स्त्री कौन? मालकियत क्या?।। आचार्य प्रशांत ओशो और श्रृंगार शतकम् पर (2017)

Acharya Prashant

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स्त्री कौन? मालकियत क्या?।। आचार्य प्रशांत ओशो और श्रृंगार शतकम् पर (2017)

स्त्रियाँ प्रेम में उन्मत्त होकर जिस काम को करने लग जाती हैं, ब्रह्म भी उन्हें उस काम से नहीं हटा सकता।

*~  श्रृंगार शतकम, श्लोक संख्या 54* 

जब कोई स्त्री अपने को तुम्हारे चरणों में रख देती है, तब अचानक तुम्हारे सिर पर ताज की तरह बैठ जाती है।

~ ओशो

प्रश्न: आचार्य जी, 'स्त्री' क्या है? मालकियत से क्या आशय है?

आचार्य प्रशांत: कुछ विशेष नहीं। पुरुषों से बात कर रहे थे तो इसलिए कह दिया, कि - "स्त्री तुम्हारे चरणों में बैठ जाती है तो तुम्हारे सिर का ताज हो जाती है।" यही बात पुरुषों के सम्बन्ध में भी लागू होती है।

जो कुछ भी तुम्हें लगता है कि तुम्हारी मालकियत में आ गया, वो तुम्हारा मालिक हो जाता है, क्योंकि तुम उसके साथ अपनी पहचान जोड़ लेते हो।

तुम किसी स्त्री के मालिक हो गए, यह बात तुम्हारे जीवन में अब महत्वपूर्ण हो गई, तुम्हारे मन में घूमने लगी, तुम्हारी अस्मिता का आधार बन गई। "मैं कौन हूँ? मैं फलानी का मालिक हूँ।" अब मालिक बना रहना है तो क़ीमत अदा करोगे ना? और क़ीमत अब वो उगाह सकती है। यही बात पुरुष पर भी लागू होती है। स्त्री ने अपनी पहचान पुरुष के साथ जोड़ ली, तो अब वो क़ीमत ऐंठ सकता है।

बात इतनी-सी ही है।

पूछ रहे हो - "स्त्री क्या है?"

जिस अर्थ में पुरुष और प्रकृति का निरूपण किया गया है, उस अर्थ में 'स्त्री' माया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जो दैहिक स्त्रियाँ हैं, उन्हें माया कहा जा रहा है, कि आप किसी औरत को आता-जाता देखें और उसे कहें, "ये माया है।"

संतों ने इतना समझाया कि - "कंचन, कामिनी से डरना।" और मुझे बहुत बार ये प्रश्न आए हैं कि - क्या सब संत स्त्री विरोधी रहे हैं ?

'काम' का अर्थ होता है - इच्छा। जो कुछ भी तुम्हें अपनी इच्छा के फलस्वरूप आकर्षक लगे, वो 'कामिनी' है।

स्त्री को यदि कुछ लुभा रहा है, मान लो कुछ भी - कोई घर, कि ज्ञान, कि सोना, कि पुरुष, गाड़ी, कुछ भी है जो स्त्री को लुभा रहा है, तो स्त्री के लिए वो 'कामिनी' है। कोई गाड़ी है, कोई कार जो स्त्री को आकर्षित कर रही है, तो स्त्री के लिए वो कार क्या हो गई? कामिनी हो गई। अब स्त्री और कार में स्त्री कौन है?

श्रोतागण: कार।

आचार्य प्रशांत: कार। समझना बात को। तो 'स्त्री' का अर्थ समझो। जो कुछ भी तुम्हें कामना के कारण आकर्षक लगे, उसे 'स्त्री' जानना। तो स्त्री को अगर पुरुष कामना के कारण आकर्षक लग रहा है, तो पुरुष क्या है?

श्रोतागण: स्त्री।

आचार्य प्रशांत: स्त्री। तो इस अर्थ में संतों ने 'स्त्री' शब्द का इस्तेमाल किया है।

तुम पूछ सकते हो, "तो जो कामना के कारण आकर्षक लग रहा है, उसको पुरुष क्यों नहीं बोल दिया?"

इसलिए नहीं बोल दिया क्योंकि ऐसी गोष्ठियों में, ऐसे सत्संगों में अधिकाँश जो जनता बैठती थी वो पुरुषों की होती थी। और चूँकि ये जो दैहिक पुरुष होता है, इसका एक मज़बूत, तीव्र आकर्षण होता ही है स्त्री की ओर, तो स्त्री को, दैहिक स्त्री को, प्रतीक बना लिया गया। ठीक ही किया गया। पर उस प्रतीक को बहुत आगे तक मत खींचो।

'कामिनी' माने स्त्री नहीं। जो कुछ भी किसी को भी आकर्षित करे वो - 'कामिनी'।

स्त्री को पुरुष ने आकर्षित किया, उस पुरुष को क्या नाम देना चाहिए?

श्रोतागण: कामिनी।

आचार्य प्रशांत: कामिनी। वो पुरुष कामिनी है। पुरुष को पुरुष ने आकर्षित कर लिया, वो पुरुष कौन है अब? वो कामिनी है। तुम्हारे काम के कारण जो तुम्हें भला लगा, आकर्षक लगा, प्यारा लगा - उसका नाम 'कामिनी'। पुरुष के लिए स्त्री कामिनी, स्त्री के लिए पुरुष कामिनी।

और संतों ने कहा - "कंचन, कामिनी से बचना।" तो कहो कि - "अगर आकर्षक लगने वाली चीज़ को अगर नाम 'कामिनी' ही देना है, तो कंचन अलग से काहे को बोला?"

उसका कारण यह है कि काम भी दो धाराओं में बंटता है।

एक धारा होती है जो कहती है कि - "शरीर से सुख मिल जाएगा," और दूसरी धारा होती है जो कहती है, "मन से सुख मिल जाएगा।" सोना इकट्ठा करने वाला कहता है कि - "सोना मिल जाए बहुत सारा, तो परमात्मा मिल गया।" और एक दूसरा होता है जो कहता है, "स्त्री के साथ सोना ही परमात्मा है।" तो इसलिए 'कंचन' और 'कामिनी' दोनों का नाम अलग-अलग लिया गया।

एक दैहिक सुख में परमात्मा खोज रहा है, और एक मानसिक सुख में परमात्मा खोज रहा है।

सोना तुम्हें कुछ दैहिक सुख तो देता नहीं, मानसिक सुरक्षा कि भावना देता है - मानसिक सुरक्षा, मानसिक श्रेष्ठता। "मैं सोना जमा किए  हूँ। मैं श्रेष्ठ हूँ, और मैं सुरक्षित हूँ।"

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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