‘वह’ भय [भगवान] अनुस्मारक ध्यान को उपलब्ध होगा, लेकिन रोगी इसेसे बचना चाहेगा।
जो सबसे बड़ी आग में प्रवेश करते हैं, जहाँ वे न तो मर जाते हैं और न ही जीते हैं।।
~ सबसे ऊँचा
(अल-आ’आला)
(क़ुरान ८७,९:१९)
चेतावनियाँ, पुकार, आहटें सबको आएँगी, लेकिन जो रोगी मन है वो क्या करेगा, अपना मुँह फेर लेगा। लेकिन जो प्रेमी मन है, वो क्या करेगा? वो सुनेगा और चलेगा, वही कहा जा रहा है। तुम्हें अगर कोई भी तकलीफ है, दिक्कत है तो इस कारण नहीं है कि अस्तित्व तुम्हें तकलीफ देना चाहता है। कोई साजिश नहीं हो रही है, किसी की कोई उत्सुकता नहीं है तुम्हें तकलीफ देने की।
एक बड़ी ख़ूबसूरत बात कही गई है! धर्मो रक्षति रक्षितः। जिसके मन में धर्म रक्षित है, उसकी अपने आप रक्षा हो जाती है। यदि तुम्हारी रक्षा नहीं हो रही है ‘कष्टों’ से, ‘मुसीबतों’ से, ‘भय’ से, तो कारण सीधा है! क्या? तुम धर्म भ्रष्ट हो गए हो। जब उसकी पुकार आएगी तो वो ऐसा अभिनय करेंगे, जैसे उन्होंने सुनी ही नहीं! वो कानों में रुई डाल लेंगे।
गीता में कृष्ण कहते हैं न, ‘जो मुझे जैसा भजता है, मैं उसे भी वैसा ही भजता हूँ।’ अस्तित्व अगर तुम्हें कष्ट सा देता प्रतीत हो रहा है तो उसकी वजह बीएस ये है कि तुम अस्तित्व कि बातों पर, उसकी पुकार पर, उसकी लय पर, उसके संगीत पर, उसकी चेतावनियों पर तुम्हारा कोई ध्यान ही नहीं है। उसके आमन्त्रण को ठुकराते रहते हो।
जहाँ कहीं भी गॉड फीयरिंग (इश्वर का डर) शब्द पढ़ो, उसको थोड़ी सद्भावना के साथ पढ़ना। वास्तव में गॉड फीयरिंग (इश्वर का डर), गॉड लविंग (इश्वर का प्रेम) से अलग नहीं है — मैं कुरान की बात कर रहा हूँ। पर वो समय ऐसा नहीं था कि गॉड लविंग (इश्वर का प्रेम) शब्द का इस्तेमाल किया जा सके खुल के।
इस्लाम में गॉड लविंग (इश्वर का प्रेम) की बात पहले पहल जो लेकर आए, उनमें राबिया प्रमुख थी। और जब वो इस बात को लाती है, तो वो ये नहीं कह रही है की मैं कुछ नया ला रही हूँ। वो कह रही है, ये वही सब कुछ तो है जो अल्लाह ने पहले ही अपने पैग़म्बर के माध्यम से बताया हुआ है।
तो आश्य स्पष्ट है! जब मोहम्मद कह रहे हैं गॉड फीयरिंग (इश्वर का डर) उसी को राबिया कह रही है गॉड लविंग (इश्वर का प्रेम)। और जो लोग हिंसा में ही पगे हुए हैं, उनसे तुम सीधे-सीधे गॉड लविंग (इश्वर का प्रेम) नहीं बोल सकते। अरे! वो लव (प्रेम) जानते ही नहीं। वो मात्र फियर (डर) जानते हैं। जिन लोगों से अभी बात की जा रही है तो उचित ही है उनसे कहा गया ‘अल्लाह से डरो’ पर जो प्रेम जानने लगे उससे कहो ‘अल्लाह से प्रेम करो।’
पूरा जो वाक्य हुआ वो ऐसे हुआ — ”वह’ भय [भगवान] अनुस्मारक ध्यान को उपलब्ध होगा, लेकिन रोगी इसेसे बचना चाहेगा। जो सबसे बड़ी आग में प्रवेश करते हैं, जहाँ वे न तो मर जाते हैं और न ही जीते हैं।।’
ये बड़ी आग क्या है?
श्रोता: ‘द्वैत की आग।’
आचार्य जी: ऐसी मरनी क्यों मरें, दिन में सौ-सौ बार। न मर सकते हैं, न जी सकते हैं। उसी को तो ग़ालिब ने कहा है, ‘मुझे क्या बुरा था मरना, गर जो एक बार होता।’ हमें क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता। मर लेते, अगर एक ही बार मरना होता। ये रोज़-रोज़ का मरना, तिल-तिल कर के घुटना; ये नहीं बर्दाश्त होता। इसी को कह रहे हैं मोहम्मद, ‘जो सबसे बड़ी आग में प्रवेश करते हैं, जहाँ वे न तो मर जाते हैं और न ही जीते हैं।’
हम टुकड़ा-टुकड़ा करके मरते हैं।