अगर वो एक से ही हैं तो रिश्ता या तो दोस्ती का बनेगा या दुश्मनी का।

ये तब है जब तुममें वही दोष है जो दूसरे में भी है। पर दूसरे में दोष है और वो दोष तुममें नहीं है तो फिर रिश्ता बनता है करुणा का।

दोषी को देखकर तुममें आकर्षण या विकर्षण उठे तो समझ लेना कि तुम भी बराबर के दोषी हो। और दोषी को देखकर तुममें करुणा उठे तो समझ लेना कि तुम उस दोष से मुक्त हो।

दुनिया में बहुत दोष होंगे, पर अगर वही दोष तुममें नहीं हैं तो तुममें दुनिया के प्रति करुणा उठेगी, तुम कहोगे, ‘बेचारा अपने दोषों से कितना परेशान होगा, मुझे इसकी मदद करनी चाहिए।’ पर जो दोष दूसरे में हैं वही तुममें भी हैं, तो या तो यारी हो जाएगी या रंजिश हो जाएगी। और यारी करुणा नहीं होती।

ये जो यारी है ये थोड़े ही दिन में रंजिश में बदल जाएगी और ये जो रंजिश है ये थोड़े दिन में यारी में बदल जाएगी।(हँसते हुए)

मैंने पिक्चर देखी एक; तो दो उचक्कोंने एक आदमी को पकड़ रखा था लूटने के लिए, आदमी को कमरे में बन्द कर रखा था। आदमी को कमरे में बन्द कर रखा था। कमरे के बाहर वो दोनों भिड़ गए, क्यों भिड़ गए? कि कौन लूटेगा इसे, लूट का माल किसका होगा? समझ रहे हो?

क्योंकि दोनों में एक ही दोष है। क्या दोष है? चोरी, हिंसा, क्रूरता, लालच। तो लूटने के लिए जिसको बन्द कर रखा है, उसको लेकर के दोनों उचक्केबाहर भिड़ गए।

और थोड़ी देर में मैंने परदे पर देखा कि जिसको इन्होंने बन्द कर रखा था वो भाग गया। वो भाग गया तो दोनों उचक्केएक हो गए रंजिश यारी में बदल गयी। वो भाग गया तो ये दोनों एक हो गए कि चल साथ-साथ पकड़ेंगे इसको, *फिफ़्टी-फिफ़्टी*।

अब वो भाग रहा है और पीछे मोटर साइकिल पर ये दोनों, एक चला रहा है, एक पीछे बैठा है। थोड़ी देर पहले एक-दूसरे का गला काट रहे थे। गला भी इसीलिए काट रहे थे कि किसी को लूटना है और दोस्ती भी इनमें आपस में इसीलिए हो गयी कि किसी को लूटना है।

ये सूत्र अच्छे से समझ लो। दोष, दोष की तरफ़ बड़ी तेजी से खिंचते हैं, कभी राग बनकर, कभी द्वेष बनकर। मर्द भी कामुक है, औरत भी कामुक है, दोनों एक-दूसरे की ओर बड़ी तेजी से खिंचेंगे। ये राग है। दोष, दोष की ओर खिंचा। इसमें भी कामदोष है, पुरुष में भी कामदोष है, स्त्री में भी कामदोष है। दोनों एक-दूसरे की ओर बड़ी तेज़ी से खिंचे, ये राग है।

और कोई तीसरी स्त्री आ गयी उसमें भी कामदोष है, तो ये पहली स्त्री उसका गला काटने दौड़ी। ये दोष और दोष के बीच का द्वेष है।

दोष के प्रति करुणा रखो, ये तुम्हारा रवैया होना चाहिए। दोषी के प्रति करुणा। जो जितना दोषी हो उसके प्रति उतनी सद्भावना। क्या तुम जानते नहीं कि दोष के साथ कितने दुख आते हैं? तो जो दोष में जी रहा है, वो तो बहुत ही दुखी होगा न! होगा दुखी कि नहीं होगा? तो दुखी के प्रति द्वेष रखकर क्या करोगे? दुखी के प्रति तो ज़रा सद्भावना रखो, दुखी के प्रति तो करुणा रखो न।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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