प्रश्न: सर, आपने जैसा कहा कि किसी का गुलाम नहीं होना चाहिए। जो रहो खुद रहो। क्या ये संभव है कि एक समाज में रह कर हमारे ऊपर समाज का फर्क ना पड़े, अपने परिवार या माता पिता के कोई फर्क ना पड़े? क्या ये पूरी तरह से संभव है?
वक्ता: संभव है कि नहीं है ये तुम बताना। मैं तुमसे कुछ बातें करूँगा।
मैं कुछ कह रहा हूँ तुमसे। अभी मैं ही तुम्हारा समाज हूँ। ठीक इस वक्त। समाज तुमसे कुछ कह रहा है, पर उसको समझने वाला कौन है? उसको ग्रहण करने वाला कौन है? तुममें और इस माइक में अंतर है। इसमें अपनी कोई चेतना नहीं है। ये कुछ समझ नहीं सकता। ये तो बस लिये जायेगा जो भी कह रहा हूँ। अधिकांश लोग इस माइक की तरह जीते हैं। इन्हें जो दे दिया गया उन्होंने बस ले लिया। ये माइक क्या करता है? ये और जोर से भोपू बजा देता है बस। यहाँ से लिया और वहाँ से भोंपू बज गया। ज्यादातर मानवता ऐसे ही जीती है। कोई उसको दे रहा है और वो उस भोंपू को बजाये ही जा रहा है। इसमें और तुममें बड़ा अंतर है। ये ले रहा है; तुम समझ रहे हो। क्या ये कभी भी समझ सकता है ?
श्रोता १: नहीं।
वक्ता: मैं इससे ५०० साल तक बातें करता रहूँ। ये कभी कुछ समझ सकता है क्या? पर लेता रहेगा। बाजा बजता रहेगा। समझेगा कुछ नहीं। ये कह रहा हूँ। समाज आ कर सौ बातें तुमसे बोलेगा। मैं तुमसे ये भी नहीं कह रहा हूँ कि जो कुछ कहा जा रहा है वो सब गलत है। ना। समझने का अर्थ है जानना, जानना कि समाज चीज क्या है, जानना कि कोई भी समाज किसी से क्यों कहने आता है, जानना कि समाज का और व्यक्ति का सम्बन्ध क्या होता है। क्या डर है समाज और व्यक्ति का सम्बन्ध? क्या मालिक और गुलाम है समाज और व्यक्ति का सम्बन्ध? समाज और व्यक्ति का सम्बन्ध मूलतः व्यक्ति और व्यक्ति का सम्बन्ध है। क्योंकि समाज भी व्यक्तियों से ही बना है। तो व्यक्ति और व्यक्ति में कैसा सम्बन्ध होना चाहिए? मालिक और गुलाम का या दोस्ती का? और दोस्ती में ज़ोर-ज़बरदस्ती तो नहीं चलती कि मैंने कहा और तुझे मानना ही पड़ेगा। या दोस्ती ऐसी होती है? दोस्ती तो ऐसी नहीं होती। दोस्ती में तो प्रेम होता है। उसमें अहम तो नहीं होता। हमने नियम बनाये हैं। तुम उन नियमों पर चलोगे। और अगर तुम उन नियमों पर नहीं चले तो तुम्हारे लिए जेल तैयार खड़ी है। क्या ये होता है दोस्ती में? क्या ये होता है कि अगर तुमने हमारी आज्ञा का पालन नहीं किया तो आज से तुम हमारे बेटे नहीं, घर में मत घुसना? क्या ये दोस्ती का वक्तव्य है या ये सिर्फ मालकियत और हिंसा है? मेरी बेटी ने किसी और जाति में शादी कर ली, मैं उसका गला घोट दूंगा। इसमें प्रेम दिख रहा है तुमको? क्या ये वाकई प्रेम है बाप और बेटी का? या यहाँ सिर्फ एक मालकियत है? ‘यह तो मेरी चीज़ है, तू वैसे ही जीयेगी जैसा मैं चाहता हूँ’। तो समाज और क्या है? आदमी और आदमी का रिश्ता ही समाज है। अब तुम देखो कि रिश्ता कैसा होना चाहिए ?
-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।